सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) द्वारा किए जा रहे कोविशील्ड टीका परीक्षण में प्रतिकूल घटना के प्रारंभिक आकलन में परीक्षण रोकना जरूरी नहीं था और इससे टीके की योजना शुरू करने की समयसीमा पर किसी भी तरह का असर नहीं पड़ा है। सरकारी अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
चूंकि दुनिया भर के हजारों लोग स्वयंसेवक के रूप में खुद को जोखिम में डालकर कोविड टीके की खोज में वैज्ञानिक समुदाय की मदद कर रहे हैं, ऐसे में हालिया विवाद ने न केवल टीके को लेकर सजग लोगों में आशंका पैदा कर दी है, बल्कि उन स्वयंसेवकों को भी आशंकित कर दिया है जो यह सवाल उठा सकते हैं कि वे किस चीज के लिए हिस्सा ले रहे हैं।
हालांकि स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने अपने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में मीडिया के सवालों पर कहा कि सीरम द्वारा इस प्रतिकूल घटना की सूचना में उचित प्रक्रियाओं का पालन किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि परीक्षण में शामिल लोगों ने एक पूर्व सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें उन्हें संभावित प्रतिकूल प्रभावों की चेतावनी दी गई थी। वर्ष 2019 के दवाओं और क्लीनिकल परीक्षणों के नए नियमों के तहत जानकारी देने वाली सहमति वीडियो पर रिकॉड करनी होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वयंसेवक इस आश्वासन के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करता है कि वह टीका या प्लेसीबो दोनों ही बुखार, इंजेक्शन दिए जाने वाली जगह पर दर्द, सिरदर्द या कुछ देर रहने वाला शारीरिक दर्द छोड़कर यथोचित सुरक्षित होते हैं। इस तरह के मामूली दुष्प्रभाव को अध्ययन करने वाले प्रायोजक द्वारा अस्वीकृत किया जा सकता है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी के पूर्व प्रमुख जैकब जॉन ने कहा कि अनुसंधानकर्ता इस बात की गारंटी देता है कि जीवन के लिए कोई जोखिम नहीं होगा। प्रतिकूल प्रतिक्रयाओं के गंभीर जोखिम का पता नहीं होता है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत उन कुछ देशों में से एक है जिनके पास परीक्षण के दौरान स्वयंसेवकों की चोट या मृत्यु के मामले में हर्जाने की व्यवस्था है। हर्जाने की राशि इस अधार पर बदल जाती है कि वह क्षति स्थायी है या नहीं। अगर परीक्षण का प्रायोजक मुआवजा प्रदान करने में विफल रहता है, तो परीक्षण रद्द किया जा सकता है और केंद्रीय लाइसेंसिंग प्राधिकरण द्वारा आगे की कार्रवाई की जा सकती है।
इंडियन सोसाइटी फॉर क्लीनिकल रिसर्च के अध्यक्ष डॉ. चिराग त्रिवेदी ने कहा कि हालांकि स्वयंसेवकों के पास कोई भी कारण दिए बिना किसी भी समय परीक्षण से बाहर निकलने का विकल्प होता है। उनके पास क्लीनिकल परीक्षणों की सभी जानकारी प्राप्त करने का कानूनी अधिकार रहता है। जब कोई नई जानकारी उपलब्ध होती है, तो उन्हें उसे जानने का अधिकार होता है।
इस कानून में न केवल प्रतिकूल घटना के बारे सूचना देने का स्पष्ट प्रोटोकॉल है, बल्कि यह स्वतंत्र निगरानी भी सुनिश्ति करता है। स्वतंत्र संस्थागत आचरण समिति को दवा विनियामक को इस प्रतिकूल घटना के तीस दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी होती है। इस समिति में कम से कम सात सदस्य होते हैं जिनमें एक सामान्य व्यक्ति, एक कानूनी विशेषज्ञ और सामाजिक वैज्ञानिक या किसी एनजीओ आदि क्षेत्र से संबंधित एक स्वतंत्र व्यक्ति शामिल होता है। समिति यह सुनिश्चित करने के लिए क्लीनिकल ??अध्ययन प्रोटोकॉल को भी अनुमोदित करती है ताकि स्वयंसेवकों को कम से कम जोखिम हो।
एक डेटा सुरक्षा निगरानी बोर्ड (डीएसएमबी) भी है जिसमें टीका विनिर्माण करने वाली कंपनी और सरकार के स्वतंत्र विशेषज्ञ शामिल होते हैं। इसे दिन-प्रतिदिन के परीक्षण और किसी भी संभावित प्रतिकूल घटना पर नजर रखने का काम करना होता है। अगर कोई प्रतिकूल घटना होती है तो यह बोर्ड भारतीय दवा महानियंत्रक को अपने निष्कर्ष भी देगा। जॉन ने कहा कि डीसीएमबी के पास ही स्वयंसेवक को मिलने वाली खुराक का कोड होता है। कोड यह निर्धारित करता है कि प्रतिभागी को प्लेसबो मिला है या टीका। उन्होंने यह भी कहा कि यह परीक्षण स्वास्थ्य और जीवन के लिए सुरक्षित होना चाहिए।
वैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर विनियामक को यह पता लगाना या खंडन करना होता है कि क्या टीकाकरण और प्रतिकूल घटना के बीच कोई आपसी संबंध है या नहीं। इसके अनुसार ही यह निर्णय लिया जाता है कि परीक्षण को रोकना या रद्द करना है अथवा नहीं। पोलियो के टीका परीक्षण के दौरान कई रोगी इस वायरस से संक्रमित हो गए थे। जॉन ने कहा कि अमेरिका में इसकी वजह से लाखों डॉलर मुआवजे में दिए गए हैं। आगे चलकर बाद में इससे पोलियो के लिए और अधिक प्रभावी टीका खोजने में मदद मिली थी।
पूरी आबादी को टीका लगाने की जरूरत नहीं : स्वास्थ्य मंत्रालय
स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने मंगलवार को कहा कि सरकार ने कभी भी देश भर के लोगों के लिए कोविड-19 टीकाकरण की योजना नहीं बनाई है। केवल संक्रमण की कड़ी को तोडऩे के लिए पर्याप्त टीकाकरण किया जाएगा।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा, ‘अगर हम कोरोनावायरस के सर्वाधिक जोखिम वाले व्यक्तियों में व्यापक स्तर पर टीकाकरण करने और संक्रमण की कड़ी को तोडऩे में सफल होते हैं तो पूरी आबादी को टीका लगाने की जरूरत शायद नहीं होगी।’
संभावित टीके में से एक को लेकर हालिया प्रतिकूल घटना से सुरक्षा को लेकर उो सवाल पर भूषण ने कहा कि यह केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही टीका विनिर्माताओं की सामूहिक जिम्मेदारी होगी कि लोगों को टीके की प्रभाविता और सुरक्षा के बारे में जागरूक करें।
स्वास्थ्य मंत्रालय टीके की सुरक्षा के मसले और लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की योजना बना रहा है।