नोएडा में सुपरटेक की परियोजना एमरल्ड कोर्ट में अरसे से विवादों में घिरे ट्विन टावर अगस्त में जमींदोज कर दिए गए मगर अब इन्हीं से कई मकान और इमारतें खड़ी होने जा रही हैं। इन दोनों टावरों के ढहने से निकला हजारों टन मलबा कंक्रीट, ईंट, टाइल्स और स्टील की शक्ल में बाजार में पहुंचेगा और नए बन रहे मकानों में इस्तेमाल होगा। ट्विन टावर गिराने के बाद करीब 80,000 टन मलबा तैयार हुआ है, जिसमें रोड़ा, मिट्टी, कंक्रीट भी है और लोहा तथा स्टील भी है। दोनों तरह का मलबा निपटाने का काम अलग-अलग कंपनियां कर रही हैं। लोहा और स्टील एडिफिस इंजीनियरिंग उठाएगी और बाकी मलबा हैदराबाद की कचरा प्रबंधन कंपनी री सस्टेनेबिलिटी एंड रीसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड के जिम्मे आएगा। एडिफिस वही कंपनी है, जिसने टावर गिराए हैं। इसके एवज में उसे सुपरटेक से 17.5 करोड़ रुपये मिलने हैं। मगर पहले यह कंपनी मलबे से स्टील और लोहा निकालेगी। मलबे में करीब 350 टन लोहा और स्टील होने का अनुमान है। उसे बेचने से मिली रकम 17.5 करोड़ रुपये में से घटाई जाएगी और बची रकम ही सुपरटेक देगी। हालांकि यह नहीं पता चल सका कि स्टील और लोहे के कबाड़ से कंपनी को कितनी कमाई होगी।
लोहे की होगी रीसाइक्लिंग
एडिफिस के पार्टनर उत्कर्ष मेहता ने बताया, ‘सबसे पहले मलबा संयंत्र पर ले जाकर उसमें स्टील और लोहा अलग किया जाएगा। उसके बाद हम स्टील और लोहे को 250 मिलीमीटर के टुकड़ों में तोड़कर नोएडा प्राधिकरण को दे देंगे। स्टील को रीसाइकल और रीरॉल करने का इंतजाम भी है।’ एडिफिस की 20 शाखाओं से रीसाइकल किया गया स्टील बेचा जाता है। मेहता ने कहा कि उनकी टीम पूरे भारत में काम करती है। उनके पास रॉलिंग मिल और व्यापारी हैं, जो उनके उत्पाद बेचते हैं। जाहिर है कि रीसाइकल किया गया लोहा और इस्पात एक बार फिर इमारतों और घरों में लग जाएगा।
बनेंगी हजारों टाइल्स
लोहा निकलने के बाद कंक्रीट और दूसरे मलबे का इस्तेमाल रोड़ा, ईंट और टाइल्स बनाने में इस्तेमाल होगा। करीब 28,000 टन मलबे की टाइल्स बनाने का काम री सस्टेनेबिलिटी करेगी। नोएडा में इस कंपनी का कंक्रीट ऐंड डिमॉलिशन संयंत्र है, जहां वैज्ञानिक तरीके से टाइल्स बनाने का दावा किया जाता है। 5 एकड़ में बने इस संयंत्र का नोएडा प्राधिकरण के साथ 2034 तक के लिए करार है। संयंत्र में परियोजना प्रमुख मुकेश धीमन ने बताया कि मलबा निपटाने के लिए कंपनी 156 रुपये प्रति टन प्रोसेसिंग शुल्क लेती है। उन्होंने कहा, ‘प्रोसेसिंग शुल्क से ही कंपनी अपने कर्मचारियों का खर्च, साधन, संचालन लागत और बिजली आदि का खर्च निकालती है।’ धीमन के साथ यहां 42 लोगों की टीम काम करती है। धीमन ने बताया कि ट्विन टावर के मलबे में से करीब 30,000 टन ही इस संयंत्र में आएगा। बाकी 50,000 टन मलबे में से कुछ जमीन में दबा दिया जाएगा। फिर भी मलबा बचा तो वह भी संयंत्र में आएगा। 850 टन रोजाना प्रोसेसिंग क्षमता वाले इस संयंत्र में एक दिन में 5,000 टाइल्स बन सकती हैं मगर फिलहाल 2,500 टाइल्स ही बनाई जा रही हैं। संयंत्र में नोएडा से रोजाना करीब 350 टन मलबा आता है, जिसमें से 95 फीसदी रीसाइकल कर दिया जाता है। ट्विन टावर से भी करीब 300 टन मलबा रोज आएगा और तब दो पालियों में उसकी प्रोसेसिंग शुरू हो जाएगी।
सस्ती पड़ेंगी मलबे की टाइल्स
धीमन ने बताया कि प्रोसेसिंग के दौरान 10, 20 और 40 मिमी की विनिर्माण में काम आने वाली बालू और कोर बालू निकलती है। इसमें से 10 और 20 मिमी बालू से टाइल्स बनाई जाती हैं। कंपनी की टाइल्स ‘री सस्टेनेबिलिटी’ ब्रांड के नाम से खुले बाजार में बिकती हैं और बाकी टाइल्स के मुकाबले इनकी कीमत करीब 30 फीसदी कम रखी जाती है। मोटे तौर पर इनकी कीमत 18 रुपये प्रति टाइल है। अगर सरकार टाइल्स खरीदने को तैयार हो जाती है तो उसे थोक में 12 रुपये प्रति टाइल के हिसाब से माल बेचा जाएगा। 40 मिमी वाली बालू का इस्तेमाल सड़क, फुटपाथ और पीसीसी बनाने में किया जाता है। धीमन ने बताया कि सीऐंडडी नियम के मुताबिक इसका इस्तेमाल कम भार वाले निर्माण जैसे फर्श, प्लास्टर और ईंटों के लिए ही करते हैं। छत पर लेंटर डालने में यह बालू इस्तेमाल नहीं की जाती। यह बालू भी खुले बाजार में आती है और प्रोसेसिंग के दौरान तैयार कंक्रीट भी बाजार में 200 रुपये प्रति टन के भाव से पहुंचेगा। कंक्रीट भी ‘रीसस्टेनेबिलिटी’ ब्रांड के नाम से ही बिकता है। इस ब्रांड के तहत सीमेंट की ईंटें भी आने वाली हैं, जो नोएडा के आसपास भट्ठे बंद होने के कारण बाजार में पैदा हुई लाल ईंटों की किल्लत काफी हद तक कम कर देंगी।