कोविड-19 महामारी की वजह से पैदा हुए नकदी संकट से मुकाबले के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने सूचीबद्घ कंपनियों के लिए कोष उगाही मानकों को आसान बनाया है।
बाजार नियामक ने प्रवर्तकों को ओपर ऑफर के बगैर एक वित्त वर्ष में 10 प्रतिशत तक हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति के लिए अधिग्रहण नियमों में संशोधन किया है। हालांकि इस तरह का अधिग्रहण सिर्फ इक्विटी शेयरों के तरजीही निर्गम के जरिये ही किया जा सकेगा। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रवर्तकों को कंपनी में ताजा पूंजी लगानी होगी और सिर्फ सेकंडरी बाजार से शेयर खरीदारी नहीं करनी होगी। फिलहाल एक वित्त वर्ष में बगैर ओपन ऑफर के प्रवर्तकों को अपनी हिस्सेदारी 5 प्रतिशत तक बढ़ाने की अनुमति है।
सेबी ने संस्थागत निवेशकों से ताजा पूंजी जुटाने के लोकप्रिय विकल्प पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) के मानकों को नरम बनाया है। नियामक ने दो क्यूआईपी के बीच की अनिवार्य 6 महीने की अवधि को घटाकर अब महज दो सप्ताह कर दिया है।
खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर गौतम श्रीनिवास ने कहा, ‘नकदी किल्लत की स्थिति को देखते हुए सेबी प्रवर्तकों को बड़े आकार के तरजीही आवंटन के लिए प्रोत्साहित कर रहा है और तभी बढ़ी हुई अधिग्रहण सीमा का लाभ मिलेगा। तरजीही आवंटन के लिए मूल्यांकन मानक नहीं बदले हैं, जिसे देखते हुए सेबी ने प्रवर्तकों को ऊंची कीमतों (मूल्यांकन मानकों को देखते हुए) पर आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया है।’ शेयरों में मार्च के निचले स्तर से भारी सुधार आया है, लेकिन प्रमुख सूचकांक सालाना आधार पर अब तक 19 प्रतिशत नीचे बने हुए हैं।
बीडीओ इंडिया के पार्टनर नीतेश मेहता ने कहा कि सेबी की नरमी उन प्रवर्तकों के लिए एक अच्छा अवसर है जो मौजूदा बाजार रुझान को देखते हुए आकर्षक मूल्यांकन पर अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की संभावना तलाश रहे हैं। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि क्यूआईपी के बीच की अवधि घटाकर महज दो सप्ताह किए जाने से खासकर वित्त क्षेत्र की कंपनियों को नियमित अंतराल पर पूंजी जुटाने में मदद मिलेगी। उनका कहना है कि इससे कंपनियों को शेयर बिक्री करने और अनिश्चितता से मुकाबला करने में भी मदद मिलेगी।
एलऐंडएल पार्टनर्स में पार्टनर जीतेश शाहनी ने कहा, ‘मौजूदा परिवेश में, कंपनियां ऐसे कोष उगाही विकल्पों पर ध्यान दे रही हैं जिनसे समय की बचत हो, देनदारियों से मुक्त होने में मदद मिले, कम नियामकीय हस्तक्षेप हो। ये अस्थायी बदलाव प्रवर्तकों को कोविड-19 संकट के विपरीत प्रभाव से मुकाबला करने के लिए अपनी कंपनियों में नकदी बढ़ाने में सक्षम बनाएंगे।’ पिछले पांच साल में क्यूआईपी के जरिये हर साल औसत 26,500 करोड़ रुपये की उगाही की गई। इस साल अब तक 6 कंपनियों ने इसके जरिये 27,803 करोड़ रुपये जुटाए हैं। विश्लेषकों का कहना है कि सेबी की ताजा नरमी के बाद क्यूआईपी निर्गमों में तेजी आ सकती है।