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डिजिटल फर्मों के विलय की जांच में यूजर की संख्या भी अहम

Last Updated- December 11, 2022 | 4:31 PM IST

डिजिटल कारोबारों के विलय को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की जांच का उसी ​स्थिति में सामना करना पड़ सकता है, अगर उसका ग्राहक आधार, उपयोगकर्ता का डेटा अ​धिक हो। इन मानदंडों को भारत में कारोबार का व्यापक परिचालन के तहत निर्धारित किया जाएगा। बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में सीसीआई के प्रमुख अशोक कुमार गुप्ता ने ये बातें कहीं।

वै​श्विक डिजिटल विलय और अ​धिग्रहण को ल​क्षित करने वाले प्रस्तावित प्रतिस्पर्धा विधेयक में सौदे के मूल्य का पैमाना तय करने में देश में कारोबार का व्यापक परिचालन अहम शर्त है। विधेयक को हाल में संपन्न हुए मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया गया था, जिसे भारतीय जनता पार्टी के नेता जयंत सिन्हा की अगुआई वाली वित्त पर संसद की स्थायी समिति के पास समीक्षा के लिए भेजा गया है। समिति को विधेयक का मूल्यांकन करने और तीन महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है।

सीसीआई प्रमुख ने कहा, ‘सौदे के मूल्य की सीमा के लिए स्थानीय गठजोड़ का मानदंड नई पीढ़ी के बाजार में किसी कंपनी के मूल्यांकन को प्रभावित करने वाले पहलू पर आधारित होना चाहिए। ये मानदंड बाजार-उन्मुख कारकों जैसे कि उपयोगकर्ताओं की संख्या, अनुबंधों की संख्या, भुगतान में प्राप्त कुल रा​शि आदि पर व्यापक रूप से आ​धारित होगा। हालांकि परिसंप​त्ति और सालाना कारोबार में ये चीजें पूरी तरह से परिल​क्षित नहीं होती थीं।’

गुप्ता ने कहा कि इस तरह के नियमन को हितधारकों के साथ परामर्श और आंतरिक स्तर पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद अंतिम रूप दिया जाएगा।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि स्थानीय सांठगांठ के मानदंड का अ​भिप्राय ऐसे विलय एवं अ​धिग्रहण के सौदों को इसके दायरे से बाहर करना है जिनका परिचालन वि​शिष्ट रूप से विदेश में होता है या भारत में उस कारोबार का परिचालन सीमित है।

प्रतिस्पर्धा विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि अगर सौदे का न्यूनतम मूल्य 2,000 करोड़ रुपये है और उसका अ​धिग्रहण किसी ऐसी कंपनी द्वारा किया जा रहा है जिसका भारत में अच्छा-खासा परिचालन है तो उक्त सौदे की जानकारी प्रतिस्पर्धा नियामक को देनी होगी। मौजूदा समय में सीसीआई का अ​धिकार क्षेत्र कानून में निर्धारित परिसंपत्ति और सालाना कारोबार की सीमा वाले विलय और अ​धिग्रहण तक ही सीमित है। नियामकीय खाई पैदा होने से सौदे के मूल्य जैसे अतिरिक्त अधिसूचना मानदंड शुरू करना जरूरी हो गया है। इसके बारे में गुप्ता ने कहा कि नए दौर के बाजार में उपयोगकर्ता, डेटा, वृद्धि और नेटवर्क प्रभाव जैसे कारक बाजार में अहम मुकाम हासिल करने का साधन बन गए हैं। 

उन्होंने कहा, ‘नए दौर के कारोबार में किसी सफल कारोबारी मॉडल चलाने वाली वाली कंपनियों का अहम मूल्यांकन है मगर परिसंपत्तियां बहुत अधिक नहीं हैं और उनके वित्तीय ब्योरे में सालाना कारोबार बिल्कुल नहीं या मामूली दर्ज किया गया है।’

उन्होंने कहा कि अब यह सभी जगह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि परंपरागत परिसंपत्ति/टर्नओवर का मापदंड नए दौर के बाजारों में संभावित प्रतिस्पर्धा विरोधी लेनदेन को पकड़ने में असफल रह सकता है। उन्होंने कहा, ‘इसके नतीजतन जिन विलय एवं अधिग्रहण में कंपनियां या परिसंपत्तियां अभी तक मामूली या कोई टर्नओवर नहीं है, उन्हें ऊंची कीमत पर खरीदा जा रहा है। इसकी प्रतिस्पर्धा कानून के तहत जांच जरूरी है।’

2,000 करोड़ रुपये की सीमा तय किए जाने को लेकर सीसीआई के प्रमुख ने कहा कि यह जर्मनी और ऑस्ट्रिया जैसे वैश्विक देशों के समान है, जिन्होंने विलय को नियंत्रित करने की अपनी प्रणाली में ऐसे ही मानदंड लागू किए हैं। 

First Published - August 19, 2022 | 9:45 AM IST

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