भारत सरकार ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने कहा कि दलाई लामा ही बौद्ध धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और परिभाषित करने वाला संस्थान हैं, और उनके उत्तराधिकारी का फैसला केवल वही कर सकते हैं। यह बयान चीन के दावे पर एक सीधा जवाब माना जा रहा है।
केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू, ने कहा कि “जो लोग दलाई लामा को मानते हैं, वे जानते हैं कि अगली पुनर्जन्म (इनकार्नेशन) का निर्णय परंपरा और स्वयं दलाई लामा की इच्छा के अनुसार होगा। कोई और इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।”
हाल ही में चीन ने दावा किया था कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को “गोल्डन अर्न (स्वर्ण कलश)” से लॉटरी निकालकर और चीनी केंद्र सरकार की मंजूरी से चुना जाएगा। इसके जवाब में भारत ने दो टूक कह दिया कि यह अधिकार सिर्फ दलाई लामा और उनकी स्थापित परंपराओं को है, और कोई अन्य देश या संस्था इसमें दखल नहीं दे सकती।
दरअसल हाल ही में अपने उत्तराधिकारी को लेकर दलाई लामा के बयान पर चीन ने नाराजगी जताई। चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, “दलाई लामा, पंचेन लामा और अन्य बड़े बौद्ध धर्मगुरुओं का पुनर्जन्म गोल्डन अर्न से निकाले गए नामों के ज़रिए और चीनी सरकार की मंजूरी से ही मान्य होगा।” चीन ने यह भी कहा कि वह धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करता है, लेकिन धार्मिक मामलों पर नियम लागू करने और “लिविंग बुद्धा” के पुनर्जन्म की प्रक्रिया को नियंत्रित करने का अधिकार सरकार के पास ही है।
90वें जन्मदिवस के अवसर पर दलाई लामा ने भी दोहराया कि उनके उत्तराधिकारी की मान्यता केवल ‘गदेन फोडरंग ट्रस्ट’ द्वारा ही की जाएगी, जिसे उन्होंने 2015 में स्थापित किया था। उन्होंने स्पष्ट कहा – “मैं दोहराना चाहता हूं कि भविष्य में मेरे पुनर्जन्म को मान्यता देने का अधिकार केवल गदेन फोडरंग ट्रस्ट को है। कोई और इसमें दखल नहीं दे सकता।”
दलाई लामा (तेन्ज़िन ग्यात्सो) 1959 में जब वे केवल 23 वर्ष के थे, तब चीन के तिब्बत पर नियंत्रण के बाद ल्हासा से भागकर भारत आए थे। तब से वे तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक प्रमुख के रूप में भारत में रहते आ रहे हैं। 2011 में उन्होंने घोषणा की थी कि वे 90वें जन्मदिन पर यह निर्णय लेंगे कि यह परंपरा आगे जारी रहेगी या नहीं।
दलाई लामा के 90वें जन्मदिवस पर 6 जुलाई को धर्मशाला में होने वाले समारोह में भारत सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू और कैबिनेट मिनिस्टर राजीव रंजन सिंह “ललन” भाग लेंगे। इनका चयन करके मोदी सरकार ने चीन को पटखनी देने का दांव खेला है। भारत सरकार के ये दोनों ही प्रतिनिधि ऐसे हैं, जिन पर चीन उंगली नहीं उठा पाएगा।
बता दें कि केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू खुद बौध्द धर्म के अनुयायी है और मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री है, वहीं बौध्द धर्म के अनुयायी भारत में अल्पसंख्यक श्रेणी में आते हैं। रिजिजू बौध्द धर्म, दलाई लामा परंपरा सहित बौध्द धर्म के सभी रीति-रिवाजों और प्राचीन इतिहास के महत्व से भलींभांति परिचित हैं। अपनी कैबिनेट के एक बौध्द धर्म के अनुयायी केंद्रीय मंत्री को इस कार्यक्रम में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व बनाकर भेजने के पीछे मोदी सरकार की यही कूटनीति है कि चीन इस विवाद में भारत सरकार के प्रतिनिधि के धर्म को लेकर कोई गलतबयानी नहीं कर पाए।
वहीं भारत सरकार के दूसरे प्रतिनिधि के रुप में भारत सरकार की ओर से कैबिनेट मिनिस्टर राजीव रंजन सिंह “ललन” को भेजा गया है। बता दें कि राजीव रंजन सिंह बिहार से आते हैं, और दुनियाभर में बौध्द धर्म के सबसे ज्यादा पवित्र स्थल, जैसे नालंदा, गया सहित तमाम इसी राज्य में हैं। इतना ही नहीं बौध्द धर्म अनुयायियों का सबसे बड़ा धार्मिक समागम बिहार में ही होता है, जहां बौध्द धर्म को लेकर सभी महत्वपूर्ण फैसले लिए जाते हैं। इस तरह भारत सरकार के दूसरे प्रतिनिधि उस प्रांत से आते हैं, जिसे लेकर बौध्द धर्म के अनुयायियों में सबसे ज्यादा श्रध्दा है।
हॉलीवुड अभिनेता और अंतरराष्ट्रीय तिब्बत अभियान (International Campaign for Tibet) के अध्यक्ष रिचर्ड गेरे ने दलाई लामा और तिब्बती समुदाय के लिए अपने आजीवन समर्थन को दोहराया है। धर्मशाला में दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के सप्ताह भर चलने वाले समारोह के दौरान, उन्होंने कहा कि “यह कई जन्मों की प्रतिबद्धता है।”
75 वर्षीय रिचर्ड गेरे, जो दशकों से दलाई लामा के अनुयायी रहे हैं, ने कहा, “हमें यह स्वीकार करना होगा कि एक दिन हम सभी का शरीर टूट जाएगा – उनकी पवित्रता (दलाई लामा) का भी। वह हमें हमेशा अपने कंधों पर नहीं उठा सकते। अब समय आ गया है कि हम खुद को और एक-दूसरे को संभालें।”
गेरे ने कहा कि जब वह अपनी अंतिम सांसें लेंगे, तो फिल्मों की नहीं बल्कि उस कार्य की याद उन्हें आएगी जो उन्होंने तिब्बती लोगों के लिए दुनिया भर में किया। उन्होंने कहा, “मेरे लिए दुनिया में कुछ सार्थक करने का जरिया दलाई लामा, तिब्बती आंदोलन और उनकी संस्कृति की दूरदर्शी संभावनाएं रही हैं,” ।
धर्मशाला में आयोजित एक कार्यक्रम में 15 देशों से आए 95 तिब्बती युवाओं को संबोधित करते हुए गेरे ने उन्हें तिब्बती आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम में शामिल हुईं ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में रहने वाली 26 वर्षीय तिब्बती नर्स तेनज़िन कुन्सेल ने कहा, “अब हमारी बारी है। हमें सब तिब्बती समुदायों को एक साथ आना होगा और इस आंदोलन को आगे ले जाना होगा।” गेरे ने आगे कहा, “ब्रह्मांड शून्य-योग (zero-sum) नहीं है। इसमें हम सभी के लिए जगह है। हमेशा कोई न कोई रास्ता निकल सकता है जिससे सभी जीतें।”
दलाई लामा के 90वें जन्मदिवस के अवसर पर भारत के धर्मशाला में आयोजित भव्य समारोह में संयुक्त राज्य अमेरिका आधिकारिक रूप से भाग लेगा। अमेरिका की ओर से इस समारोह में भाग लेंगी बेथनी पाउलोस मॉरिसन, जो विदेश विभाग के साउथ एंड सेंट्रल एशियन अफेयर्स ब्यूरो में भारत और भूटान मामलों की उप सहायक सचिव (Deputy Assistant Secretary) हैं। यह अमेरिका की ओर से तिब्बती आध्यात्मिक गुरु और निर्वासन में रह रहे समुदाय के प्रति स्थायी समर्थन का संकेत है — और यह भी स्पष्ट करता है कि ट्रंप प्रशासन के तहत भी इस नीति में कोई बदलाव नहीं आया है।
नवंबर 2024 में डनॉल्ड ट्रंप की चुनावी जीत के बाद, दलाई लामा ने उन्हें एक बधाई पत्र भेजा था। पत्र में उन्होंने ट्रंप से शांति और न्याय के साथ नेतृत्व करने की अपील की थी और अमेरिका द्वारा तिब्बती संस्कृति की सुरक्षा के लिए दिए गए समर्थन को सराहा था।
अपने पत्र में दलाई लामा ने लिखा, “तिब्बती जनता और मैं सम्मानित महसूस करते हैं कि हमें अमेरिका के विभिन्न राष्ट्रपतियों और जनता का समर्थन प्राप्त हुआ है, हमारे प्राचीन बौद्ध संस्कृति की रक्षा और संरक्षण के प्रयासों में।”
पिछले वर्ष, अमेरिका के एक द्विदलीय कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने भारत के धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा से मुलाकात की थी। इस उच्चस्तरीय दौरे का उद्देश्य तिब्बत के प्रति अमेरिका के दीर्घकालिक समर्थन को दोहराना था, विशेष रूप से हाल ही में पारित ‘रिज़ॉल्व तिब्बत अधिनियम’ (Resolve Tibet Act) के माध्यम से। यह अधिनियम चीन से अपील करता है कि वह तिब्बती नेताओं के साथ सार्थक संवाद करे, जिससे लंबे समय से चले आ रहे तिब्बत मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकल सके। यह अधिनियम तिब्बती लोगों को उनकी सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक पहचान की रक्षा करने के अधिकार का समर्थन करता है।
प्रतिनिधिमंडल में शामिल प्रमुख नेता थे:
इस दौरे को अमेरिका की तिब्बती संस्कृति और राजनीतिक पहचान के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता के रूप में देखा जा रहा है।
अमेरिकी संसदीय प्रतिनिधिमंडल के इस दौरे पर चीन के विदेश मंत्रालय ने कड़ी आपत्ति जताई और इसे लेकर “गंभीर चिंता” (Grave Concern) व्यक्त की। चीन पहले से ही दलाई लामा को “अलगाववादी” करार देता रहा है और इस तरह के अंतरराष्ट्रीय समर्थन को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानता है।
यह दौरा इस बात का संकेत था कि चाहे अमेरिका में सरकार कोई भी हो — डेमोक्रेटिक या रिपब्लिकन — तिब्बत के मसले पर अमेरिका की नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। अमेरिकी प्रतिनिधियों ने धर्मशाला में तिब्बती समुदाय से भी मुलाकात की और उन्हें आश्वस्त किया कि उनका संघर्ष अंतरराष्ट्रीय समर्थन के साथ जीवित रहेगा।
अमेरिकी संसदीय प्रतिनिधिमंडल की इस धर्मशाला यात्रा ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि तिब्बत के प्रति अमेरिका का समर्थन केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और नैतिक रूप से भी मजबूत है। ‘रिज़ॉल्व तिब्बत अधिनियम’ और इस प्रतिनिधिमंडल की यात्रा, दोनों ने चीन के साथ तिब्बत को लेकर फिर एक नया संवाद शुरू करने की अंतरराष्ट्रीय उम्मीदें जगा दी हैं।
(Inputs from US State Dept/ Central Tibetan Administration (CTA)/ Ministry of External Affairs (MEA)/ Office of HH 14th Dalai Lama & others)
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