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BS Special: Israel-Iran-US War और भारत का crude oil परिदृश्य 

Israel- Iran War में US की एंट्री से कच्चे तेल के वैश्विक कारोबार और उसके भारत पर असर को लेकर कयास शुरु हो गए हैं। पढ़ें बिजनेस स्टैंडर्ड की खास रिपोर्ट

Last Updated- June 22, 2025 | 5:54 PM IST
Crude Oil
प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत ने जून महीने में रूस से तेल की खरीद में तेज़ी से बढ़ोतरी की है, जिससे यह मात्रा सऊदी अरब और इराक जैसे मध्य पूर्वी आपूर्तिकर्ताओं से संयुक्त रूप से खरीदे गए तेल से भी ज़्यादा हो गई है। यह स्थिति ऐसे समय में आई है जब इज़राइल द्वारा ईरान पर नाटकीय हमले और फिर अमेरिका के भी ईरानी ठिकानों पर हमले के बाद वैश्विक बाज़ार में अस्थिरता उत्पन्न हो गई है।

भारत के Crude Oil import पर क्या कहती है ग्लोबल रिपोर्ट-
वैश्विक व्यापार विश्लेषण फर्म Kpler के प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, भारतीय रिफाइनर जून में रूस से रोज़ाना 20 से 22 लाख बैरल कच्चा तेल आयात कर सकते हैं — जो पिछले दो वर्षों में सबसे अधिक है और इराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत से संयुक्त रूप से आयात की गई मात्रा से भी अधिक है। मई में भारत ने रूस से प्रतिदिन 19.6 लाख बैरल तेल खरीदा था।

जून में अमेरिका से भी भारत का आयात बढ़कर 4.39 लाख बैरल प्रतिदिन हो गया है, जो पिछले महीने 2.8 लाख बैरल था। Kpler के अनुसार, जून में मध्य पूर्व से कुल आयात लगभग 20 लाख बैरल प्रतिदिन रहने की संभावना है, जो पिछले महीने की तुलना में कम है।

दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता भारत, रोज़ाना लगभग 51 लाख बैरल कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है, जिसे रिफाइनरियों में पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधनों में बदला जाता है। यूक्रेन पर फरवरी 2022 में रूस के आक्रमण के बाद भारत ने रूस से तेल खरीद में तेज़ी लाई थी क्योंकि पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूसी तेल अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में भारी छूट पर उपलब्ध था। इससे भारत में रूसी तेल का आयात कुल आयात का 1% से बढ़कर 40-44% तक पहुंच गया।

मध्य पूर्व में तनाव के बावजूद क्रूड आपूर्ति स्थिर
अब तक मध्य पूर्व में तनाव के बावजूद तेल की आपूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। हालांकि, Kpler के प्रमुख विश्लेषक सुमित रितोलिया ने बताया कि “जहाज गतिविधि यह संकेत देती है कि आने वाले दिनों में मध्य पूर्व से कच्चे तेल की लोडिंग में गिरावट आ सकती है।”

उन्होंने बताया कि “गल्फ क्षेत्र में खाली टैंकर भेजने को लेकर शिप मालिक हिचकिचा रहे हैं। ऐसे टैंकरों की संख्या 69 से घटकर 40 रह गई है, और ओमान की खाड़ी से MEG (Middle East Gulf) की ओर जा रहे संकेत भी आधे हो गए हैं।”

हार्मुज़ जलडमरूमध्य की स्थिति और भारत की निर्भरता
ईरान और ओमान/यूएई के बीच स्थित हार्मुज़ जलडमरूमध्य से सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत और यूएई का तेल निर्यात होता है। यहां से बड़ी मात्रा में कतर का एलएनजी (LNG) भी निकलता है। भारत लगभग 40% तेल और 50% गैस इसी जलमार्ग से आयात करता है।

इज़राइल-ईरान सैन्य संघर्ष के बीच ईरान ने जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी है, जिससे वैश्विक आपूर्ति और कीमतों पर असर पड़ सकता है। ईरानी सरकारी मीडिया ने तेल की कीमत USD 400 प्रति बैरल तक पहुंचने की चेतावनी दी है।

हालांकि, Kpler के अनुसार हार्मुज़ की पूर्ण बंदी की संभावना बहुत कम है क्योंकि:

  • चीन, जो ईरान का सबसे बड़ा तेल ग्राहक है, सीधे प्रभावित होगा। 
  • ईरान के अपने तेल निर्यात का 96% हार्मुज़ पर निर्भर है। 
  • ईरान ने हाल के वर्षों में सऊदी अरब और यूएई के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की है। 
  • जलमार्ग को बंद करना इन कूटनीतिक प्रयासों को नुकसान पहुंचा सकता है। 
  • किसी भी सैन्य गतिविधि को अमेरिका और उसके सहयोगी पहले ही रोक सकते हैं। 

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क्या है भारत की क्रूड रणनीति
Kpler के अनुसार, भारत की तेल आयात रणनीति पिछले दो वर्षों में लचीली हुई है:

  • रूसी तेल (Urals, ESPO, Sokol) हार्मुज़ से स्वतंत्र है और सूएज़ नहर, केप ऑफ गुड होप या प्रशांत महासागर के रास्ते आता है। 
  • भारत ने परिशोधन और भुगतान प्रणाली को अनुकूल बनाकर वैकल्पिक स्रोतों से खरीद को सक्षम बनाया है। 
  • अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से तेल – भले महंगा हो – अब व्यवहारिक विकल्प बन चुके हैं। 

प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) प्रवक्ता ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मौजूदा स्थिति पर चर्चा करने के लिए ईरान के राष्ट्रपति महामहिम डॉ. मसूद पेज़ेश्कियान के साथ विस्तार से बातचीत की।

बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री ने हालिया तनाव बढ़ने पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने संवाद और कूटनीति के महत्व पर ज़ोर देते हुए दोहराया कि क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति, सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए तनाव कम करना अत्यंत आवश्यक है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया मंच X पर लिखा,  “ईरान के राष्ट्रपति @drpezeshkian से बात की। वर्तमान स्थिति पर विस्तार से चर्चा हुई। हालिया तनाव बढ़ने पर गहरी चिंता व्यक्त की। तनाव में तत्काल कमी, संवाद और कूटनीति को आगे का मार्ग बताते हुए क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता की शीघ्र बहाली का आह्वान दोहराया।”

यदि हालात बिगड़े, तो क्या करे भारत?

रितोलिया ने बताया, “अगर संकट गहराता है या हार्मुज़ में अस्थायी रुकावट आती है, तो रूसी तेल की हिस्सेदारी और बढ़ सकती है, जो कि आसानी से उपलब्ध और सस्ता भी है। भारत अमेरिका, नाइजीरिया, अंगोला और ब्राज़ील की ओर रुख कर सकता है, भले ही भाड़ा अधिक हो।”

इसके अतिरिक्त, भारत अपनी रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारण सुविधा (जो 9-10 दिन के आयात की पूर्ति कर सकती है) का उपयोग करके आपूर्ति में कमी की भरपाई कर सकता है।

रूस और अमेरिका से बढ़ती आपूर्ति, मध्य पूर्व में घटती लोडिंग गतिविधि और हार्मुज़ संकट को देखते हुए भारत ने अपने आयात का स्वरूप बदल लिया है। रूसी तेल की हिस्सेदारी बढ़ रही है और भारत लचीलापन आधारित ऊर्जा रणनीति अपना रहा है, जो भविष्य के किसी भी भू-राजनीतिक संकट में काम आ सकती है। 

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मध्य-पूर्व विवाद में अमेरिका की एंट्री- 

मध्य पूर्व में तनाव के बीच एक नाटकीय मोड़ लेते हुए, अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों — नतांज, इस्फहान और फोर्डो — पर लक्षित हमले किए। इस कदम ने वैश्विक स्तर पर तेल कीमतों में उछाल की आशंका, बाज़ारों में अस्थिरता और क्षेत्रीय संघर्ष में अमेरिका की भूमिका के गहराने की चिंताओं को जन्म दिया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस हमले की घोषणा Truth Social पर और एक टेलीविज़न संबोधन में की। उन्होंने इसे एक “शानदार सैन्य सफलता” करार दिया और दावा किया कि ईरान की “प्रमुख परमाणु संवर्धन सुविधाएं पूरी तरह से नष्ट कर दी गई हैं।” ईरान ने इसके जवाब में इज़राइल पर मिसाइल हमले किए हैं, जिससे तनाव और भी बढ़ गया है।

अमेरिका के भीतर इस हमले को लेकर राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। कई सांसदों ने इसकी वैधता और इसके दूरगामी परिणामों पर सवाल उठाए हैं, जिससे यह साफ हो गया है कि ईरान-इज़राइल संघर्ष में अमेरिका की गहराती भूमिका अब घरेलू स्तर पर भी विवाद का विषय बन चुकी है।

क्या ईरान में सत्ता पलट होगा? क्या होगा भविष्य? 

इस सप्ताह वरिष्ठ इज़राइली अधिकारियों ने कहा कि ईरान के खिलाफ उनके सैन्य अभियान से वहां की सरकार गिर सकती है, जो वैश्विक तेल बाजार के लिए अत्यंत गंभीर परिणाम ला सकता है।

इज़राइल द्वारा OPEC के तीसरे सबसे बड़े तेल उत्पादक ईरान पर लगातार आठ दिन तक बमबारी किए जाने के बावजूद, तेल बाजार ने अब तक आश्चर्यजनक संयम दिखाया है। हालांकि, अब अमेरिका के इस संघर्ष में अचानक शामिल होने से स्थिति बदल सकती है। अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु स्थलों — फोर्डो, नतांज और इस्फहान — पर हमला किया।

इज़राइल द्वारा हमले शुरू करने के बाद से कच्चे तेल की कीमतें लगभग 10% बढ़ चुकी हैं, लेकिन अमेरिकी और ब्रेंट क्रूड दोनों ही अब तक 80 डॉलर प्रति बैरल से नीचे बने हुए हैं। रविवार रात 6 बजे (ET) अमेरिकी कच्चे तेल और ब्रेंट फ्यूचर्स के साथ-साथ अमेरिकी शेयर बाजार के वायदा सौदों में व्यापार शुरू होगा, जो सप्ताहांत की घटनाओं पर वॉल स्ट्रीट की पहली प्रतिक्रिया होगी।

विशेषज्ञों के अनुसार, जितना अधिक समय यह संघर्ष जारी रहेगा, वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान और कीमतों में तेज़ उछाल का खतरा उतना ही बढ़ता जाएगा। पूर्व CIA अधिकारी और रैपिडन एनर्जी ग्रुप के CEO स्कॉट मॉडल के अनुसार, इज़राइल का मुख्य उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कमजोर करना है, लेकिन इसका द्वितीयक लक्ष्य ईरानी सुरक्षा प्रतिष्ठानों को इतना नुकसान पहुंचाना हो सकता है कि वहां की घरेलू विरोधी शक्तियां शासन के खिलाफ खड़ी हो जाएं।

इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सरकारी मीडिया से बातचीत में कहा कि शासन परिवर्तन इज़राइल का आधिकारिक लक्ष्य नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इस संघर्ष के चलते अयातुल्ला खामेनेई का शासन गिर सकता है। शुक्रवार को रक्षा मंत्री इस्राइल काट्ज़ ने सेना को हमलों को और तेज़ करने का आदेश दिया ताकि शासन की “शक्ति की नींव” को नष्ट कर “अस्थिरता” लाई जा सके। रिपोर्ट के मुताबिक, इज़राइल ने शुरुआत में खामेनेई की हत्या की योजना बनाई थी, लेकिन ट्रंप ने इसे खारिज कर दिया।

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मध्य-पूर्व संकट के क्रूड कारोबार पर असर का इतिहास 

1979 के बाद से बड़े तेल उत्पादक देशों में आठ बार शासन परिवर्तन हुए हैं। इन घटनाओं के बाद तेल की कीमतें औसतन 76% तक बढ़ीं और फिर स्थिर होकर संकट-पूर्व स्तर से 30% ऊपर बनी रहीं। उदाहरण के लिए, 1979 की ईरानी क्रांति के बाद तेल की कीमतें एक साल में लगभग तीन गुना हो गईं, जिससे वैश्विक मंदी आ गई। इसी तरह, 2011 में लीबिया में कर्नल गद्दाफी के पतन के समय भी तेल कीमतें 93 डॉलर से 130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं, जिससे यूरोपीय ऋण संकट गहरा गया था।

मॉडल का कहना है कि ईरान में शासन परिवर्तन का असर लीबिया से कहीं अधिक होगा क्योंकि ईरान बहुत बड़ा उत्पादक देश है। बाज़ार को तब तक प्रतिक्रिया नहीं होगी जब तक यह साफ न हो जाए कि ईरानी शासन का पतन वाकई शुरू हो गया है। यदि ईरान को लगे कि उसका अस्तित्व खतरे में है, तो वह खाड़ी क्षेत्र में ऊर्जा सुविधाओं और तेल टैंकरों पर मिसाइलों से हमला कर सकता है।

RBC कैपिटल मार्केट्स की हेलीमा क्रॉफ्ट के अनुसार, ईरान होर्मुज़ जलडमरूमध्य में खानों का इस्तेमाल कर सकता है — यह वो संकरी समुद्री राह है जिससे दुनिया का 20% तेल गुज़रता है। क्रॉफ्ट ने बताया कि ईरान जहाजों के ट्रांसपोंडर सिग्नल को जानबूझकर जाम कर रहा है, जिससे जहाजों को अपनी स्थिति छुपाने में दिक्कत हो रही है। क़तर एनर्जी और ग्रीस के शिपिंग मंत्रालय ने अपने जहाजों को होर्मुज़ से बचने की चेतावनी दी है।

रैपिडन एनर्जी ने पहले से ही 70% संभावना जताई थी कि अमेरिका ईरान के परमाणु ठिकानों पर इज़राइल के साथ मिलकर हमला करेगा। फोर्डो जैसे स्थलों पर हमले से तेल की कीमतें 4 से 6 डॉलर तक बढ़ सकती हैं। फर्म का अनुमान है कि ईरान द्वारा ऊर्जा संरचना या होर्मुज़ जलडमरूमध्य में जहाजों पर हमला करने की 30% संभावना है। अगर ईरान पूरी ताकत से होर्मुज़ में शिपिंग बाधित करता है, तो तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जा सकती हैं।

रैपिडन के संस्थापक बॉब मैकनेली का कहना है कि बाजार यह मानकर चल रहा है कि अमेरिकी नौसेना (फिफ्थ फ्लीट) संकट को कुछ घंटों या दिनों में हल कर देगी, लेकिन हकीकत में यह बाधा हफ्तों या महीनों तक जारी रह सकती है। ईरान में शासन परिवर्तन की संभावना, अगर वास्तविक होती है, तो यह वैश्विक ऊर्जा बाजार को हिला सकती है। तेल की कीमतों में भारी वृद्धि, आपूर्ति बाधित होने और वैश्विक आर्थिक मंदी की पुनरावृत्ति जैसे गंभीर प्रभाव सामने आ सकते हैं। फिलहाल, बाजार सतर्क है, लेकिन आगामी सप्ताह बेहद निर्णायक हो सकते हैं।

(विदेशी मीडिया रिपोर्ट्स एवं एजेंसी इनपुट के साथ)

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First Published - June 22, 2025 | 5:42 PM IST

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