रियल्टी परियोजनाओं में मजदूरी का काम करने वाले असलम शेख मुंबई से कानपुर वापसी का टिकट कटा चुके हैं। पिछले कुछ अरसे से उन्हें नहीं के बराबर काम मिल रहा था और अब सप्ताहांत लॉकडाउन और रात्रि कफ्र्यू ने काम मिलने की उम्मीद भी खत्म कर दी है। पिछली बार लॉकडाउन के समय बदतर दिन देख चुके असलम अपने परिवार को तो गांव ही छोड़ आए थे, अब खुद भी लौट रहे हैं। उनके पास ही उत्तर प्रदेश में जौनपुर से आए रामसिंह हैं, जो वापसी की तैयारी कर चुके हैं। रामसिंह रेस्तरां उद्योग में काम करते हैं। वह बताते हैं कि उद्योग का काम पूरी तरह ठप होने के कारण पिछले साल लंबा समय उन्होंने गांव में ही गुजारा। थोड़ा-बहुत काम ठप होने पर रेस्तरां मालिक के बुलाने से दीवाली पर मुंबई लौटे थे मगर एक बार फिर काम बंद होता देखकर वक्त रहते गांव पहुंचना उनकी पहली प्राथमिकता है।
असलम शेख और रामसिंह ही नहीं मायानगरी से बड़ी तादाद में कामगार और मजदूर पलायन कर रहे हैं। पिछले साल जिन हालात में लॉकडाउन शुरू हुआ था, कमोबेश उसी तरह के हालात एक बार फिर बनते दिख रहे हैं। पिछले साल देश भर में लाखों कामगारों को पैदल या चौगुने किराये पर निजी वाहनों के जरिये अपने घर पहुंचना पड़ा था। इस बार ऐसी नौबत आने से पहले ही सब महफूज होना चाहते हैं। रियल्टी परियोजनाओं और होटल-रेस्तरां में काम करने वालों को अपने गांव-घर लौटने की ज्यादा हड़बड़ी है और उन्हीं की भीड़ रेलवे स्टेशनों या बसों में ज्यादा नजर आती है। उद्योग जगत के लोगों का कहना है कि इस साल मजदूरों का पलायन 15 मार्च से शुरु हुआ जिसकी वजह लॉकडाउन की फैली अफवाहें रही हैं। अभी तक करीब 50 फीसदी मजदूर अपने गांव वापस जा चुके हैं। भिवंडी ऑटो पावरलूम वीवर्स एसोसिएशन के सचिव विजय नोगजा कहते हैं कि पिछले साल की मुसीबतें याद कर मजदूर डर गए हैं और दोबारा फंसने के डर से वापस जा रहे हैं। होटल एवं रेस्तरां संगठन आहार के सचिव निरंजन शेट्टी कहते हैं कि होटल, रेस्तरां और दूसरे कारोबार सरकारी सख्ती के कारण बंद हो रहे हैं। काम कम है और कामगारों को रोकना भी चुनौती है क्योंकि उनके मन में डर बसा हुआ है। हालांकि पलायन की बड़ी वजह उत्तर प्रदेश में चल रहे पंचायत चुनाव, फसलों की कटाई और शादी-ब्याह का सीजन भी है।
इसका असर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों ही जगह दिख रहा है। उत्तर प्रदेश के उद्यमी बता रहे हैं कि कामगार लॉकडाउन के डर से तो कम जा रहे हैं मगर जो वोट डालने या फसलें काटने के लिए लौट गए हैं, वे काम पर वापस आने के लिए तैयार नहीं हैं। आलम यह है कि उत्तर प्रदेश से दिल्ली, मुंबई और पंजाब की ओर जाने वाली गाडिय़ां खाली दिख रही हैं मगर वहां से आने वाली गाडिय़ां खचाखच भरी हुई हैं।
उत्तर प्रदेश के कारखानों में मजदूर अभी डटे हैं। कानपुर के उद्यमी फहीम ने बताया कि पिछले साल के लॉकडाउन में गए मजदूर छह महीने बाद काम पर आए थे, इसलिए इतनी जल्दी लौटने का उनका इरादा नहीं है। मगर मांग घटने के डर से दिहाड़ी मजदूर नहीं रखे जा रहे हैं और काम नहीं मिलने की वजह से वे लौट रहे हैं।
आगरा के व्यवसायी प्रमोद गौतम ने बताया कि होटलों, रेस्तरां में काम करने वाले मजदूर, टैक्सी वाले या रेहड़ी-पटरी वाले घरों को लौट रहे हैं। लेकिन मुंबई जाने को कोई तैयार नहीं है। लखनऊ से बुधवार और गुरुवार को मुंबई जाने वाली पुष्पक एक्सप्रेस और कुशीनगर एक्सप्रेस में काफी सीटें खाली रहीं। मगर मुंबई से आने वाली गाडिय़ों में वेटिंग टिकट मिलना भी बंद हो गया है। दिल्ली से आने वाली रोडवेज बसों में भी टिकट की मारामारी है।
मुंबई, गुजरात और बेंगलूरु समेत बड़े शहरों से पंचायत चुनाव के लिए लौटे लोग वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में 15 से 28 अप्रैल तक चार चरणों में पंचायत चुनाव होने हैं। गांव में प्रधान पद के लिए चुनाव लडऩे वाले लोगों को फोन कर वोट देने के लिए बुला रहे हैं और ट्रेन, हवाई जहाज के टिकट तथा गाड़ी भी मुहैया करा रहे हैं।
मुंबई में रहने वाले शैलेंद्र गुप्ता बताते हैं कि उनके बड़े भाई चुनाव लड़ रहे हैं और गांव के लोगों को मुंबई से घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उनके हाथ दे दी है। अभी तक 30 लोगों को गांव भेजा जा चुका है। उन्हीं की तरह आशीष यादव अपने चाचा के चुनाव के लिए चार इनोवा में लोगों को भेज चुके हैं और 40 लोगों के रेल टिकट कटवा रहे हैं।
इधर रेलवे पलायन की बात से इनकार कर रहा है। उत्तर प्रदेश में रेलवे अधिकारियों के मुताबिक फसल कटाई और चुनाव के कारण मजदूर वापसी कर रहे हैं मगर पिछले साल जैसे हालात नहीं हैं। लेकिन महाराष्ट्र में बढ़ती भीड़ से निपटने के लिए रेलवे को सख्त कदम उठाने पड़े हैं। मुंबई के 6 स्टेशनों पर प्लेटफॉर्म टिकट की बिक्री रोक दी गई है, जहां से लंबी दूरी की गाडिय़ां चलती हैं।
