अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ड्रंप ने पिछले सप्ताह भारत की हवा ‘बहुत गंदी’ बताते हुए कहा था कि उनके देश में हवा की गुणवत्ता बेहतर है। भारत पर यह आरोप ऐसे समय लगा है, जब यहां ऊर्जा की खपत सुस्त हुई है और प्रति व्यक्ति खपत के हिसाब से इस साल पिछले दो दशक में पहली बार कम हो सकती है, क्योंकि आर्थिक गतिविधियां सुस्त हुई हैं।
बिजली उत्पादन के लिए कोयला सहित जीवाश्म ईंधन जलाने और परिवहन के लिए पेट्रोलियम उत्पाद का इस्तेमाल भारत में वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है।
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के मुताबिक इस साल अप्रैल-सितंबर के दौरान पेट्रोलियम उत्पादों की खपत पिछले साल की समान अवधि की तुलना में करीब 19 प्रतिशत कम हुई है। नैशनल लोड डिस्पैच सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक इसी अवधि के दौरान बिजली का उत्पादन 8 प्रतिशत कम हुआ है।
यह आंकड़े ऐसे समय में आए हैं, जबकि 2019 में प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत कम रही है। ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) वल्र्ड एनर्जी डेटाबेस के मुताबिक यह पिछले साल की तुलना में 2019 में महज 1.2 प्रतिशत बढ़ी है, जो पिछले 18 साल की तुलना में सबसे धीमी वृद्धि है।
इसकी तुलना में पिछले साल चीन में ऊर्जा की खपत 3.9 प्रतिशत, बांग्लादेश में 17.4 प्रतिशत, वियतनाम में 9.6 प्रतिशत और इंडोनेशिया में 7.2 प्रतिशत बढ़ी है। दक्षिण एशिया में ऊर्जा की खपत में सबसे सुस्त वृद्धि पाकिस्तान में रही है और वहां 2019 में प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत में महज 0.3 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है।
बीपी के मुताबिक 2019 में भारत में 24.9 गीगाजूल (जीजे) बिजली की खपत हुई है, जबकि चीन में 98.8 जीजे, वियतनाम में 42.7 जीजे और इंडोनेेशिया में 32.9 जीजे खपत हुई है। बहरहाल प्रति व्यक्ति ऊर्जा का उपभोग श्रीलंका में 16.8 जीजे, पाकिस्तान में 16.4 जीजे और बांग्लादेश में 10.8 जीजे है।
भारत में ऊर्जा की खपत वैश्विक औसत 75.7 जीजे का करीब एक तिहाई है, जबकि अमेरिका के 287.6 जीजे की तुलना में महज 9 प्रतिशत, जर्मनी में 161.7 जीजे खपत की तुलना में 15 प्रतिशत है। साथ ही बीपी के डेटाबेस के मुताबिक खपत के मामले में 77 प्रमुख देशों में भारत 73वें स्थान पर है।
अर्थशास्त्री ऊर्जा की खपत कम होने की वजह आर्थिक सुस्ती बता रहे हैं। केयर रेटिंग के प्रमुख अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘ऊर्जा की खपत औद्योगिक वृद्धि, प्रति व्यक्ति आमदनी और शहरीकरण से बहुत ज्यादा जुड़ा हुआ है। 2019 में औद्योगिक वृद्धि प्रभावित हुई है और प्रति व्यक्ति आमदनी सुस्त हुई है। इसका असर पिछले साल ऊर्जा की मांग पर पड़ा है।’
उन्होंने उम्मीद जताई कि उद्योगों में ऊर्जा के इस्तेमाल में 2020 में आगे और कमी आएगी, इसकी आंशिक भरपाई घरों में वर्क फ्रॉम होम की वजह से हो सकती है। इससे वायु प्रदूषण में गिरावट आएगी।
पिछले 5 साल के दौरान भारत में बिजली की संयुक्त सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) 3 प्रतिशत रही है, जो इसके पहले के पांच साल (2009-14) के 4 प्रतिशत की तुलना में कम है। इसके विपरीत बांग्लादेश, इंडोनेशिया, श्रीलंका में बिजली की मांग बढ़ी है, जबकि वियतनाम में मांग पहले की ही तरह बरकरार रही है।
उदाहरण के लिए प्रति व्यक्ति बिजली की खपत बांग्लादेश में 2014-19 के दौरान 8.1 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ी है, जबकि वियतनाम में वृद्धि 8.4 प्रतिशत, इंडोनेशिया में 3.4 प्रतिशत और श्रीलंका में 8.8 प्रतिशत रही है।
बहरहाल भारत की बड़ी आबादी इसे ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्ता बनाती है, जो चीन, अमेरिका, यूरोप और पश्चिम एशिया से पीछे है। बीपी के मुताबिक भारत ने 2019 में 34.1 एक्साजुलस (ईजे) ऊर्जा का उपयोग किया, जो एक साल पहले के 33.3 ईजे की तुलना में अधिक है। इसकी तुलना में चीन ने 141.7 ईजे जबकि अमेरिका ने 94.6 ईजे, यूरोप ने 83.8 ईजे का उपयोग किया। रूप 2019 में ऊर्जा खपत के मामले में पीछे रहा और उसने 29.8 ईजे का इस्तेमाल किया है।
