दिवंगत उद्योगपति रतन टाटा की वसीयत पर उनके करीबी मोहिनी मोहन दत्ता तथा टाटा परिवार के बीच उठ रहे विवाद के दरम्यान मामला बंबई उच्च न्यायालय जा रहा है। कानूनी प्रतिनिधि (एक्जिक्यूटर) यह तय करने के लिए अगले हफ्ते अदालत का रुख कर सकते हैं कि वसीयत सच है या नहीं और दोनों के बीच समझौता कितने में होगा।
एक सूत्र ने बताया कि वसीयत के एक्जिक्यूटर उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे से इस मामले में मध्यस्थता के लिए कह रहे हैं। वसीयत की सत्यता प्रोबेट के जरिये साबित की जाती है। अदालत उसे सच मान ले तो वही अंतिम वसीयत मानी जाती है। मगर एक वकील ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि सुनवाई के दौरान आपत्तियां उठाई जा सकती हैं।
टाटा परिवार के कुछ सदस्य नहीं चाहते कि रतन टाटा की वसीयत पर सार्वजनिक रूप से कोई झगड़ा हो। इसीलिए वे मध्यस्थ के जरिये मामला निपटाना चाहते हैं। समूह के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि टाटा की वसीयत में दत्ता का नाम होने से परिवार के कुछ सदस्य हैरान हैं। हालांकि यह नहीं पता है कि सुलह होने पर दत्ता को कितनी रकम दी जानी है मगर खबर है कि टाटा ने अपनी वसीयत में एक तिहाई संपत्ति दत्ता के नाम कर दी है। बाकी संपत्ति उनकी बहनों दीना और शीरीन जेजीभॉय के बीच बांटी जानी है। टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन और रतन टाटा के सौतेले भाई तथा उनके परिजनों को वसीयत में कुछ नहीं मिला है।
टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी मेहली मिस्त्री और डेरियस खंबाटा तथा दीना और शीरीन वसीयत के एक्जिक्यूटर हैं। इस बारे में जानकारी के लिए टाटा ट्रस्ट्स को ईमेल भेजा गया था मगर खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया। एक्जिक्यूटरों में से मेहली मिस्त्री ने भी संदेशों का कोई जवाब नहीं दिया।
टाटा समूह और टाटा ट्रस्ट्स के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का पिछले साल 9 अक्टूबर को निधन हो गया था।
अंदर की जानकारी रखने वालों ने बताया कि टाटा के साथ दत्ता की मुलाकात 1965 में जमशेदपुर में हुई थी और उसके बाद दोनों करीबी दोस्त बन गए। अब 74 साल के हो चुके दत्ता ने बाद में स्टैलियन ट्रैवल एजेंसी नाम से ट्रैवल कारोबार भी शुरू किया था, जिसे कुछ अरसा बाद ताज की ट्रैवल इकाई में मिला दिया गया। दत्ता ने समूह की वित्तीय सेवा कंपनी टाटा कैपिटल के शेयर भी खरीदे हैं।