उत्तर प्रदेश का हाथरस शहर देश भर में ‘हींग नगरी’ के नाम से मशहूर है और अब यहां की हींग की खुशबू देश ही सरहद लांघकर दुनिया भर में पहुंच रही है। हाथरस की हींग को भौगोलिक संकेतक (जीआई) मिल गया है और प्रदेश सरकार की एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में भी इसे शामिल किया गया है। इसके बाद से हाथरस में हींग की प्रोसेसिंग करने वाली इकाइयों की संख्या तेजी से बढ़ी है। साथ ही नए कारोबारी भी इस धंधे में उतरने लगे हैं।
केंद्र सरकार की मदद से हाल ही में हिमाचल प्रदेश में हींग की खेती शुरू हो गई है। हाथरस के कारोबारियों को उम्मीद है कि वहां फसल तैयार होने पर प्रोसेसिंग के लिए देसी उत्पाद मिलने लगेगा। इससे हींग के लिए आयात पर उनकी निर्भरता कम हो जाएगी।
हाथरस में हींग का कारोबार करीब 150 साल से हो रहा है और पिछले कुछ समय से लगातार मिल रहे सरकारी प्रोत्साहन ने इसे कुटीर उद्योग की शक्ल दे दी है। देश में फिलहाल हर साल 1,500 टन के आसपास हींग की खपत होती है, जिसमें से 90 फीसदी मांग हाथरस ही पूरी करता है। हाथरस जिले से हर साल लगभग 900 करोड़ रुपये का हींग कारोबार होता है। प्रोसेसिंग के बाद तैयार हींग के निर्यात पर अभी तक गुजरात के कारोबारियों का कब्जा है मगर हाथरस से भी अब निर्यात की शुरुआत हो चुकी है।
एक जमाने से हींग का इस्तेमाल मसाले और दवा के तौर पर किया जाता है। इसे तैयार करने के लिए हींग के पौधे से निकलने वाला दूध सुखाकर ठोस पदार्थ तैयार किया जाता है। उसके बाद उसी ठोस पदार्थ से हींग बनाई जाती है। हाथरस के कारोबारी हींग तैयार करने के लिए कच्चा माल अफगानिस्तान, ईरान, उज्बेकिस्तान, कजाखस्तान व ताजिकिस्तान से मंगाते हैं। कच्चे माल को यहां की इकाइयों मे प्रोसेस किया जाता है।
हाथरस के हींग कारोबारी शम्मी बताते हैं कि अभी 90 फीसदी कच्चा माल अफगानिस्तान से आता है और बाकी माल ईरान तथा ताजिकिस्तान से मंगाया जाता है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान से आयात में दिक्कतें आने पर स्थानीय कारोबारी ईरान के माल पर निर्भर हुए थे। हालात सुधरे तो हींग बनाने के लिए कच्चा माल एक बार फिर अफगानिस्तान से ही आने लगा है। भारतीय घरों में भी काबुली हींग की खुशबू ही सबसे ज्यादा पसंद की जाती है। चूंकि कच्चे माल के लिए आयात पर ही निर्भरता है, इसीलिए दुनिया भर के घटनाक्रम का असर भी इसकी कीमतों पर पड़ता है।
हींग का पौधा ठंडी और सूखी जलवायु में ही उगता है। वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले कुछ इलाकों को इसकी खेती के लिए मुफीद पाया। इसलिए केंद्र सरकार की मदद से वहां कुछ क्षेत्रों में हींग की खेती शुरू की गई है। फिलहाल हिमाचल में 250-300 हेक्टेयर में हींग की खेती की जा रही है। हींग का पौधा तैयार होकर उसमें से दूध निकलने में कम से कम पांच साल का समय लग जाता है।
हाथरस के कारोबारियों को उम्मीद है कि आने वाले समय में उन्हें भारत में ही तैयर हींग के पौधों का दूध प्रोसेसिंग के लिए मिलेगा। इससे उनकी लागत भी काफी बचेगी और सरकार का राजस्व भी बच जाएगा। हींग कारोबारी जगदम्बा प्रधान बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में हींग की कीमत 35,000 से 40,000 रुपये प्रति किलोग्राम चल रही है। भारत में हींग की खेती का रकबा बढ़ेगा तो कीमत में गिरावट आएगी और कारोबारियों को भी फायदा होगा।
भारत में प्रोसेस की गई 90 फीसदी से ज्यादा हींग की खपत देश में ही हो जाती है। कई दशकों से गुजरात के करोबारी कुछ भारतीय हींग विदेश भेजते रहे हैं मगर अब हाथरस के कारोबारी भी निर्यात करने लगे हैं। हाथरस की हींग को ऑस्ट्रेलिया और कनाडा भेजने वाले अंकुर तिवारी कहते हैं कि हींग को जीआई टैग मिलने तथा ओडीओपी में शामिल किए जाने के बाद कई युवा भी इस पारंपरिक धंधे में उतर रहे हैं। उनमें से ज्यादातर निर्यात पर जोर दे रहे हैं। तिवारी के मुताबिक अभी तो ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में बसे भारतीय परिवार की हाथ की हींग के ज्यादातर कद्रदान हैं मगर पश्चिम एशिया के देशों को भी इसका निर्यात होने लगा है।
तिवारी बताते हैं कि हाथरस में अलग-अलग तीक्ष्णता के साथ कई किस्म की हींग तैयार की जाती है। तीक्ष्णता कम या ज्यादा करने के लिए उसमें अन्य पदार्थ भी मिलाए जाते हैं। उनका दावा है कि हाथरस में जितनी किस्म की हींग तैयार होती है उतनी दुनिया में कहीं और नहीं मिलती। यही वजह है कि अब विदेश में भी इसकी मांग होने लगी है। हींग की खेती भारत में ही शुरू होने पर यहां तैयार माल विदेशी माल से सस्ता हो जाएगा, जिससे निर्यात में और भी तेजी आएगी।
हाथरस में हींग की प्रोसेसिंग और कारोबार ज्यादातर असंगठित ही है मगर इसे ओडीओपी में शामिल किए जाने के बाद हींग कारोबार को पंख लग गए हैं। जीआई टैग मिलने के बाद देश भर में हाथरस के हींग की मांग होने लगी है और यहां के कारोबारी बिचौलियों के बजाय सीधे रिटेलरों तक अपना माल पहुंचा रहे हैं।
जगदम्बा प्रधान बताते हैं कि प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्योग उन्नयन योजना के तहत प्रोसेसिंग इकाइयों को 35 फीसदी तक सब्सिडी दी जा रही है। ओडीओपी की सूची में आने पर कर्ज भी आसानी से मिल रहा है। इस वजह से यहां बड़े पैमाने पर हींग प्रोसेसिंग इकाइयां खुद रही हैं। हाथरस में इस समय 150 से ज्यादा इकाइयों में हींग की प्रोसेसिंग की जा रही है। जिले में 12,000 से ज्यादा लोग सीधे हींग प्रोसेसिंग इकाइयों में काम कर रहे हैं। उनके अलावा करीब 20,000 लोग उसकी खरीद-बिक्री से जुड़े हैं।