विश्व जल दिवस पर जारी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में शहरी भारत को लेकर एक चिंताजनक समस्या सामने आई है। इस सर्वेक्षण में शामिल घरों में से केवल 6 प्रतिशत को ही स्थानीय नगर निगमों से सीधे पीने योग्य गुणवत्ता का पानी मिलता है। लोकलसर्किल्स द्वारा किए गए इस स्टडी से पता चलता है कि शहरी घरों में से 62 प्रतिशत लोग पानी को पीने लायक बनाने के लिए वाटर प्यूरीफायर, रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) सिस्टम या उबालने आदि पर निर्भर हैं।
इस सर्वेक्षण में 302 जिलों से 30,000 से अधिक लोगों के उत्तर मिले और यह शहरी भारत में पानी की गुणवत्ता से जुड़ी लगातार बनी हुई चुनौतियों को उजागर करता है। इसमें 66 प्रतिशत जवाब देने वाले पुरुष थे और 34 प्रतिशत महिलाएं थीं। लगभग 43 प्रतिशत जवाब देने वाले टियर-I शहरों से, 25 प्रतिशत टियर-II से, और 32 प्रतिशत टियर-III, IV और V जिलों से थे।
जब घरों में आने वाले पाइप के पानी की गुणवत्ता के बारे में पूछा गया, तो केवल 30 प्रतिशत शहरी घरों ने इसे “अच्छा” बताया, जबकि 14 प्रतिशत ने इसे “बहुत अच्छा” कहा। वहीं, 30 प्रतिशत ने इसे “औसत” माना, 21 प्रतिशत ने इसे “खराब” बताया और 7 प्रतिशत ने इसे “बहुत खराब” कहा। चिंताजनक बात यह है कि 12 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उनके पास पाइप से पानी की सुविधा ही नहीं है।
इन नतीजों से पता चलता है कि हालांकि शहरी भारत में पाइप से पानी पहुंचाने में बड़ी प्रगति हुई है, लेकिन कई घरों को अभी भी पानी की गुणवत्ता में असमानता का सामना करना पड़ रहा है।
पानी की सुरक्षा को लेकर चिंताओं के कारण, ज्यादातर शहरी घरों ने अलग-अलग तरीकों का सहारा लिया है। सर्वे में पाया गया कि 31 प्रतिशत लोग वाटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करते हैं और 31 प्रतिशत RO सिस्टम पर निर्भर हैं। 14 प्रतिशत लोग पानी को उबालकर पीते हैं और 3 प्रतिशत लोग chlorination, फिटकरी (alum) या अन्य खनिजों का उपयोग करते हैं। इसके अलावा 3 प्रतिशत लोग मिट्टी के बर्तनों से प्राकृतिक filtration करते हैं। 6 प्रतिशत को पानी शुद्ध करने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि वे इसे सुरक्षित मानते हैं।
साथ ही एक छोटा हिस्सा बोतलबंद पानी पर निर्भर है, जिसमें 3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे पीने और खाना बनाने के लिए बोतलबंद पानी खरीदते हैं।
ये नतीजे केंद्र सरकार के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा किए गए पहले “पेय जल सर्वेक्षण” से भी मेल खाते हैं, जिसमें 485 शहरों का आकलन किया गया। इस सर्वे में पता चला कि केवल 46 नगर पालिकाओं ने पानी की गुणवत्ता के टेस्ट में 100 प्रतिशत पास होने का रेट हासिल किया। यह चिंताजनक है, क्योंकि भारत में 4,000 से अधिक शहर और कस्बे हैं, जिनमें 300 की आबादी 1 लाख से ज्यादा है।
इसके अलावा, 2018 की नीति आयोग की रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि भारत में हर साल लगभग 2 लाख लोग सुरक्षित पानी की कमी के कारण मरते हैं, और अनुमान लगाया गया कि 2030 तक 60 करोड़ भारतीयों को पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
केंद्र सरकार ने 2019 में शुरू किए गए जल जीवन मिशन (JJM) के जरिए ग्रामीण घरों तक नल से पानी पहुंचाने के लिए बड़े कदम उठाए हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2024 तक 78 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण घरों (152 मिलियन घरों) को नल से पानी की सुविधा मिल चुकी है। हालांकि, शहरी पानी की गुणवत्ता अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जिसके लिए ट्रीटमेंट प्लांट्स पर शुद्धिकरण मानकों को सख्ती से लागू करने और नगर निगम की सप्लाई लाइनों की कड़ी निगरानी की जरूरत है।
केंद्रीय बजट 2025-26 में पेयजल और स्वच्छता विभाग के लिए 74,226 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिसमें से बड़ा हिस्सा JJM के लिए है। यह कार्यक्रम, जिसे 2028 तक बढ़ाया गया है, बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता सुधारने और “जन भागीदारी” मॉडल के जरिए ग्रामीण पाइप जलापूर्ति को बनाए रखने पर केंद्रित होगा।