कनॉट प्लेस पर फूल बेचने वाले 67 वर्षीय रामबाबू याद करते हैं कि कैसे महामारी ने उनके व्यवसाय को चौपट कर दिया था। उन्हें 2020 से अब तक हुए नुकसान का आकलन करना चुनौतीपूर्ण लग रहा है जब फूलों के खरीदार नाम मात्र के थे। उन्हें बस इतना याद है कि कोविड-19 उनके व्यवसाय के लिए सबसे बड़ी त्रासदी रही।
खान मार्केट के एक प्रसिद्ध रेस्तरां में काम करने वाले कुछ 30 खानसामों ने अफसोस जताते हुए बताया कि लंबे समय तक चले लॉकडाउन के बाद जब दुकानें खुलीं तो ग्राहक नहीं आने लगे। साथ ही साथ कोविड नियमों का पालन करने के लिए कई कार्य किए गए जिससे अतिरिक्त लागत का भी बोझ बढ़ गया।
उन्होंने बताया कि जब रेस्तरां फिर से खुले तो ग्राहक गायब हो गए और बैठने के तरीकों में बदलाव, ऑनलाइन डिलिवरी पर अधिक ध्यान केंद्रित करने, साफ-सफाई के साथ-साथ दस्ताने, सैनिटाइजर और मास्क आदि पर रोजाना होने वाले खर्च से लागत पर भी असर पड़ गया। उद्योग ने कोविड-19 के दौरान आतिथ्य क्षेत्र के संकट को दर्शाया। नैशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, वित्त वर्ष 2021 में इस उद्योग में 53 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
शहर की कई खुदरा दुकानों, रेस्तरां और छोटे विक्रेताओं ने यह बताने से इनकार कर दिया कि कोविड ने उनके व्यवसाय को किस तरह से प्रभावित किया है। उनमें से कई का कहना है कि उनकी कमाई अब भी कम है, जिससे वे निराश हैं।
व्यवसाय के इतर छात्रों ने भी कोविड-19 के प्रभाव को काफी महसूस किया है। अहमदाबाद में अर्बन प्लानिंग में स्नातकोत्तर के छात्र 24 वर्षीय विराज जोशी, जो उस वक्त विदेशी धरती वियतनाम में फंसे थे, अपने संघर्ष को इस तरह बयां करते हैं, ‘जब पहला लॉकडाउन लगा था तो मुझे यह भी नहीं पता था कि मैं वापस घर कब जाऊंगा।’
विराज उन 36 लाख विदेशी छात्रों में से एक थे जिन्हें सरकार ने लॉकडाउन के दौरान स्वदेश बुलाया था। ऑनलाइन तरीके से अपने कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने को काफी दुखद और निराशाजनक बताते हैं। लेकिन, 22 साल के आईटी कर्मचारी मोइन खान, जिन्होंने कोविड के दौरान नौकरी में कदम रखा वह इसे सुंदर विचार करार देते हैं।
उन्हें दफ्तर जाने की जरूरत नहीं थी और कहीं से भी काम करने की आजादी थी। साथ ही वे दफ्तर में कंप्यूटर के सामने और अन्य सहकर्मियों के साथ काम नहीं करने वाली पीढ़ी के अंतर को भी महसूस करते हैं। गुरुग्राम की डेटा विश्लेषक रितिका (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि घर से काम करने में समय का प्रबंधन ठीक से नहीं हो पाता है, लेकिन यह जो लचीलापन प्रदान करता है वह काफी बढ़िया है।
हालांकि, कई ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कोविड के दौरान अवसर भी तलाश किया, भले ही वह कम समय के लिए था। उदाहरण के लिए, रमेश शिंदे (बदला हुआ नाम) को लें जो मोबाइल फोन विक्रेता हैं। वह बताते हैं, ‘यह एक अवसर था क्योंकि स्कूलों के ऑनलाइन होने और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के चलते बजट स्मार्टफोन की मांग चरम पर थी। स्मार्टफोन की तत्काल आवश्यकता वाले उपभोक्ताओं ने हमसे संपर्क किया।’ यह अलग बात है कि लंबे समय तक रहे लॉकडाउन ने शिंदे सहित कई व्यवसायियों को नुकसान भी पहुंचाया है।
नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च द्वारा एक महामारी प्रभाव अध्ययन के अनुसार, लगभग 40 फीसदी छोटे व्यवसाय के मालिक अब स्व-नियोजित नहीं हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सा विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर नीरज निश्चल बताते हैं कि कैसे महामारी के दौरान दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मौजूदा स्थिति पर निश्चल कहते हैं कि अब मामलों में वृद्धि होने पर भी घबराने की कोई बात नहीं है। वह कहते हैं, ‘हम में से अधिकांश को टीका लगाया जा चुका है और उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है।’
एम्स से लौटने के दौरान निश्चल संवाददाताओं को अपनी सलाह देते हैं और कहते हैं, ‘अभी सतर्कता कम नहीं करें और अस्पताल में भर्ती होने की दर पर नजर रखें।‘ साथ ही वह कहते हैं कि फ्रंटलाइन वर्करों ने न केवल अपने स्वयं के जीवन की कीमत पर चिकित्सा सेवाएं प्रदान की हैं, बल्कि उन्हें गलत सूचना की महामारी से भी लड़ना पड़ा है।
(बिज़नेस स्टैंडर्ड के राहुल खुल्लर इंटर्नशिप प्रोग्राम के पहले बैच की उदिशा श्रीवास्तव, नुहा बुबेरे, ऐश्ली वर्गीज, सनिका सरोद, अनन्यनारायण धनबलन और अजिंक्य कंवल की रिपोर्ट)