साल 2022 के दौरान नौकरियां चर्चा का एक बड़ा मुद्दा बनी रहीं। निजी क्षेत्र में हुई छंटनी से लेकर रोजगार बाजार को प्रभावित करने वाली सरकारी नीतियों तक इनसे जुड़ी तमाम खबरें सुर्खियों में रहीं। जून आते-आते सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ देश भर में विरोध शुरू हो गया। सड़कें रुक गईं और रेल के चक्के जाम हो गए क्योंकि सड़कों और पटरियों पर युवाओं का सैलाब इकट्ठा हो गया।
नवंबर में सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि आरक्षण के लिए 50 फीसदी की सीमा के पार जाना गैर कानूनी नहीं है। बेरोजगारी संकट को इस साल सरकार ने भी महसूस किया और उसे कार्रवाई भी करनी पड़ी। अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों के जरिये 2023 तक दस लाख लोगों को काम पर रखा जाएगा। उसी महीने रोजगार मेले में प्रधानमंत्री ने रोजगार देने का सरकार का वादा दोहराते हुए 75,000 लोगों को नियुक्ति पत्र भी सौंपा।
इस बीच साल की शुरुआत कुछ निराशाजनक रही। पिछले दो वर्षों के दौरान वैश्विक महामारी के कारण लगाए गए प्रतिबंध और लॉकडाउन खत्म होने के बाद भारतीय श्रम बाजार जैसे ही पटरी पर लौटने लगा, कोविड-19 की ओमीक्रोन किस्म ने उसे तबाह कर दिया। ओमीक्रोन से प्रभावित मार्च तिमाही को भी लें तो तिमाही रोजगार सर्वेक्षण (क्यूईएस) के चौथे दौर में नए रोजगार सृजन में 10 फीसदी की कमी दर्ज की गई। इस दौरान कृषि से इतर नौ क्षेत्रों में महज 3,50,299 नए रोजगार सृजित हुए, जबकि इससे पिछली तिमाही यानी वित्त वर्ष 2022 की दिसंबर तिमाही में यह आंकड़ा 3,90,116 रहा था। बाद की तिमाहियों के आंकड़े अभी जारी नहीं किए गए हैं।
सितंबर तिमाही के नवीनतम त्रैमासिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) और पिछले महीने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि शहरी बेरोजगारी दर में लगातार पांचवीं तिमाही में गिरावट दर्ज की गई है। यह पिछले चार साल के सबसे निचले स्तर 7.2 फीसदी पर रही। एक साल पहले की समान तिमाही में यह आंकड़ा 9.8 फीसदी रहा था।
सरकार का अनुमान है कि घरेलू श्रम बाजार में करीब 10 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले औपचारिक क्षेत्र ने 2022 की पहली तीन तिमाहियों के दौरान लगभग 91 लाख नए रोजगार सृजित किए। एक साल पहले की समान अवधि में यह आंकड़ा 75 लाख था। यह अनुमान कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के सदस्यता आंकड़ों पर आधारित है, जिसमें करीब 6.7 करोड़ नियमित सदस्य हैं। ईपीएफओ के आंकड़े बताते हैं कि श्रम बाजार में कितने रोजगार हैं और पीएलएफएस बताता है कि कितने रोजगार दिए जा रहे हैं। दोनों आंकड़े वैश्विक महामारी के बाद श्रम बाजार के परिदृश्य में सुधार की ओर इशारा करते हैं।
हालांकि युवाओं में ऊंची बेरोजगारी दर नीति निर्धारकों के लिए चिंता का विषय बन गया है। अगस्त में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलो) की रिपोर्ट में कहा गया कि युवाओं में बेरोजगारी दर पूरी दुनिया में वयस्क बेरोजगारी दर की तीन गुना थी। सितंबर तिमाही के पीएलएफएस आंकड़ों के अनुसार युवाओं में बेरोजगारी दर 18.5 प्रतिशत थी, जो पिछली तिमाही की 22.5 प्रतिशत दर से थोड़ी कम रही। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 2020 में 15 से 24 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी दर बढ़कर 23.2 प्रतिशत हो गई, जो 2018 में 20.6 प्रतिशत थी।
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2012 और 2010 में यह आंकड़ा क्रमशः 29.3 और 32.4 प्रतिशत के साथ काफी ऊंचे स्तर पर थी। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में सहायक प्राध्यापक हिमांशु कहते हैं कि पीएलफएस के आंकड़ों के अनुसार इस साल बेरोजगारी दर में कमी आई है मगर रोजगार सृजन भारतीय श्रम बाजार के लिए अब भी बड़ी चुनौती बना हुआ है। इसकी वजह यह है कि अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाली एक बड़ी आबादी ऐसे सर्वेक्षणों में शामिल नहीं हो पाती, इसलिए वास्तवित आंकड़ों में भी इनकी गिनती हो पाती है। हिमांशु कहते हैं, ‘लंबे समय से रिक्त पदों को भरने की सरकार की पहल से खास अंतर नहीं आएगा और न ही बेरोजगारी दर सुधारने में इससे कोई खास मदद मिल पाएगी। युवाओं में बेरोजगारी की स्थिति पर भी कोई खास असर नहीं होगा। ऐसे में सरकार के लिए विनिर्माण, निर्माण, सेवा क्षेत्रों में सही मायनों में रोजगार सृजन करना जरूरी हो गया है।’
हालांकि सरकार ने 2020 में चार श्रम संहिताओं को अंतिम रूप दे दिया था मगर कोई खास प्रगति नहीं हो पाई है और श्रम संगठन अब भी इनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रस्तावित श्रम सुधारों में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों सहित श्रमिकों को वैधानिक न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं देने की बात कही गई है। दूसरी तरफ कई बड़े कारखानों में श्रमिकों का विरोध प्रदर्शन बढ़ता जा रहा है।
श्रम संगठन ठेके पर नौकरियों के बढ़ते चलन और असंगठित क्षेत्र के कामगारों के हितों से जुड़े प्रावधान कमजोर होने का विरोध कर रहे हैं। सरकार का दावा है कि असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सामाजिक सुरक्षा देने का उसका प्रयास सफल रहा है। असंगठित क्षेत्र के कामगारों के आंकड़े रखने वाले ई-श्रम पोर्टल पर अब तक करीब 28.4 करोड़ पंजीकरण हुए हैं। इससे इस क्षेत्र के लोगों तक लाभ सीधे पहुंचाना संभव हो पाएगा। हालांकि इन बातों के बावजूद नए साल में श्रम बाजार में सुधार जारी रखने में सरकार के सामने कई चुनौतियां पेश आएंगी। खासकर युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर मुहैया करने में सरकार को बहुत मशक्कत करनी होगी।