धान की कटाई का सीजन अभी शुरू ही हुआ है लेकिन पंजाब में इस साल 30 सितंबर तक पराली जलाने की घटनाएं एक साल पहले की समान अवधि के मुकाबले 10 गुना बढ़ चुकी हैं। किसानों की आलू और मटर की फसल तैयार हैं। राज्य में प्रतिबंध के बावजूद किसानों ने पराली जलाना शुरू कर दिया है। धान की कटाई पूरी होने पर पराली जलाने की घटना कई गुना बढ़ने की आशंका है।
वाहन प्रदूषण और लगातार हो रहे निर्माण के कारण प्रदूषण से जूझती दिल्ली में वायु गुणवत्ता फिलहाल ‘खराब’ श्रेणी में है। मगर यह पिछले छह साल (2020 को छोड़कर) में हवा का सबसे स्वच्छ स्तर है और इसका श्रेय अच्छे मॉनसून को जाता है।
केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने उम्मीद जताई है कि यह साल कुछ अलग होगा। इसके लिए वे काफी सक्रियता से काम कर रहे हैं। मगर जमीनी स्तर पर किसानों का कहना है कि पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। अगर उनकी बात मानी जाए तो पराली जलाने में इस साल भी कोई कमी नहीं आने वाली है।
राज्य में 1 अक्टूबर को धान खरीद का सीजन शुरू होने के साथ ही भारत-पाकिस्तान सीमा से करीब 3 किलोमीटर दूर अमृतसर के अटारी गांव के 52 वर्षीय किसान पुलविंदर मान काफी आशान्वित दिख रहे हैं। उनके खेत हरे और सुनहरे रंग की फसल से लदे पड़े हैं जो अच्छी फसल का संकेत है। मगर इस खुश खबरी के बीच पराली जलाने की समस्या भी छिपी है जो पंजाब, हरियाणा और नई दिल्ली में विवाद को भड़काती है।
पंजाब, हरियाणा एवं अन्य जगहों पर मान जैसे किसानों के लिए पराली जलाने की प्रथा लंबे समय से एक त्वरित समाधान रही है। सितंबर के आखिर अथवा अक्टूबर की शुरुआत में धान की कटाई होने के बाद गेहूं एवं अन्य रबी फसलों की बोआई के लिए खेत को तैयार करने के लिए एक महीने से भी कम समय होता है। ऐसे में खेतों को जल्द साफ करने के लिए किसान धान के बचे हुए डंठल को जला देते हैं। मगर यह कोई छोटी समस्या नहीं है, क्योंकि केवल पंजाब में ही 31 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में धान की खेती की जाती है।
मान ने पूछा, ‘अधिकारी हमें क्या सिखा सकते हैं जो हम पहले से नहीं जानते?’ उन्होंने कहा, ‘हमारे परिवार पीढ़ियों से ऐसा करते आ रहे हैं। सरकारी मदद के बिना हम कोई विकल्प नहीं तलाश सकते।’
केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर राजनेताओं के लिए पराली जलाना एक बड़ा मुद्दा बन गया है। इस साल पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने 16 जिलों और 663 गांवों की पहचान की है, जहां पराली बहुत अधिक जलाई जाती है। साल 2023 में 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच पराली जलाने के 36,663 मामलों में से 64 फीसदी मामले इन्हीं क्षेत्रों से दर्ज किए गए थे।
पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए अपने बजट में वृद्धि की है। केंद्र सरकार ने भी राज्य को वित्तीय सहायता प्रदान की है, जिसमें वित्त वर्ष 2019 और वित्त वर्ष 2025 के बीच 1,681 करोड़ रुपये का योगदान दिया गया है।
केंद्र सरकार ने 2018 से अब तक पंजाब को 1,30,851 फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनें मुहैया कराई हैं। इस साल 20,000 अतिरिक्त मशीनें वितरित की गई हैं। मगर किसानों का कहना है कि अक्सर मशीनें उन तक नहीं पहुंच पाती हैं।
फिरोजपुर जिले के किसान लखविंदर सिंह ने कहा, ‘इन मशीनों पर सब्सिडी व्यक्तिगत तौर पर 50 फीसदी और किसान समूहों के लिए 80 फीसदी तक होती है। मगर डीलर सब्सिडी देने से पहले ही मशीनों की कीमतें बढ़ा देते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘आखिरकार सब्सिडी का कोई फायदा नहीं होता। इसके अलावा मशीनें अक्सर खराब हो जाती हैं। कोई छोटा किसान उसकी मरम्मत तक नहीं करा सकता और इसलिए पराली जलाना उनके लिए आसान विकल्प बना हुआ है।’
कई किसानों का कहना है कि सरकार की ओर से मिलने वाली वित्तीय सहायता प्रभावी तौर पर किसानों तक नहीं पहुंच रही है। इसके अलावा किसान सरकार द्वरा किए गए उपायों को प्रभावी तौर पर लागू किए जाने के लिए उपयुक्त नीतियों के अभाव की ओर भी इशारा करते हैं।
पटियाला के किसान हरदीप सिंह ने कहा, ‘अगर आप देखें कि रकम का वितरण किस प्रकार किया जाता है तो आपको समस्या खुद समझ में आ जाएगी।’ उन्होंने कहा, ‘अगर यह इतना गंभीर मुद्दा है तो पराली प्रबंधन के लिए आवंटन में पर्याप्त वृद्धि क्यों नहीं की गई?’
पंजाब सरकार ने इस मद में अपनी वित्तीय प्रतिबद्धता बढ़ाई है। वित्त वर्ष 2022 में कांग्रेस सरकार ने इस में 40 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, मगर मौजूदा आप ने वित्त वर्ष 2024 में 350 करोड़ रुपये तक का आवंटन किया है। यह वित्त वर्ष 2023 में आवंटित 200 करोड़ रुपये के मुकाबले 75 फीसदी अधिक है। इसके बावजूद रकम के वर्गीकरण को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
वित्त वर्ष 2022 में इस रकम का आवंटन ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ के तहत किया गया था। मगर वित्त वर्ष 2024 में रकम को विभिन्न श्रेणियों में वितरित किया गया, जिसमें ‘कृषि में मशीनीकरण’, ‘पराली जलाने की जांच’ और ‘उपकरण एवं मशीनरी’ शामिल हैं। वित्त वर्ष 2025 में राज्य के बजट में पराली का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं था, लेकिन जुलाई में 500 करोड़ रुपये की योजना की घोषणा की गई।
सिंह ने कहा, ‘क्या हम किसानों को दोष देना उचित है, जबकि सरकार खुद अपनी योजनाओं के बारे में स्पष्ट नहीं है?’
खेतों में पराली जलाने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए पंजाब सरकार ने जागरूकता अभियान शुरू किया है। इसके अलावा राज्य सरकार ने बायोगैस संयंत्रों में निवेश किया है और पराली जलाने वाले किसानों को दंडित करने के लिए रेड-मार्क की धमकी दी है। रेड-मार्क को भूमि रिकॉर्ड के अनुसार चिह्नित किया जाएगा। इसके तहत चिह्नित किसान ऋण नहीं ले पाएंगे। वे अपनी जमीन की बिक्री नहीं कर पाएंगे। ऐसे किसान हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन भी नहीं कर पाएंगे और अपने मौजूदा हथियार लाइसेंस का नवीनीकरण भी नहीं करा पाएंगे।
इस बीच, खास तौर पर लुधियाना जिले में बायोगैस संयंत्रों के कारण विरोध प्रदर्शन बढ़ने लगा है। स्थानीय लोगों को इसके कारण पर्यावरण और मिट्टी को नुकसान पहुंचने की आशंका है। लुधियाना के घुंगराली राजपुतान गांव में जनता के दबाव के कारण एक बायोगैस संयंत्र को बंद करना पड़ा।
मान ने कहा, ‘हमें नहीं पता कि इन संयंत्रों के बारे में क्या सच है या झूठ।’ उन्होंने कहा, ‘इससे हमें पराली को जलाने का विकल्प मिल सकता था, लेकिन सरकार लोगों को समझाने में विफल रही है। अगर आप जनता का विश्वास नहीं जीत सकते तो इतने बड़े बजट का क्या मतलब है?’
मान ने जोर देकर कहा कि सरकार को दो प्रमुख मुद्दों- किसान हितैषी नीतियां करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करने- पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा है कि उसके बाद ही पराली जलाने की समस्या के समाधान में वास्तविक प्रगति होगी।
मगर फिलहाल खबर अच्छी नहीं दिख रही है।