आने वाले दिनों में जमीनी स्तर पर ऐसी कार्रवाई देखी जा सकती है जिससे 1960 की सिंधु जल संधि पर लगी रोक का प्रभाव दिखने लगेगा। इस संधि के जरिये भारत से पाकिस्तान की सिंधु नदी घाटी में बहने वाली नदियों के पानी के इस्तेमाल पर नियंत्रण किया जाता है। इस मसले की जानकारी रखने वाले सूत्र ने यह जानकारी दी है। सूत्र ने इस तरह की धारणा को भी खारिज कर दिया कि पश्चिम की नदियों, सिंधु, झेलम और चिनाब पर भारत की जल भंडारण क्षमता बढ़ाए बिना कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है जिन पर संधि के मुताबिक पाकिस्तान का अधिकार है।
सूत्र ने बताया कि इन नदियों पर भंडारण क्षमता का विस्तार अब एजेंडे में है जो संधि की उन पाबंदियों के न रहने से अधिक संभव हो गया है जो पानी के एक नदी घाटी से दूसरी नदी घाटी में हस्तांतरण पर लगाया गया था।
मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक आतंकवादी हमले में 26 लोगों के मारे जाने के एक दिन बाद, भारत ने सिंधु जल संधि को रद्द कर दिया और पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों को कम कर दिया। सरकार ने कहा था कि हमले के सीमा पार संबंध थे और घोषणा की कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना पूरी तरह खत्म नहीं करता है तब तक इस जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जा रहा है।
विश्व बैंक की मध्यस्थता में इस संधि पर भारत और पाकिस्तान ने 19 सितंबर, 1960 को हस्ताक्षर किया था। इस संधि के तहत, सिंधु नदी प्रणाली के उपयोग के संबंध में दोनों देशों के अधिकारों और दायित्वों को परिभाषित किया। इस संधि के तहत पश्चिम की नदियों, सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी को पाकिस्तान और पूर्व की नदियों, रावी, व्यास और सतलुज के पानी को भारत को आवंटित किया गया था।
भारत के सिंधु जल संधि मामले के प्रबंधन से पहली बार जुड़े सूत्र ने कहा, ‘पाकिस्तान के लिए न केवल पानी की मात्रा बल्कि प्रवाह का अनुमान लगाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है और इन चीजों को भारत पहले से ही प्रभावित कर सकता है।’
सूत्र ने बताया, ‘आने वाले समय में पानी के प्रवाह की भविष्यवाणी पर असर दिखने की संभावना है क्योंकि भारत उन अधिकारों को पूरी तरह से लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है जो उसे संधि के तहत मिले थे और अब उस संधि की कुछ पाबंदियां अब लागू नहीं हैं।’ गौरतलब है कि पाकिस्तान की 80 प्रतिशत से अधिक सिंचाई सिंधु नदी घाटी के पानी पर निर्भर करती है।’
सूत्र ने बताया कि इस समझौते के तहत, भारत ने पश्चिमी नदियों का उपयोग गैर-उपभोग वाले उद्देश्यों के लिए करने का अधिकार बरकरार रखा था जिसमें सीमित सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन शामिल है। हालांकि, उनके प्रवाह को इस तरह से संग्रहित करने या बदलने पर बाधाएं थीं जिससे पानी का प्रवाह प्रभावित हो सकता था। संधि के तहत भारत को पहले से जो अधिकार मिले हुए थे उसका अधिकतम इस्तेमाल करते हुए भारत पश्चिमी नदियों से संभवतः 20,000 मेगावॉट जलविद्युत क्षमता की संभावनाएं तैयार कर सकता है क्योंकि 2016 में करीब 3,000 मेगावॉट का उत्पादन ही हो पाया था।