चीन में कोरोना के मामले बढ़ने के कारण भारत की कंपनियों में आपूर्ति श्रृंखला में बाधा की आशंका को लेकर चिंता बढ़ गई है। देश की कई कंपनियां इस पड़ोसी देश से कच्चे माल और कलपुर्जों का आयात करती हैं।
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार इस साल अप्रैल से अक्टूबर के दौरान सालाना आधार पर चीन से आयात करीब 18 फीसदी बढ़कर 60.27 अरब डॉलर पर पहुंच गया। चीन से सामान का भारी मात्रा में आयात करने वाले प्रमुख क्षेत्र दवा, वाहन कलपुर्जे, कपड़ा, इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक सामान हैं। मुंबई की इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक व प्रबंध निदेशक जी. चोक्कलिंगम के अनुसार चीन पर आश्रित होने के कारण इन क्षेत्रों पर जोखिम मंडरा रहा है। उन्होंने कहा,’बीते दो साल महामारी के दौरान कंपनियों ने अपने बिजनेस मॉडल को जोखिममुक्त करने के महत्त्व को जाना और समझा है। हालांकि कुछ क्षेत्रों की चीन पर निर्भरता अभी भी ज्यादा है। यदि चीन में वर्तमान संकट जारी रहता है तो इससे आने वाले समय में उत्पादन पर असर पड़ सकता है।’
कंपनियों के मुताबिक आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने की स्थिति से निपटने के लिए अभी भंडार का उचित स्तर है। जैसे उदाहण के तौर पर दवा उद्योग चीन से 60-70 फीसदी कच्चे सामान का आयात करता है। दवा उद्योग के पास तीन महीने का भंडार है। इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष विरंचि शाह के अनुसार आयात की जाने वाली सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) और दवाओं का पर्याप्त भंडार था। लेकिन कुछ कंपनियां चौकस हैं। गुजरात की एक बड़ी दवा कंपनी के अधिकारी ने कहा,’यदि वर्तमान स्थिति जारी रहती है तो इससे उत्पादन में बाधा आ सकती है। इससे भारत के बाजार में विशेषतौर पर करीब जनवरी-फरवरी के करीब दवाओं के दामों पर प्रभाव पड़ सकता है।’
ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एक्मा) के प्रबंध निदेशक विनी मेहता के अनुसार,’त्योहारी मौसम के कारण कंपनियों ने कुछ भंडारण किया था। लिहाजा अभी कलपुर्जों की उपलब्धता है।’ विशेषज्ञों के मुताबिक चीन में कोरोना19 के मामले बढ़ने की स्थिति से निपटने के लिए वाहन उद्योग की कंपनियों ने करीब एक महीने के उत्पादन के लिए भंडारण कर रखा है। फाइनैंशियल टाइम्स ने रविवार को सूचना दी थी कि चीन की कुल आबादी में से करीब 18 फीसदी यानी 25 करोड़ लोग दिसंबर के शुरुआती 20 दिनों में संक्रमित हो गए थे। रिपोर्ट के अनुसार इनमें से 3.7 करोड़ लोग पहले दिन ही संक्रमित हो गए थे। लिहाजा यह वायरस तेजी से लोगों को संक्रमित कर रहा है। परिणामस्वरूप कुछ कंपनियां कोई जोखिम नहीं उठा रही हैं।
काइनेटिक इंजीनियरिंग (केईएल) के प्रबंध निदेशक अजिंक्य फिरोदिया ने कहा कि फर्म अपने इलेक्ट्रिक दोपहिया लूना के लिए चीन पर आश्रित नहीं है। इसका शीघ्र ही वाणिज्यिक उत्पादन महाराष्ट्र के अहमदनगर से शुरू किया जाएगा। उन्होंने बताया कि ई-लूना के सभी कलपुर्जों का विकास भारत में किया गया है। हालांकि फिरोदिया ने बताया,’उत्तर भारत में इलेक्ट्रिक तिपहिया का बड़ा बाजार है। उत्तर भारत में हर महीने 30,000 इकाइयां बेची जाती हैं। इस बाजार पर असंगठित क्षेत्र का वर्चस्व है और यह क्षेत्र 80-90 फीसदी कलपुर्जे चीन से मंगाता है। चीन में उत्पादन में बाधा आने की स्थिति में यह क्षेत्र प्रतिकूल प्रभाव झेल सकता है।’
एक्मा के मेहता के अनुसार मारुति सुजूकी और कई यूरोपीय वाहन निर्माताओं सहित कई कंपनियों ने साल के इस समय में कुछ अवधि के लिए अपने संयंत्रों में कामकाज ठप (मरम्मत के कारण) कर देती हैं। लिहाजा फौरन कच्चे माल की आपूर्ति की कोई कमी महसूस नहीं होगी। विशेषज्ञों के मुताबिक बीते दो सालों के दौरान नीति ‘चीन प्लस’ अपनाई जाने के कारण कच्चा माल प्राप्त करने की रणनीतियां बदल गई हैं।
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मुंबई स्थित ब्रोकेज प्रभुदास लीलाधर में शोध विश्लेषक मानसी लाल के मुताबिक कई देश अनेक विक्रेताओं से सामान खरीद रहे हैं। वाहन निर्माण से जुड़ी कंपनियों ने जोखिम कम करने के लिए सोर्सिंग मॉडल ‘जस्ट-एज-इज’ (जैसा होता आ रहा है) की जगह ‘जस्ट-इन-टाइम’ को अपना रही हैं। ‘जस्ट-इन-टाइम’ के तहत उत्पादन की जरूरतों के अनुसार आपूर्तिकर्ता से सीधे आपूर्ति प्राप्त की जाती है। इससे कच्चे माल की बरबादी कम होती है। इससे प्रति इकाई की लागत भी कम आती है लेकिन इस तरीके में मांग का सटीक अनुमान लगाना जरूरी होता है।
अशोक लीलैंड की ईवी स्टार्टअप स्विच मोबिलिटी के मुख्य संचालन अधिकारी व भारत के मुख्य कार्याधिकारी महेश बाबू चौकस हैं। उनके अनुसार सेमी कंडक्टर, ईवी बैटरियों और इलेक्ट्रॉनिक हिस्सों का वैकल्पिक स्रोत प्राप्त करना आसान नहीं है। उन्होंने कहा,’वैश्विक स्तर पर आपूर्ति श्रृंखला इतनी जुड़ी हुई है कि चीन से किसी हिस्से या कच्चे माल की आपूर्ति होती है। हमारे सहित सभी वाहन कंपनियों ने महत्त्वपूर्ण हिस्सों का भंडारण करना शुरू कर दिया है। ‘