महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती महा विकास आघाडी (MVA) सरकार के कार्यकाल में मंत्री रहे एकनाथ शिंदे (अब मुख्यमंत्री) द्वारा झुग्गी बस्तियों की जमीन निजी व्यक्तियों को आवंटित किये जाने के मुद्दे को विपक्ष ने लपक लिया। सदन के अंदर और बाहर विपक्षी दल मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग करना शुरू कर दिये। भूमि आवंटन के मुद्दे को भूमि घोटाले बता कर विपक्ष मुख्यमंत्री पर हमला कर रहा है।
भूमि आवंटन का मामला पिछली सरकार के समय भले हुआ हो लेकिन विपक्ष इस मुद्दे को भ्रष्टाचार बताकर मौजूदा सरकार को घेरने की रणनीति तैयार करने में लगी है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के फैसले पर यथास्थिति का आदेश दिया है, जिसमें उन्होंने झुग्गी वालों के लिए आवंटित भूमि को कथित तौर पर निजी व्यक्तियों के नाम करने का निर्देश दिया था। शिंदे ने यह फैसला पिछली उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (MAV) सरकार में लिया था, जब वह शहरी विकास मंत्री थे। उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अदालत 2004 से नागपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट (एनआईटी) द्वारा राजनेताओं और अन्य प्रभावशाली व्यक्तियों को किए गए भूमि आवंटन की निगरानी कर रही है। उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया गया था कि एनआईटी ने नेताओं और अन्य लोगों को कम दरों पर जमीन दी थी।
विधान परिषद में विपक्ष और सत्ता पक्ष के सदस्यों के बीच वाद-विवाद के बाद सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित करनी पड़ी। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सदन में कहा कि उनकी सरकार महंगी जमीन किसी को सस्ती दर पर नहीं देती है। जब सदन में नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) अंबादास दानवे इस मुद्दे पर बयान दे रहे थे, तब राज्य के संसदीय मामलों के मंत्री चंद्रकांत पाटिल एवं गठबंधन सरकार में शामिल भारतीय जनता पार्टी के कई सदस्यों ने इसका विरोध किया तथा परिषद की उपसभापति नीलम गोर्हे से आग्रह किया कि वह इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एलओपी को किसी अन्य दिन समय दें।
दानवे ने कहा कि नागपुर सुधार न्यास ने झुग्गियों में रहने वालों के पुनर्वास के लिए साढ़े चार एकड़ भूखंड आरक्षित किया था। हालांकि, पूर्व शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे (अब मुख्यमंत्री) ने इस भूखंड के टुकड़ों को 16 निजी व्यक्तियों को डेढ़ करोड़ रुपये में आवंटित कर दिये थे, जबकि भूमि का मौजूदा मूल्य 83 करोड़ रुपये है। यह बेहद गंभीर मामला है। बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने भूमि सौंपने पर पहले ही रोक लगा दी थी और मामला अब भी चल रहा है। उसके बावजूद, (महा विकास आघाडी सरकार में) शहरी विकास मंत्री के तौर पर शिंदे ने जमीन सौंपने का निर्णय लिया, जो अदालत के कार्य में गंभीर हस्तक्षेप है।
फडणवीस ने कहा कि इस मुद्दे को अभी सदन में नहीं उठाना चाहिए था, क्योंकि अदालत ने इस पर कोई फैसला अभी तक नहीं सुनाया है। उपमुख्यमंत्री की इस टिप्पणी पर विपक्षी सदस्य खड़े हो गये और विरोध करना शुरू कर दिया। इसके बाद गोर्हे ने सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी।
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न्याधीश गिलानी समिति की रिपोर्ट में 113 सार्वजनिक उपयोग की जमीनों के दुरुपयोग होने का खुलासा करते हुए कहा गया कि मुख्य स्थानों पर आवंटन के बावजूद 20 स्थानों पर अभी भी जमीन खाली पड़ी हुई हैं। खाली पड़े फ्लॉट्स (जमीन) को तुरंत वापस लेने का सुझाव दिया। समिति ने कुछ आवंटनों में पुनः जांच करने का सुझाव भी दिया। समिति की ओर से बताया गया कि सार्वजनिक उपयोग के 305 प्लॉट अलग-अलग संस्थानों को आवंटित किए गए लेकिन इनमें से भी केवल 61 संस्थाओं ने ही धर्मदाय आयुक्त के पास जानकारी प्रेषित की है। जिससे लगभग 250 संस्थाओं की ओर से महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के नियमों का उल्लंघन किया गया है। समिति ने आवंटित प्लॉट पर प्रन्यास से सस्ती दरों में मिली जमीन का बोर्ड लगाने का सुझाव दिया। जिससे इनका समय समय पर सोशल ऑडिट हो सकेगा।
महाराष्ट्र विधानसभा परिसर में विपक्षी दलों ने सरकार पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाते हुए विरोध-प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के इस्तीफे की मांग की। न्याय मित्र अधिवक्ता आनंद परचुरे ने 14 दिसंबर को उच्च न्यायालय की एक पीठ को बताया था कि शिंदे ने MVA सरकार के शहरी विकास मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एनआईटी को झुग्गी निवासियों की आवास योजना के लिए अधिग्रहित भूमि अन्य 16 लोगों को देने का निर्देश दिया था। इस मामले की फिर से 4 जनवरी, 2023 को सुनवाई होगी।