छोटे कारोबारियों को फायदा पहुंचाने और कर चोरी करने वाले व्यापारियों पर नकेल कसने के मकसद पिछले साल बजट में घोषित किये गए MSME के लिए नए नियम अब छोटे-मझोले कारोबारियों को परेशान कर रही है। इस नए नियम के तहत अगर छोटे उद्यमी से खरीद के बाद व्यापारी सही वक्त पर भुगतान नहीं करता है, तो वो आय से जुड़ जाएगा और जिस पर उसे टैक्स भरना पड़ सकता है।
इस नए नियम ने व्यापार का रुख ही बदल दिया है। व्यापारियों के बीच आपसी विवाद बढ़ा है जबकि कारोबार लगातार कम हो रहा है। कारोबारी संगठनों की तरफ से इस नियम में बदलाव की मांग की जा रही है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाई (MSME) के लिए भुगतान के नए नियम (धारा 43B) के तहत अगर छोटे उद्यमी जिसने एमएससी में के तहत उद्यम आधार में पंजीकृत किया है से खरीद के बाद व्यापारी अगर सही वक्त पर भुगतान नहीं करता है, तो वो आय से जुड़ जाएगा और जिस पर उसे टैक्स भरना पड़ेगा।
भारत मर्चेंट चेंबर के सचिव अजय सिंघानिया कहते हैं कि कारोबार की जमीनी हकीकत को नजर अंदाज करके यह नियम तैयार किया गया। 45 दिनों में बिल का भुगतान हो पाना मुश्किल होता है। ऐसे व्यापारियों के अंदर एक दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना बन गई जो कारोबार को प्रभावित कर रही है। इसीलिए हमने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर निवेदन किया है कि इस नियम पर विचार किया जाए क्योंकि यह छोटे कारोबार और कारोबारियों के हित में नहीं है।
43B के बारे में सीए संजय अग्रवाल बताते हैं कि केंद्र सरकार ने आकलन वर्ष 2024-25 के लिए इस नए नियम को लागू कराया जिसके तहत खरीदारों को डिलीवरी के 45 दिनों के भीतर MSME से खरीदे गए सामान का भुगतान करना होगा और 31 मार्च, 2024 से पहले सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाई (MSME) को सभी बकाया चुकाना होगा, ऐसा न करने पर लंबित भुगतान माना जाएगा और बकाया भुगतान राशि व्यापारी की आय में जोड़ दी जाएगी और टैक्स के दौरान आय से इसे वसूल लिया जाएगा।
संजय कहते हैं दरअसल हमारे यहां बिलों का भुगतान औसतन 90 दिनों में होता है इसलिए यह नियम छोटे कारोबारियों को परेशान कर रहा है। ये प्रावधान छोटे उद्यमियों को फायदा और व्यापारियों पर नकेल कसने के मकसद से लागू की गई थी।
कपड़ा व्यापारी राजीव सिंगल कहते हैं कि आसान भाषा में समझें तो अगर छोटे उद्यमी ने अपना माल किसी दूसरे बड़े संस्थान, एजेंसी या किसी कंपनी को सप्लाई किया है, तो उस MSME निर्माता का भुगतान 45 दिनों के अंदर इन्हें करना ही होगा। ऐसा नहीं कर पाने पर बड़े व्यापारी, कंपनी या संस्थान को टैक्स का भुगतान करना पड़ेगा।
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सिंगल कहते हैं कि हमारे भेजे हुए माल को यदि हमारी आय में जोड़ा जाता है तो पूरा कारोबार ही बर्बाद हो जाएगा, मजबूरी में हम आगे व्यापारी को माल नहीं देंगे जिसके कारण छोटे कारोबारियों का व्यापार बंद होना तय है। इस नियम के कारण पिछले एक महीने से बाजार में आपूर्ति 50 फीसदी कम हो गई है। सरकार को इस नियम में बदलाव जमीनी हकीकत के आधार पर करना चाहिए।
सीए जयेश काला कहते हैं कि सरकार ने ऐसा नियम इसलिए लाया है, क्योंकि पहले भुगतान के लिए छोटी कंपनियों को काफी भटकना पड़ता था। बड़ी-बड़ी कंपनियां अपनी सुविधा के अनुसार भुगतान करती थीं। इसके चलते MSME उद्यमियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।
ऐसे में अगर कोई भी MSME रजिस्टर्ड है तो उसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि उसका भुगतान 45 दिनों के अंदर करना ही होगा। छोटी इकाइयों को फायदा पहुंचाने के लिए तैयार किया गया यह नियम अब छोटे कारोबारियों के लिए ही परेशानी का कारण बन गया है। कई व्यापारी संगठनों की तरफ से वित्त मंत्रालय को सुझाव दिये गए हैं , सरकार की तरफ से इसमें कुछ बदलाव किये जा सकते हैं।
कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स महाराष्ट्र प्रदेश के महामंत्री शंकर ठक्कर ने बताया यह नियम फायदेमंद है लेकिन कुछ व्यापार में भुगतान का समय आपसी सहमति से कई महीनों तक होता है उनके लिए यह धारा गले की हड्डी बन गई है। ऐसे में अगर भुगतान न होने पर यदि उनकी आय में इसे जोड़ा जाता है तो पूरा व्यापार ही खत्म हो सकता है। इसके लिए सरकार को इस विषय पर पुनर्विचार करके संशोधन करना चाहिए।