महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी नीत महायुति गठबंधन ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले महा विकास आघाडी को तगड़ी पटखनी लगाते हुए लगभग इकतरफा जीत हासिल की है। अब सरकार बनने के बाद सभी की निगाहें इस बात पर होंगी कि सत्ताधारी महायुति मतदाताओं से महिलाओं, किसानों, युवाओं और बुजुर्गों के लिए किए गए वादे कैसे पूरे करता है। वैसे, राज्य के पास इन चुनावी वादों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं, क्योंकि उसका वित्तीय घाटा जीएसडीपी के 3 प्रतिशत के नियंत्रित दायरे में है एवं राजस्व घाटा भी एक प्रतिशत से बहुत कम है।
चुनावी वादे पूरे करने के लिए सरकार का वित्तीय और राजस्व घाटा भले तय सीमा से ऊपर न जाए, लेकिन राजस्व खर्च पिछले पांच साल के कुल व्यय से जरूर 80-90 प्रतिशत अधिक हो सकता है। इससे पूंजीगत व्यय के लिए कम रकम बचेगी। पूंजीगत व्यय पिछले पांच साल में जीएसडीपी का लगभग 3 प्रतिशत के आसपास रहा है। इसके अलावा संपत्ति विकास पर खर्च होने वाला पूंजी अनुदान इस धनराशि से थोड़ा कम हो सकता है। उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2022-23 में पूंजीगत अनुदान जीएसडीपी का 1.7 प्रतिशत था जबकि इस दौरान पूंजीगत व्यय 1.9 प्रतिशत के स्तर पर था।
भाजपा, शिवसेना (शिंदे) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित गुट) ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में 21 से 65 वर्ष की महिलाओं को माझी लाडकी बहिन योजना के तहत मिलने वाली 1,500 रुपये की धनराशि को बढ़ाकर 2,100 रुपये करने का वादा किया था। इसी प्रकार की योजना सीएम लाडली बहना योजना मध्य प्रदेश में शिव राज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने चलाई थी, जिसका वहां पिछले साल हुए विधान सभा चुनावों में जबरदस्त असर देखने को मिला था। इसी तर्ज पर महाराष्ट्र में शुरू की गई योजना ने पिछले लोक सभा चुनाव में गच्चा खा चुके महायुति गठबंधन की केवल पांच महीनों में ही जबरदस्त तरीके से वापसी कराई।
पिछले महीने ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने उद्योग जगत को इस बात के लिए चेताया था कि उन्हें सब्सिडी और अनुदान पर अधिक निर्भर नहीं रहना चाहिए, क्योंकि सरकार को कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी धन की आवश्यकता होती है। मौजूदा समय में चल रही योजना से करदाताओं के 46,000 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। यदि चुनावी वादे के मुताबिक इस धनराशि को बढ़ाकर 1,500 से 2,100 किया जाता है तो यह रकम बढ़कर सीधे 64,400 करोड़ रुपये हो जाएगी। यानी करदाताओं पर 18,400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
सत्ताधारी गठबंधन ने प्रत्येक किसान परिवार के लिए नमो शेतकरी महासम्मान निधि योजना के तहत मिलने वाले सालाना 12,000 रुपये की रकम को बढ़ाकर 15,000 रुपये करने का ऐलान किया था। राज्य सरकार प्रत्येक किसान परिवार को पीएम किसान सम्मान निधि के तौर पर 6,000 रुपये देती है। वित्त वर्ष 2024-25 में 92.4 लाख परिवारों को इस योजना का लाभ दिए जाने की बात कही गई।
इस प्रकार योजना में 3,000 रुपये की बढ़ोतरी से भी सरकार के खाते पर 2,772 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। महायुति गठबंधन ने दोबारा सत्ता में आने पर किसानों के ऋण माफ करने की बात भी कही थी। अभी इसका करदाताओं पर कितना असर पड़ेगा, इसका पता योजना के लाभार्थियों का आकलन करने के बाद ही चलेगा।
सरकार ने दस लाख छात्रों को प्रति महा 10,000 रुपये प्रोत्साहन राशि देने का वादा इस चुनाव में किया था। इससे राजस्व बजट में हर साल 12,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त डालने पड़ेंगे। भाजपा नीत गठबंधन सरकार ने महाराष्ट्र में सोयाबीन किसानों को भी कम से कम 6,000 देने का वादा किया है। इसका असर भी राजस्व खाते पर पड़ेगा।
इसके अतिरिक्त चुनावी वादे के अनुसार बुजुर्ग पेंशन को प्रतिमाह 1,500 रुपये से बढ़ाकर 2,100 रुपये किया जाएगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी तथा खाद्य सुरक्षा और गरीब परिवारों के लिए पक्का घर योजना, पिछड़े एवं अनुसूचित जाति और जनजाति के उद्यमियों के लिए 15 लाख रुपये की वित्तीय मदद देने जैसे खर्च भी सरकार की जेब पर अतिरिक्त बोझ डालेंगे।
हालांकि इस साल के बजट पर तो इन योजनाओं के तहत बढ़ी रकम से राजस्व खर्च पर अधिक असर नहीं पड़ेगा, क्याकि वित्त वर्ष्ज्ञ 25 समाप्त होने में केवल चार महीने बचे हैं और नए सिरे से योजनाओं को लागू करने में अभी वक्त लगेगा, लेकिन अगले साल से विभिन्न योजनाएं सरकार की जेब अच्छी तरह ढीली करेंगी।
इसका सबसे बड़ा असर तो वित्तीय घाटे पर ही देखने को मिल सकता है। यदि सरकार पूंजीगत व्यय में कटौती नहीं करती है तो यह इस साल के मुकाबले थोड़ा बढ़ सकता है। राज्य में खुदरा महंगाई दर 4.2 प्रतिशत पर टिकी है, यह चालू वित्त वर्ष के शुरुआती सात महीनों के लिए 4.8 प्रतिशत से मामूली रूप से ही कम है। लेकिन, खाद्य महंगाई दर राज्य में 7.47 प्रतिशत दर्ज की गई। यह राष्ट्रीय औसत 7.5 प्रतिशत से थोड़ी सी कम है।