महाराष्ट्र

Dharavi Redevelopment Plan: अदाणी ग्रुप को बड़ी राहत, निविदा के खिलाफ दायर याचिका खारिज

Dharavi Redevelopment Plan: अदालत ने कहा कि याचिका में कोई उचित आधार नहीं है इसलिए इसे खारिज किया जाता है।

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सुशील मिश्र   
Last Updated- December 20, 2024 | 8:05 PM IST

Dharavi Redevelopment Plan: बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मुंबई में धारावी पुनर्विकास परियोजना के लिए महाराष्ट्र सरकार की ओर से अदाणी समूह को दिए गए ठेके को बरकरार रखा और कहा कि इस फैसले में कोई मनमानापन, पक्षपात या विकृति नहीं है। न्यायालय ने मुंबई में धारावी झुग्गी बस्ती पुनर्विकास परियोजना को अदाणी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को दिए जाने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार की निविदा अदाणी समूह को देने का निर्णय मनमानी भरा नहीं है, इसमें कुछ भी अनुचित या विकृत नहीं है। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) स्थित सेकलिंक टेक्नॉलॉजी कॉर्पोरेशन ने यह याचिका दायर की थी जिसमें अदाणी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को परियोजना देने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी।

अदालत ने कहा कि याचिका में कोई उचित आधार नहीं है इसलिए इसे खारिज किया जाता है। उच्च न्यायालय ने पाया कि याचिका के समर्थन में दिए गए आधारों में कोई औचित्य नहीं है तदनुसार, प्राधिकारियों की ओर से की गई कार्रवाई को चुनौती (जिसके तहत पहले की निविदा प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया था और नई निविदा प्रक्रिया पेश की गई) विफल रही।

अदाणी समूह ने 259 हेक्टेयर धारावी पुनर्विकास परियोजना के लिए सबसे अधिक बोली लगाई थी। 2022 की निविदा प्रक्रिया में 5,069 करोड़ रुपये की पेशकश के साथ उसने इसे हासिल किया था। इससे पहले 2018 में जारी पहली निविदा में सेकलिंक टेक्नॉलॉजी कॉर्पोरेशन 7,200 करोड़ रुपये की पेशकश के साथ सबसे अधिक बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में उभरी थी।

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सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉरपोरेशन ने महाराष्ट्र सरकार के 2018 की निविदा को रद्द करने और उसके बाद 2022 में अदाणी को निविदा देने के फैसले को चुनौती दी थी। सेकलिंक टेक्नोलॉजीज ने सबसे पहले 2018 के टेंडर को रद्द करने और उसके बाद 2022 के टेंडर को अदाणी समूह को दिए जाने को चुनौती दी थी। इसने आरोप लगाया था कि नया टेंडर बंदरगाहों से लेकर ऊर्जा तक के क्षेत्र में काम करने वाले समूह के लिए जानबूझकर लाया गया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता कंपनी 2018 की निविदा प्रक्रिया में सबसे ऊंची बोली लगाने वाली थी।

अदालत ने आगे कहा कि यह एक स्थापित सिद्धांत है कि किसी निविदा प्रक्रिया में भाग लेने वाला बोलीदाता इस बात पर जोर नहीं दे सकता कि उसकी निविदा को केवल इसलिए स्वीकार किया जाए क्योंकि वह सबसे ऊंची या सबसे कम है। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से 2018 की निविदा प्रक्रिया को रद्द करने के लिए दिए गए कारणों को, उसकी राय में अस्तित्वहीन या अनुचित या किसी विकृति पर आधारित नहीं कहा जा सकता है। अदालत के अनुसार सरकार की ओर से लिया गया निर्णय मनमानी, अनुचित या दुराग्रहपूर्ण नहीं है।

First Published : December 20, 2024 | 8:05 PM IST