भारी बारिश के बाद बेहाल मुंबई | फोटो: PTI
मुंबई में माटुंगा की करीब 90 साल पुरानी इमारत बलडोटा हाउस में म्हाडा ने फौरन घर खाली करने का नोटिस चिपकाया है। इमारत बहुत ही खस्ताहाल है फिर भी यहां रह रहे लोग इसे खाली करना नहीं चाह रहे हैं। यहां रहने वाली शकुंतला देवी कहती है कि हम कहां जाए, हमारे पास पैसा नहीं है कि हम किसी दूसरी जगह घर ले लें और ट्रांजिट कैंप में जानवरों की तरह रहने से बेहतर है कि हम यहीं रहेगें। इसी बिल्डिंग में रहने वाले एक दूसरे निवासी ने कहा कि वैसे हम कहीं नहीं जाने वाले हैं। हमें किराया दिया जाए, ताकि हम किसी अच्छी जगह किराये पर घर ले सके। वह कहते हैं कि मकान मालिक को कुछ नहीं पड़ी वह तो चाहता है कि बिल्डिंग गिर जाए ताकि वह जमीन बेच सके। जीवन-मरण ऊपर वाले के हाथ में होता है, हम कहीं नहीं जाने वाले हैं।
मॉनसून की दस्तक के साथ मुंबई की सैकड़ों पुरानी, जर्जर और खस्ताहाल इमारतों में रह रहे हजारों लोगों की जिंदगियों के ऊपर मौत का साया मंडराने लगता है। मॉनसूनी बारिश शुरु होने से पहले बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और महाराष्ट्र आवास एवं विकास प्राधिकरण (म्हाडा) के पास जर्जर इमारतों की पहचान करने और वहां रह रहे लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने का चुनौती भरा काम रहता है। अमूमन हर साल पुरानी इमारतों के गिरने और दर्जनों लोगों की मौत की खबरें आती हैं। इसके बावजूद इन इमारतों में रहने वाले परिवार अपनी मजबूरी और बेबसी में घर छोड़ने को तैयार नहीं है।
हालांकि इस साल प्रशासन ने इन इमारतों को खाली करने वाले लोगों को प्रतिमाह किराया देने की योजना भी तैयार की है। बेहद खतरनाक बिल्डिंगों में शामिल घाटकोपर की नारायण नगर बिल्डिंग का एक हिस्सा बीएमसी ने ध्वस्त कर दिया और दूसरा हिस्सा भी गिराया जा रहा है। इसके बावजूद इस बिल्डिंग अभी भी करीब 30 लोग रह रहे हैं । ये लोग घर खाली करने को तैयार नहीं हैं। यहां रहने वाले लोगों को कहना है कि प्रशासन बिल्डिंग खाली करने को कहता है लेकिन हम कहां जाएं और हमारा भविष्य क्या होगा इस पर कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है। इस बिल्डिंग का पुनर्निर्माण नहीं होने वाला है क्योंकि सामने नेवी डिपो है, जमीन हमारी नहीं है। कहां जाएं, ट्रांजिट कैंप में जगह नहीं है। इसीलिए अब बिल्डिंग गिरेगी तब ही छोड़ेंगे।
इसी इलाके की एक बिल्डिंग को कुछ दिन पहले गिरा दिया गया, बिल्डिंग गिरने के बाद भी कुछ लोग आसपास फुटपाथ पर जिंदगी गुजर रहे हैं। अपने आशियाने को मलबे में तब्दील होते देखने वाली निर्मला के पास कोई छत नहीं है। इनकी जर्जर बिल्डिंग को गिरा दिया गया है। वह अपनी बेबसी बयां करते हुए कहती हैं कि पान की छोटी दुकान चलाती हूं, जिनके पास पैसे थे वो किराए पर निकल गए, मैं कहां जाऊं, ट्रांजिट कैंप में मेरे लिए जगह नहीं है। यहां कुछ लोग पैसे से मदद भी कर देते हैं। मैं और मेरे पति यहीं ऐसे सड़क पर या दुकान के सामने गुज़र बसर कर रहे हैं।
हर साल मॉनसून के दौरान मुंबई में जर्जर इमारतें ढहने से दर्जनों मौतें होती हैं। म्हाडा की रिपोर्ट के अनुसार इस साल 96 इमारतें खतरनाक घोषित की गई हैं। इनमें करीब 3000 लोग रह रहे हैं। बीएमसी ने भी अपने अधिकार क्षेत्र में 134 इमारतों को खतरनाक घोषित किया है। पिछले साल बीएमसी ने बारिश के कारण 188 इमारतों को खतरनाक घोषित किया था।
प्राधिकरण के मुताबिक ये सभी इमारतें दक्षिण और मध्य मुंबई में हैं और इनमें से बोरा बाजार, मोहम्मद अली रोड, फॉकलैंड रोड, मझगांव, गिरगांव, खेतवाड़ी और दादर माटुंगा सबसे ज्यादा खतरे में हैं। विभाग ने सभी मकान मालिकों और किरायेदारों को निर्देश दिया है कि वे इस क्षेत्र में चिह्नित भवनों को तुरंत खाली कर दें और किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट हो जाएं।
हर साल म्हाडा पुरानी इमारतों का सर्वे करता है। इस सर्वे में यह देखा जाता है कि कौन सी इमारत सुरक्षित नहीं है। फिर उन इमारतों में रहने वाले लोगों को दूसरी जगह ले जाने की तैयारी की जाती है। इस साल के सर्वे में बोर्ड को पता चला कि पिछले साल जिन इमारतों को खतरनाक घोषित किया गया था, उनमें से कई इस बार भी लिस्ट में हैं।
प्राधिकरण ने इस साल 13 हजार इमारतों में रहने वाले निवासियों, मकान मालिकों और हाउसिंग सोसायटियों को मॉनसून सीजन से पहले मरम्मत करने का निर्देश दिया है। इनमें से अधिकांश इमारतें 70 वर्ष से अधिक पुरानी हैं और मानव निवास के लिए उपयुक्त नहीं हैं, विशेषकर बारिश और मॉनसून के दौरान, क्योंकि इनमें रहना खतरनाक होता है।
घोषित की गई 134 खतरनाक इमारतों में से अब तक 57 इमारतों को बीएमसी खाली करवा चुकी है, जबकि शेष 77 इमारतों में अब भी लोग रह रहे हैं। इसके कारण उन लोगों की जान और माल दोनों को खतरा बना हुआ है। बीएमसी के अधिकारियों के अनुसार, इन 77 में से लगभग 56 इमारतें ऐसी हैं, जिन पर कानूनी विवाद या न्यायालय का स्टे ऑर्डर है, जिससे संबंधित इमारतों में कोई कार्रवाई करने में बाधा उत्पन्न हो रही है।
बीएमसी नागरिकों से अपील कर रही है कि वे मॉनसून से पहले जर्जर इमारतें छोड़ दें और अपनी तथा अपने परिवार की सुरक्षा को प्राथमिकता दें। साल 2023 की तुलना में इस बार जर्जर इमारतों की संख्या में कमी आई है। 2023 में कुल 387 इमारतें जर्जर घोषित की गई थीं, जबकि 2024 में यह संख्या घटकर 188 हो गई और अब 2025 में यह केवल 134 रह गई हैं।
मुंबई की पगड़ी व्यवस्था भी इस खतरे की बड़ी वजह बनती जा रही है। खास तौर से दक्षिण और मध्य मुंबई के कई हिस्सों में पगड़ी किराए के फ्लैट हैं, यहां का किरायेदार एक तरह से प्रॉपर्टी का सह-मालिक भी होता है और मार्केट में सामान्य दरों 30,000 से 50,000 रुपये की तुलना में बेहद मामूली किराए 500-1000 का भुगतान करता है।
ऐसे मकान मालिकों और किराएदारों के बीच की कानूनी लड़ाई, पुनर्निर्माण की दुविधा और डेवलपर्स के साथ विवादों के कारण ये इमारतें सालों तक बिना मरम्मत के खड़ी रहती हैं। इसलिए इन जर्जर इमारतों में रहने वाले परिवार न तो कहीं और जा सकते हैं, न इन्हें कोई विकल्प मिलता है। सिस्टम भी महज नोटिस चिपका कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है।
दक्षिण मुंबई में करीब एक दशक तक जर्जर इमारतों के पुनर्निर्माण और यहां से लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाने का काम करने वाले मयंक गांधी कहते हैं कि महंगाई की मार और भरोसे की कमी के चलते लोग अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर इन इमारतों में रहते हैं। मुंबई जैसे शहर में, जहां किराए आसमान छू रहे हैं और जमीन का हर टुकड़ा करोड़ों का है, वहां ट्रांजिट कैंप या पुनर्विकास योजनाएं कछुए की चाल से भी धीमी चल रही हैं। सरकार और प्राधिकरणों की ओर से पुनर्विकास की प्रक्रिया तेज करने की बात हर साल होती है, लेकिन जमीनी हकीकत नहीं बदल रही है।
इन बिल्डिंगों में रहने वाले ज्यादातर लोग गरीब या निम्न मध्यम आय वाले लोग हैं। उनके अंदर एक डर है कि घर छोड़े तो घर हाथ से निकल जाएगा, और इसी मोह में वह घर खाली करने को तैयार नहीं होते हैं। इन परिवारों के लिए ठोस पुनर्वास योजना बनाने की जरूरत है। जर्जर इमारतें ढहने से पहले इनका विकल्प मिल जाए या फिर उन्हे पक्का भरोसा मिले की उनका आशियाना उन्हें दोबारा मिलेगा वह भी तय समय के अंदर, तो ही वह हटने का तैयार हो सकते हैं।
कारोबारी समाजसेवी राजीव सिंगल कहते हैं कि दक्षिण मुंबई कारोबार का हब रहा है। इसी इलाके में सबसे ज्यादा पुरानी इमारतें हैं। बीएमसी और म्हाडा हर साल मानसून आने से पहले ही कमजोर पड़ चुकी इमारतों को खाली कराने, पुनर्निर्माण या फिर ध्वस्त करने का काम करती हैं। इसके बावजूद हर साल बिल्डिंग गिरती हैं और लोगों की जान जाती है। इसके लिए किसी को दोष देने से बेहतर होगा कि व्यावहारिक नजरिये से देखा जाए, जो लोग यहां सालों साल से रह रहे हैं अब वह कहां जाएं, तो दूसरी ओर मकान मालिक को महज 100-200 रुपये किराया मिलता है तो वह इतने में मरम्मत कैसे करा सकता है।
सरकारी काम पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है और निजी बिल्डरों की नीयत पर सवाल खड़े होते हैं। ऐसे में सरकार को स्पष्ट और समयबद्ध एवं सख्त नियम बनाकर उसका पालन करना होगा। ताकि किराएदार को घर मिल जाए, मकान मालिक को उसकी कीमत भी मिल जाए और सरकार को राजस्व की प्राप्ति के साथ मुंबई का विकास भी अच्छे से हो सके।