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नवाबों के दस्तरख्वान से निकल आम थाली में सजीं लखनवी शीरमाल और नान

देश और दुनिया के तमाम शहरों से आने वाली फरमाइश पूरी करने के लिए लखनऊ की चावल वाली गली में चौबीस घंटे बनती रहती हैं किस्म-किस्म की लजीज रोटियां

Last Updated- December 08, 2024 | 11:23 PM IST
Lucknowi Sheermaal and Naan decorated in a common plate from Nawabs' Dastarkhwan नवाबों के दस्तरख्वान से निकल आम थाली में सजीं लखनवी शीरमाल और नान

आपने कभी शीरमाल का जायका लिया है? या सालन के साथ खमीरी रोटी तोड़ी है? चाय के साथ बाकरखानी का स्वाद तो शायद ही कभी आपकी जबान पर घुला हो। अगर इन सबकी लज्जत लेनी है तो आपको पुराने लखनऊ की चावल वाली गली का रुख करना होगा। किसी जमाने में उम्दा चावलों के व्यापार के लिए मशहूर रही यह गली अब लजीज रोटियों की गमक से गुलजार है। चावल वाली गली में आज किस्म-किस्म की रोटियां बनाई जा रही हैं। ये रोटियां देश के तमाम शहरों में तो भेजी ही जा रही हैं, इनके लिए खाड़ी देशों से लेकर यूरोप के देशों तक से ऑर्डर भी आते हैं।

पुराने लखनऊ के अकबरी गेट इलाके में चावल वाली गली बमुश्किल 500 मीटर की है मगर इतने से दायरे में ही 100 से ज्यादा दुकानों पर तंदूर गरम होते दिखते हैं। इन दुकानों पर रोटियां सिंकती रहती हैं और कुछ के पास तो इतने ज्यादा ऑर्डर होते हैं कि उनका तंदूर कभी ठंडा ही नहीं होता यानी चौबीस घंटे काम चलता रहता है। यहां की शीरमाल, बाकरखानी और ताफ्तानी रोटियां अपने जायके के लिए देश भर में मशहूर हैं और मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, भोपाल की शादियों में थोक के भाव यहां से भेजी जाती हैं।

कई दशकों से रोटियों का कारोबार कर रहे अकील अहमद बताते हैं कि इस गली से केवल रोटियों का सालाना 100 करोड़ रुपये से ऊपर का कारोबार होता है। उनका कहना है कि सहालग के दिनों में मुसलमान और हिंदू दोनों कौमों के परिवार अपनी शादियों में यहां से रोटियां मंगाते हैं। आम दिनों में ही इस इलाके से लाखों की तादाद में रोटियां बिक जाती हैं और शादी-ब्याह का सीजन हो तो बिक्री कई गुना बढ़ जाती है।

विदेश को सीधी उड़ान

चावल वाली गली की पहली दुकान सलमान शीरमाल वाले की है, जो स्विगी और जोमैटो जैसे फूड डिलिवरी प्लेटफॉर्मों पर सबसे ज्यादा मशहूर है। सलमान की रोटियां लखनऊ वाले तो खाते ही हैं, उनके पास खाड़ी देशों से भी बहुत ज्यादा ऑर्डर आते हैं। वह बताते हैं कि जब से लखनऊ और दूसरे मुल्कों के बीच सीधी उड़ान शुरू हुई है तभी से बाहरी देशों से ऑर्डर कई गुना बढ़ गए हैं।

यहां रोटियों में जितना उम्दा माल इस्तेमाल होता है, उनके भाव भी उतने ही बढ़ते जाते हैं। आम ग्राहकों के दूध से तैयार होने वाली शीरमाल 10 और 12 रुपये में बिकती है मगर खास शादियों के लिए खालिस दूध, मेवे, मक्खन और अंडे से बनने वाली शीरमाल की कीमत 60 रुपये से 300 रुपये प्रति रोटी तक पहुंच जाती है। मुस्लिम शादियों, वलीमे, अकीके और दूसरे कार्यक्रमों में परोसी जाने वाली खमीरी रोटी, धनिया रोटी, नान और रूमाली रोटी की भी अच्छी खासी मांग इस गली की दुकानों के पास आती है।

रेस्तरां, शादी में खूब मांग

चावल वाली गली में रोटियों की इतनी किस्में दिख जाती हैं, जिनके नाम भी ज्यादातर लोगों ने नहीं सुने होते। उमर भाई रोटी वाले के नाम से कई दुकानों के मालिक उमर अहमद बताते हैं कि गली में खमीरी, गिरदा, ताफ्तानी, कुल्चा, बाकरखानी, रूमाली, धनिया नान, मुगलई नान, बेसनी रोटी और शीरमाल जैसी 30 तरह की रोटियां बनाई जाती हैं। इन सभी रोटियों के कद्रदान भी भारी तादाद में हैं।

उमर के मुताबिक उत्तर प्रदेश के कई शहरों से हर रोज उनके पास ऑर्डर आते हैं और राजधानी लखनऊ में अवधी जायके वाले कई रेस्तरां में रोजाना उनकी रोटियां मंगाई जाती हैं। वह बताते हैं कि धनिया रोटी 8 रुपये की मिलती है और नान 6 रुपये में मिल जाती है। इस गली में रूमाली रोटी के लिए 4 रुपये ही खर्च करने पड़ते हैं। यहां रोटियों की कीमत कम रहने की बड़ी वजह थोक में बनना है। इसीलिए शादियों में बड़ी मात्रा में रोटियां परोसनी हों तो लोग यहीं का रुख करते हैं।

इसी गली में जुनैद अहमद मेवे वाली इलाहाबादी रोटियों के लिए मशहूर हैं। उनका दावा है कि भारत छोड़कर लंदन जा बसे लोग उनके यहां से नियमित तौर पर रोटियां मंगाते हैं। जुनैद उमर कहते हैं कि मावा और मेवों से बनी इलाहाबादी रोटी कई दिन तक खराब नहीं होती, इसलिए बाहरी देशों से अक्सर इसके ऑर्डर आते रहते हैं। वह बताते हैं कि लखनऊ और आसपास के शहरों में रहने वाले शिया मुसलमानों की बड़ी तादाद मुहर्रम के दिनों में होने वाली मजलिसों में बांटने के लिए रोटियां मंगाती है और उस वक्त उनके यहां की रोटियों की भारी मांग रहती है। मुहर्रम की मजलिसों में तबर्रुक यानी प्रसाद के तौर पर बांटने के लिए बाकरखानी, खमीरी और शीरमाल रोटियों के सबसे अधिक ऑर्डर आते हैं।

पिछले कुछ अरसे से रोटियों का कारोबार इस कदर बढ़ रहा है कि उनका इलाका अब चावल वाली गली से बाहर निकलकर आसपास के मुहल्लों में भी पसर गया है। अकील अहमद बताते हैं कि रोटियों का कारोबार साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है और नई दुकानें खुलती जा रही हैं। आलम यह है कि शादियों में खानपान के ठेके लेने वाले केटरर रोटियों की चिंता नहीं करते और उनके लिए यहां की दुकानों की बुकिंग करने लगे हैं। इस धंधे से सीधा रोजगार भी काफी ज्यादा है। चावल वाली गली में ही रोटी के 3,000 से ज्यादा कारीगर काम करते हैं और सहालग के दिनों में उनकी तादाद बढ़कर 5,000 को भी पार कर जाती है।

First Published - December 8, 2024 | 11:23 PM IST

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