हर साल 8 मार्च को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक योगदान को सम्मानित किया जाता है। दुनिया भर में इस दिन को कई तरीकों से मनाया जाता है। इस दिन सोशल मीडिया पर महिलाओं से जुड़े हैशटैग ट्रेंड करते हैं, समाचार पत्रों में महिलाओं के अधिकारों पर लेख प्रकाशित होते हैं, और टीवी चैनलों पर उनके सम्मान में विशेष कार्यक्रम दिखाए जाते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का एक गहरा संबंध रूस की क्रांति से भी है? यह जुड़ाव 1917 की रूसी क्रांति से शुरू होता है, जब हजारों महिलाओं ने ‘ब्रेड एंड पीस’ आंदोलन के तहत सड़कों पर उतरकर जारशाही (Tsarist) सरकार का विरोध किया था।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की जड़ें श्रमिक आंदोलन में हैं। 1908 में, न्यूयॉर्क शहर में 15,000 महिलाओं ने कम काम के घंटे, बेहतर वेतन और मतदान के अधिकार की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। इसके बाद, 1909 में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने पहली बार नेशनल वुमन्स डे मनाने की घोषणा की।
यह विचार जल्द ही यूरोप पहुंचा, और जर्मनी की क्लारा जेटकिन (Clara Zetkin) ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मनाने का प्रस्ताव रखा। 1911 में, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में पहली बार 19 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। हालांकि, बाद में 8 मार्च को इस दिन के रूप में तय किया गया, और इसका श्रेय जाता है 1917 में रूस के ‘ब्रेड एंड पीस’ आंदोलन को।
1917 में रूस प्रथम विश्व युद्ध से बुरी तरह प्रभावित था। खाने-पीने की वस्तुओं की भारी कमी हो गई थी, और हालात इतने बिगड़ गए थे कि महिला फैक्ट्री कर्मचारी लंबी कतारों में खड़ी होकर रोटी खरीदने को मजबूर थीं। जब उन्हें यह अफवाह सुनने को मिली कि जल्द ही राशनिंग लागू होने वाली है, तो वे आक्रोशित हो गईं। 8 मार्च (रूसी कैलेंडर के अनुसार 23 फरवरी) को हजारों महिलाओं ने पेट्रोग्राड की नेवस्की प्रॉस्पेक्ट पर प्रदर्शन किया। उनके हाथों में बैनर थे, जिन पर लिखा था— “रोटी दो! हमारे देश के रक्षकों के बच्चों को खाना दो!”
यह विरोध प्रदर्शन तेजी से बढ़ा और एक दिन के अंदर ही 1 लाख से अधिक मजदूरों ने हड़ताल कर दी। अगले दिन तक यह संख्या 1.5 लाख तक पहुंच गई। प्रदर्शनकारियों ने “रोटी चाहिए” और “जार का पतन हो” जैसे नारे लगाए। रूसी पुलिस ने इस विरोध को दबाने की कोशिश की, लेकिन महिलाएं पीछे नहीं हटीं। धीरे-धीरे रूसी सेना के जवान भी जनता के साथ आ गए और उन्होंने जार निकोलस का समर्थन छोड़ दिया।
यह आंदोलन एक हफ्ते तक चला और अंततः जारशाही का पतन हुआ। इस क्रांति ने समाजवाद और 1922 में सोवियत संघ की स्थापना के लिए रास्ता बनाया। रूसी क्रांति में महिलाओं की इस भूमिका को सम्मानित करने के लिए 1922 में व्लादिमीर लेनिन ने 8 मार्च को आधिकारिक रूप से ‘महिला दिवस’ घोषित किया। 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक रूप से 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया। आज यह दिन अधिकतर देशों में मनाया जाता है और 25 से अधिक देशों में यह राष्ट्रीय अवकाश भी है।
आधुनिक समय में, यह दिन मार्च, सेमिनार, संगीत कार्यक्रम, प्रदर्शनियों और वाद-विवाद कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है। रूस में, युद्ध शुरू होने से पहले, इस दिन फूलों की बिक्री दोगुनी हो जाती थी, क्योंकि पुरुष और महिलाएं एक-दूसरे को फूल भेंट करते थे।
हालांकि, पूरी दुनिया में आज भी महिलाओं को समानता पाने के लिए लंबा सफर तय करना है। अभी भी दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं को वह अधिकार नहीं मिला है, जो पुरुषों को है। कई बड़े पद पर महिलाएं आज भी नहीं पहुंच पाई हैं। आज भी व्यापार जगत में दुनिया भर में महिलाओं की संख्या सिर्फ एक-तिहाई हैं। संयुक्त राष्ट्र के 60% सदस्य देशों में अब तक कोई महिला राष्ट्राध्यक्ष नहीं बनी है। साल 2024 में 45 देशों में चुनाव हुए, लेकिन इनमें से सिर्फ 4 देशों में महिला नेता चुनी गईं। रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने महिलाओं से शिक्षा और करियर छोड़कर परिवार बढ़ाने की प्राथमिकता देने को कहा है। अमेरिका में महिलाओं के गर्भपात के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया, जिससे उनकी शारीरिक स्वायत्तता पर खतरा बढ़ गया।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि एक इतिहास और संघर्ष का प्रतीक है। यह हमें उन महिलाओं के बलिदानों की याद दिलाता है जिन्होंने समाज में बदलाव लाने के लिए अपनी आवाज उठाई। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखें और एक समान समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएं।