केंद्र सरकार को विभिन्न चिकित्सीय जांच के लिए मानक दरें तय करने के उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर निजी अस्पतालों ने स्वास्थ्य मंत्रालय से गुहार लगाई है। वे इससे बचने का रास्ता तलाश रहे हैं। छोटे और मध्यम दर्जे के निजी अस्पतालों के संगठन एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एएचपीआई) ने इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखा है।
एसोसिएशन ने मामले में चल रही सुनवाई के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका दायर करने का फैसला भी किया है। अभी शीर्ष अदालत में निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में उपचार की कीमत का दायरा स्पष्ट करने के मामले में सुनवाई चल रही है।
एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एएचपीआई ) के महानिदेशक गिरिधर ज्ञानी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि इस उद्योग के प्रतिनिधियों के एक दल ने मसले पर चर्चा के लिए गुरुवार को स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा से मुलाकात की है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को एक पत्र भी दिया गया है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि कीमतों के निर्धारण को लेकर अब तक कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है।
इसलिए एएचपीआई ने कीमतों का दायरा तय करने की सिफारिश की है। उन्होंने बताया कि उनकी लीगल टीम अगले कुछ दिनों में सर्वोच्च न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका भी दाखिल करने की तैयारी में है ताकि शीर्ष अदालत उनकी बातों को भी सुने।
इस बीच, उद्योग के शीर्ष अधिकारी और नारायण हेल्थ के कार्यकारी उपाध्यक्ष वीरेन शेट्टी ने कहा कि हालांकि शीर्ष अदालत का आदेश इरादे और भावना में नेक है, लेकिना हमारा मानना है कि सभी तरह के रोगियों के लिए राष्ट्रीय मानक कीमत लागू करने से देश की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार नहीं आएगा।
शेट्टी ने कहा, ‘निजी स्वास्थ्य सेवा उद्योग को वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के मुकाबले सामर्थ्य, गुणवत्ता और पहुंच सुनिश्चित करने में भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य यह होना चाहिए कि जिस मरीज को जैसी इलाज की जरूरत है वैसा इलाज उसे मिले। उनकी जरूरतों के हिसाब से गुणवत्ता और उनके सामर्थ्य के अनुसार कीमत होनी चाहिए।
एक ही कीमत रहने से उच्च गुणवत्ता प्रभावित होगी, मरीजों की पसंद कम होगी और इससे हमारे अच्छे और बेहतरीन डॉक्टर भी देश छोड़ने के लिए मजबूर होंगे। उन्होंने कहा, ‘यह मानना नामुमकिन है कि एक औसत भारतीय के पास आपात स्थिति में किसी सर्जरी के लिए हाथ में दो लाख रुपये हों, लेकिन वे बीमा प्रीमियम के लिए कुछ हजार रुपये तो खर्च कर सकते हैं।’
सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को निजी अस्पतालों और क्लीनिकों द्वारा उपचार के लिए कीमत दायरा तय नहीं किए जाने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। शीर्ष न्यायालय ने चेतावनी दी है कि अगर केंद्र सरकार अगली सुनवाई तक निजी अस्पतालों के लिए कोई ठोस प्रस्ताव नहीं लाती है तो वह अंतरिम उपाय के रूप में सीजीएचएस दरें लागू करने का निर्देश देने पर विचार करेगा।