सरकार की एक उच्चस्तरीय समिति ने 200 से अधिक उत्पादों के गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) को रद्द करने, निलंबित करने और स्थगित करने का प्रस्ताव दिया है। समिति को आशंका है कि ऐसे आदेशों से अनुपालन बोझ बढ़ गया है, आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है और भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता पर भी असर पड़ा है।
घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले लोगों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि नीति आयोग के सदस्य राजीव गौबा की अध्यक्षता वाली समिति ने सिफारिश की है कि सरकार को प्लास्टिक, पॉलिमर, मूल धातु (बेस मेटल), फुटवियर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे प्रमुख इनपुट से संबंधित 27 के गुणवत्ता नियंत्रण आदेश को समाप्त कर देना चाहिए।
इससे उद्योग पर अनावश्यक दबाव कम हो सकता है। इसके साथ ही ‘गैर-वित्तीय नियामक सुधारों’ पर गठित उच्च-स्तरीय समिति ने पिछले महीने अपनी आंतरिक रिपोर्ट में 112 उत्पादों से क्यूसीओ को निलंबित करने और कुछ आगामी ऑर्डर को स्थगित करने का भी प्रस्ताव किया है। इनमें से ज्यादातर कच्चे माल और पूंजीगत वस्तुएं हैं, जो विनिर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
इस पर अंतिम निर्णय या कार्रवाई कपड़ा, रसायन एवं उर्वरक विभाग, उद्योग संवर्द्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग, इस्पात मंत्रालय, खान मंत्रालय आदि संबंधित मंत्रालयों द्वारा की जानी है। उन्होंने बताया कि जिन उत्पादों के लिए स्थगन का सुझाव दिया गया है, उन्हें समीक्षा के लिए अंतर-मंत्रालय समूह को भेजा जा सकता है। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के परामर्श से सरकारी विभागों द्वारा अधिसूचित क्यूसीओ अनिवार्य प्रकृति के हैं।
गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के पीछे सरकार का उद्देश्य उत्पादों की गुणवत्ता, मानव स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। हालांकि पिछले पांच वर्षों में क्यूसीओ की संख्या बढ़ने के साथ घरेलू उद्योग, खास तौर पर एमएसएमई ने कई बार सरकार के समक्ष अनुपालन बोझ के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की है। उदाहरण के लिए समिति ने यह भी बताया है कि पॉलिएस्टर फाइबर और धागे और उच्च श्रेणी के स्टील पर प्रतिबंध के कारण कई कारखानों को अपनी क्षमता से कम पर काम करना पड़ रहा है। इसके साथ ही कच्चे माल की लागत भी बढ़ी है और निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
इसके अलावा अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) सहित भारत के प्रमुख व्यापार भागीदारों द्वारा व्यापार वार्ता के दौरान गैर-शुल्क बाधा के रूप में क्यूसीओ पर चिंता व्यक्त की जा रही है।
सरकार ने घटिया आयात पर अंकुश लगाने और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए बीते एक दशक में स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं के लिए क्यूसीओ की घोषणा करती रही है। 2016 तक केवल 70 उत्पाद क्यूसीओ के अंतर्गत आते थे जिनकी संख्या अब बढ़कर 790 हो गई है।
मामले की जानकारी रखने वाले एक शख्स ने कहा कि इन सिफारिशों के पीछे तर्क यह है कि गुणवत्ता नियंत्रण मुख्यतः तैयार माल पर लागू होना चाहिए, जिसका उपभोक्ता सुरक्षा, स्वास्थ्य और उत्पाद की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। कच्चे माल, मध्यवर्ती उत्पादों और पूंजीगत वस्तुओं के लिए गुणवत्ता आश्वासन अनिवार्य नियमों के बजाय स्वैच्छिक मानकों यानी क्रेता-विक्रेता आश्वासन के जरिये बनाए रखा जा सकता है।
किसी भी नियामकीय बाधा को दूर करने के लिए करीब तीन महीने पहले गठित इस समिति ने औद्योगिक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करते हुए गुणवत्ता और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया है। इस बारे में जानकारी के लिए नीति आयोग को ईमेल किया गया मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।