भारत सरकार निजी कंपनियों को यूरेनियम (uranium) के खनन, आयात और प्रसंस्करण (processing) की अनुमति देने की योजना बना रही है। इस कदम का उद्देश्य दशकों पुराने परमाणु सेक्टर (nuclear sector) पर सरकारी एकाधिकार को खत्म करना और इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अरबों डॉलर का निवेश आकर्षित करना है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने दो सरकारी सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का लक्ष्य 2047 तक परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता को 12 गुना बढ़ाना है। रॉयटर्स ने अप्रैल में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि सरकार विदेशी कंपनियों को पावर प्लांटों में अल्पांश हिस्सेदारी लेने की अनुमति देने के लिए नियमों में भी ढील दे रही है।
सरकारी अनुमान के मुताबिक, यदि यह विस्तार लक्ष्य पूरा हो जाता है तो परमाणु ऊर्जा भारत की कुल बिजली जरूरतों का 5 फीसदी हिस्सा पूरा करेगी।
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अब तक सरकार ने यूरेनियम के खनन, आयात और प्रोसेसिंग पर नियंत्रण बनाए रखा है, क्योंकि परमाणु सामग्री के संभावित दुरुपयोग, रेडिएशन से सुरक्षा और सामरिक सुरक्षा को लेकर चिंताएं रही हैं।
वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप, सरकार खर्च हो चुके यूरेनियम ईंधन के रिप्रोसेसिंग और प्लूटोनियम कचरे के प्रबंधन पर अपना नियंत्रण बरकरार रखेगी।
परमाणु ऊर्जा उत्पादन के विस्तार के साथ परमाणु ईंधन की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद करने के लिए, सरकार एक नियामकीय ढांचा तैयार करने की योजना बना रही है। यह नियामकीय ढांचा निजी भारतीय कंपनियों को यूरेनियम के खनन, आयात और प्रसंस्करण की अनुमति देगा। यह जानकारी दो सरकारी सूत्रों ने रॉयटर्स को दी।
सूत्रों के अनुसार प्रस्तावित नीति के तहत निजी कंपनियों को परमाणु बिजली प्लांटों के लिए आवश्यक कंट्रोल सिस्टम मशीनों की सप्लाई की भी अनुमति देगी।
वित्त मंत्रालय, परमाणु ऊर्जा विभाग और प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस पर रॉयटर्स के टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया।
भारत के बाहर, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका सहित कई देश निजी कंपनियों को यूरेनियम के खनन और प्रसंस्करण की अनुमति देते हैं।
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत के पास अनुमानित 76,000 टन यूरेनियम का भंडार है, जो 10,000 मेगावॉट परमाणु ऊर्जा उत्पादन को 30 वर्षों तक ईंधन उपलब्ध करा सकता है।
लेकिन सूत्रों का कहना है कि घरेलू संसाधन अनुमानित वृद्धि की केवल 25 फीसदी जरूरत ही पूरी कर पाएंगे। बाकी की सप्लाई आयात के जरिए करनी होगी और इसके लिए भारत को अपनी प्रोसेसिंग क्षमता भी बढ़ानी होगी।
1 फरवरी को बजट पेश करते समय सरकार ने इस सेक्टर को निजी क्षेत्र के लिए खोलने की योजना का ऐलान किया था, लेकिन इसके विवरण नहीं दिए थे। इसके बाद, भारत के कई बड़े कॉरपोरेट घरानों ने निवेश योजनाएं बनाना शुरू कर दिया। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि कानून में संशोधन करना जटिल हो सकता है।
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स्वतंत्र ऊर्जा क्षेत्र सलाहकार चारुदत्ता पालेकर ने कहा, “यह भारत सरकार का एक बड़ा और साहसिक पहल है, जो लक्ष्य हासिल करने के लिए बेहद अहम है।” उन्होंने कहा, “चुनौती यह होगी कि निजी क्षेत्र के साथ काम करने के नियम जल्द से जल्द तय किए जाएं।”
सूत्रों के मुताबिक, प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी को कई तय गतिविधियों में सक्षम बनाने के लिए सरकार को पांच कानूनों में बदलाव करना होगा, जिनमें खनन और बिजली क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले कानून और भारत की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति शामिल हैं।