केंद्र सरकार जलमार्गों को निजी क्षेत्र के लिए आकर्षक बनाने के तरीकों पर विचार कर रही है। ऐसे में अंतर्देशीय जलमार्ग टर्मिनलों के लिए कोई मानक अनुबंध या मॉडल कंसेशन एग्रीमेंट होना संभव नहीं है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक भारत के नदियों के बंदरगाहों पर कार्गो परिचालक बनने को लेकर निजी ऑपरेटरों की कम दिलचस्पी को देखते हुए सरकार अपने तौर तरीके में लचीलापन जारी रखेगी।
अधिकारी ने कहा, ‘जब एक सेक्टर उभरती स्थिति में होता है, कंसेशन एग्रीमेंट में स्थिर मानक होने से प्राधिकारियों को कंसेशनायर की जरूरतों के मुताबिक दोनों पक्षों के लिए लाभदायक समझौते करने की राह में बाधाएं पैदा होती हैं।’ अक्टूबर में यूरोप की बड़ी नदी परिवहन कंपनियों में से एक, जर्मनी स्थित रेनस ग्रुप ने राष्ट्रीय जलमार्ग 1 और 2 पर परिचालन के लिए नदी नौकाओं पर 10 करोड़ डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई थी।
इस अखबार के साथ बातचीत में कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी टोबियास बार्ट्ज ने कहा था कि वह पीपीपी के आधार पर टर्मिनलों में निवेश पर भी विचार कर रहे हैं, लेकिन सबसे पहले सरकार की ओर से नियमों में स्पस्टता लाए जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा था, ‘हमें समझने की जरूरत है कि नियामकीय ढांचा क्या है। यूरोप के अनुभव से हमारा लक्ष्य यह है कि दीर्घावधि समझौते हों। इस तरह की संपत्तियों के दशकों तक प्रबंधन की जरूरत होती है। हमारे बंदरगाह संचालन की न्यूनतम समयावधि 30 साल की होती है।’
बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय से मांगी गई जानकारी का जवाब खबर प्रकाशित होने तक नहीं मिल सका। इस समय पीपीपी के तहत अंतर्देशीय जलमार्ग टर्मिनल का अनुबंध 30 वर्ष की अवधि तक के लिए हो सकता है और इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
साहिबगंज और वाराणसी में सरकार ने पहले 50 साल के लिए निजी ऑपरेटर लाने की कवायद की, जिसमें 30 साल की मूल अवधि और 20 साल का विस्तार शामिल था। लेकिन कम रुचि के कारण ऐसा हो नहीं सका। खबरों के मुताबिक दोनों टर्मिनलों के लिए केवल 1-1 कंपनियां सामने आईं। इस समय टर्मिनल का प्रबंधन आईडब्ल्यूएआई द्वारा खुद किया जा रहा है। केंद्र सरकार कम से कम अपने 5 जलमार्ग टर्मिनलों के लिए निजी ऑपरेटरों की तलाश कर रही है।
हाल में सरकार ने जलवाहक योजना की घोषणा की थी। इसमें जल परिवहन में 35 प्रतिशत तक की सब्सिडी का प्रावधान है। इसका मकसद परिवहन के इस साधन को ज्यादा आकर्षक बनाना है। भारत की नदियों में माल ढुलाई की स्थिति में सुधार हुआ है। लेकिन यह मोटे तौर पर कुछ उद्योगों की निजी जरूरतों पर आधारित है। साथ ही नौवहन की चिंताएं निवेशकों को सतर्क बनाए हुए हैं।