यह दशक देश में अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy) का स्वर्णिम युग रहा है। मार्च 2024 में हरित ईंधन के प्रमुख स्रोत जैसे सौर व पवन ऊर्जा की क्षमता बढ़कर 136 गीगावॉट हो गई जबकि यह मार्च 2014 में 35 गीगावॉट थी। बिज़नेस स्टैंडर्ड के आंकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक अक्षय ऊर्जा की क्षमता में जबरदस्त मांग के बावजूद इस साल बिजली की मांग 12 फीसदी ही बढ़ी है।
बिजली ग्रिड में तकनीकी सीमा के कारण अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी सीमित है। इस साल देश में रिकॉर्ड तेज गर्मी पड़ने की आशंका के कारण भारत में ग्रिड फिर कोयले पर आश्रित हो गया है। प्लांट लोड फैक्टर में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 16-18 फीसदी और तापीय ऊर्जा की 70 फीसदी है।
इक्रा लिमिटेड के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट ऐंड ग्रुप हेड गिरीश कुमार कदम ने कहा कि वित्त वर्ष 2024 में बिजली उत्पादन मिश्रण में अक्षय ऊर्जा का योगदान (पनबिजली को छोड़कर) करीब 14 फीसदी है जबकि मार्च 2024 तक अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता 32 फीसदी थी।
दरअसल पनबिजली का कम उत्पादन हो रहा है, गैस उपलब्ध नहीं है और नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा भंडारण की सुविधा के बिना भरोसेमंद नहीं हैं। ऐसे में बिजली की रोजाना की 80 फीसदी मांग कोयले वाले बिजली संयंत्रों से पूरी होती है। ग्रिड इंडिया के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार सौर घंटों (दिन में) में अक्षय ऊर्जा औसतन बिजली मांग के 25-30 फीसदी को ही पूरा कर पा रही है और यह रात में शून्य है। लिहाजा कोयले से बनने वाली बिजली की 24 घंटे जरूरत है।
दिल्ली में नैशनल लोड डिस्पैच सेंटर (एनएलडीसी) का कहना है, ‘सौर और पवन बिजली से दिन में बिजली मिलती है और रात में अचानक इस बिजली की 40 गीगावॉट कमी हो जाती है।
अक्षय ऊर्जा से करीब 32 फीसदी तात्कालिक मांग को पूरा किया जा सकता है लेकिन कोयले से बनने वाली बिजली को घटाए जाने की जरूरत है। मगर कोयले से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी एक खास सीमा से नीचे नहीं लाई जा सकती है और यह दिन में पूरी क्षमता से कार्य करती है। लिहाजा पर्याप्त अक्षय ऊर्जा के बावजूद कोयला अहम भूमिका निभा रहा है।’ कई क्षेत्रीय लोड डिस्पैच सेंटर (आरएलडीसी) के अधिकारी इस बात से सहमत हैं।
उत्तरी क्षेत्र के आरएलडीसी के एक अधिकारी ने बताया, ‘अक्षय ऊर्जा की मांग बढ़ रही है लेकिन इसकी हिस्सेदारी नहीं बढ़ रही है। लिहाजा बढ़ने वाली पूरी मांग को पूरा करने का जिम्मा कोयले पर आता है। छत पर सौर ऊर्जा से ग्रिड पर दबाव कम होगा लेकिन इसका लगाया जाना आने वाले कुछ वर्षों में बढ़ेगा।’
पनबिजली का अधिक मिश्रण करने पर अक्षय ऊर्जा की क्षमता बढ़कर 187 गीगावॉट हो जाएगी और इसका आपूर्ति में योगदान 30 फीसदी हो जाएगा। बड़ी पनबिजली योजनाओं को पांच वर्ष पूर्व अक्षय ऊर्जा के रूप में पारिभाषित किया गया है। लेकिन इस वर्ष बर्फबारी देर से होने के कारण जब बिजली की मांग सर्वाधिक होगी, उस समय पनबिजली की आपूर्ति उम्मीद से कम होगी।
देश में हर साल अक्षय ऊर्जा का योगदान बढ़ेगा। भारतीय ग्रिड में हर अक्षय ऊर्जा की नए सीजन में ज्यादा मांग भी बढ़ेगी। ग्रिड संचालक इसे ‘डक कर्व’ कहते हैं। दिन के शुरुआत में बिजली की मांग अधिकतम होती है जैसे कार्यालय के घंटे या वाणिज्यिक बिजली की मांग। हालांकि हाल के वर्षों में अधिकतम मांग शाम के घंटों में बढ़ती है। इसका कारण यह है कि घरों में बिजली के उपकरणों के कारण मांग बढ़ती है, इस दौरान शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खासतौर पर एसी और फ्रिज का इस्तेमाल बढ़ जाता है।
ग्रिड के अधिकारी ने बताया, ‘शाम के घंटों में बिजली की मांग बढ़ती है और उस समय सौर और पन बिजली उपलब्ध नहीं होती है। जब दिन और दोपहर में सौर ऊर्जा उपलब्ध होती है तो बिजली की मांग अधिक नहीं होती है। लिहाजा मांग और आपूर्ति में अंतर के कारण डक कर्व (मांग अधिक व आपूर्ति कम होती है, ऐसे में मांग व आपूर्त का मैप बत्तख की आकृति की तरह होता है) होता है। लिहाजा आने वाले समय में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ने पर अनिश्चितता बढ़ेगी।’
कदम ने इस अखबार के भेजे गए सवालों के जवाब में कहा, ‘लोड पैटर्न से सौर ऊर्जा के बनने के पैटर्न का समुचित तालमेल नहीं हो पाया है। पूरे दिन बिजली मुहैया कराने के लिए हाइब्रिड अक्षय ऊर्जा के साथ भंडारण की जरूरत होती है और इससे ग्रिड से अक्षय ऊर्जा का समुचित ढंग से समन्वय हो पाता है।’
बिजली की मांग का पैटर्न जितना अप्रत्याशित होता जाता है, उतना ही कोयले पर निर्भरता का अनुमान बढ़ता जाता है।