भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की संपत्ति कार्ड योजना, स्वामित्व के जरिये प्रमुख बुनियादी ढांचा तैयार किया जा रहा है जो निरंतर परिचालन संदर्भ स्टेशन (सीओआरएस) से जुड़ा है। सीओआरएस वास्तव में जीपीएस से लैस स्टेशनों का एक नेटवर्क है जो सटीक मानचित्र बनाने के लिए निर्देश हासिल करता है।
दूर और नजदीक स्थानों में भी मोबाइल टावर की तरह, ये स्टेशन एक ग्रिड तैयार करने में मदद करेंगे, जिसके आधार पर नक्शे बहुत कम प्रयास और लागत के साथ सबसे कम पैमाने पर जल्दी से तैयार किए जा सकते हैं। सीओआरएस ने ‘स्वामित्व’ के लिए सटीक नक्शा बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी है जो संपत्ति कार्ड हासिल करने वाली पीढ़ी के लिए महत्त्वपूर्ण है।
नक्शा बनाना हमेशा किसी भी देश की विकास यात्रा का एक आकर्षक और अभिन्न अंग रहा है। भारत के पूर्व सर्वेयर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार, वीएसएम, (सेवानिवृत्त) बताते हैं, ‘नक्शे कागज पर जमीन का सटीक प्रतिनिधित्व करने के अलावा कुछ भी नहीं हैं और यह जितना सटीक होता है, उतना ही अधिक प्रतिनिधित्व करने वाला होता है।’
अंग्रेजों ने 1802 में एक सर्वेक्षण कराया था जिसे ‘द ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे (जीटीएस) ऑफ इंडिया’ कहा जाता है। इस सर्वेक्षण की कई उपलब्धियों में उपमहाद्वीप में ब्रिटिश क्षेत्रों का सीमांकन और हिमालय की चोटियों एवरेस्ट, के 2 और कंचनजंगा की ऊंचाई का माप शामिल है। जीटीएस सर्वेक्षण का एक बड़ा वैज्ञानिक प्रभाव भी था क्योंकि यह देशांतर के वृताकार हिस्से के एक खंड के पहले सटीक मापों में से एक था और भूगणितीय विसंगति को भी मापता था, जिसके कारण समस्थितिक सिद्धांतों का विकास हुआ।
हालांकि, उपयोग किए जाने वाले उपकरण बेहद पुराने दौर के थे और अंग्रेजों ने कुछ संदर्भ बिंदु हासिल करने के लिए पहाड़ी की चोटी और कुछ उच्च स्थलों पर सर्वेक्षण स्टेशन स्थापित किए।
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अगर किसी को सर्वेक्षण करना था तो इन स्टेशनों ने इसे करने के लिए एक बेंचमार्क का उपयोग किया। लेकिन इस प्रक्रिया में काफी समय लगा और इसमें काफी मेहनत लगी। वर्ष 2005 में भारत ने जीपीएस-आधारित नक्शा तैयार करने की प्रणाली अपनाई और देश ने हमारे तंत्र को वैश्विक डेटा के अनुरूप किया।
गिरीश कुमार कहते हैं, ‘इससे पहले एवरेस्ट के डेटा किसी भी स्थान के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए संदर्भ प्रणाली थी लेकिन, एवरेस्ट डेटम एक वैश्विक प्रणाली नहीं थी।’ वर्ष 2005 में एक राष्ट्रीय मानचित्र नीति लाई गई जिसके तहत देश भर के सभी जीटीएस स्टेशनों को जीपीएस प्रणाली का उपयोग करने के लिए दोबारा तैयार किया गया। लेकिन चूंकि इनमें से अधिकांश स्टेशन अब भी पहाड़ी की चोटी पर या ऊंचाई वाले स्तर पर थे, इसलिए उन तक पहुंचना काफी मुश्किल और काफी वक्त लेने वाला था।
जीपीएस से लैस जीटीएस स्टेशनों ने अपने नियंत्रण बिंदु या जीसीपी लाइब्रेरी भी तैयार की। लेकिन लाइब्रेरी निष्क्रिय स्टेशन थे और उन पर नियंत्रण करने की आवश्यकता थी। दूसरी ओर, सीओआरएस सक्रिय स्टेशन हैं जो स्थायी रूप से नियंत्रण में हैं और बिना किसी मानव इंटरफेस के केंद्रीय नियंत्रण केंद्र के साथ संवाद करते हैं।
इससे पहले, किसी व्यक्ति को सटीक निर्देश पाने के लिए दो से छह घंटे तक जीपीएस उपकरण को पकड़ना पड़ता था लेकिन सीओआरएस के साथ जीपीएस उपकरण स्थायी रूप से स्थापित हो जाता है क्योंकि यह मोबाइल टावर में होता है।
गिरीश कुमार ने कहा, ‘सीओआरएस के तहत, करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर चार जीपीएस स्टेशन एक वर्चुअल रेफरेंस सिस्टम बनाते हैं जो मुख्य केंद्र से जुड़ा होता है। इस प्रणाली के साथ, जीपीएस उपकरण के साथ कोई भी व्यक्ति केवल दो से तीन मिनट में सटीक स्थिति के बारे में जानकारी ले सकता है।’
सीओआरएस के आधार पर, स्वामित्व नक्शे 1:500 पैमाने की सटीकता के साथ बनाए गए हैं। सीओआरएस का उपयोग राजमार्ग परियोजनाओं, रेलवे परियोजनाओं का तुरंत और वास्तविक समय में सर्वेक्षण करने के साथ ही किसी भी विकास परियोजना की जांच करने के लिए भी किया जा सकता है।