हरियाणा के झज्जर जिले के अहमदलपुर गांव के पहली बार सरपंच बने सुमित सिंह की उम्र महज 30 साल है और छह महीने पहले इस पद पर आसीन होने के बाद से वह कई पेचीदा मामलों से जूझ चुके हैं। एक मामला जो उन्हें विशेष रूप से याद है जब दो किरायेदारों के एक संपत्ति पर अधिकार जमाने के दावे से जुड़ा है जबकि यह संपत्ति वास्तव में एक पुराने बेहद कमजोर व्यक्ति की थी जो गांव में नहीं रहता था।
जब उन्हें पता चला कि अन्य लोग उनकी पैतृक संपत्ति पर दावा कर रहे हैं तब वह गांव आए और सरकार के नए संपत्ति कार्ड, ‘स्वामित्व’ के तहत असली मालिक के रूप में अपना नाम दर्ज कराने में सफल हुए। सिंह कहते हैं, ‘उस दिन मैंने उनके चेहरे पर जो संतुष्टि देखी, वह कुछ ऐसी है जिसे मैं जीवन भर याद रखूंगा।’
पंचायती राज मंत्रालय द्वारा शुरू की गई योजना ‘सर्वे ऑफ विलेज आबादी ऐंड मैपिंग विद इम्प्रोवाइज्ड टेक्नोलॉजी इन विलेज एरियाज’ के तहत उन ग्रामीणों को मालिकाना हक दिया जा रहा है जो बिना कानूनी प्रमाण के वर्षों से अपने घरों में रह रहे हैं।
मालिकाना हक उन्हें बैंक ऋण और राज्य तथा केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभ का पात्र बनाता है। इन सबसे ऊपर, यह इन ग्रामीणों को सुरक्षा की भावना देता है और साथ ही केंद्र तथा राज्य सरकारों को नागरिकों के स्वामित्व वाली भूमि के रिकॉर्ड को बनाए रखने में सक्षम बनाता है।
हरियाणा में, जिस संपत्ति में स्वामित्व पीढ़ियों के आधार पर हस्तांतरित किया जाता है न कि कानूनी रूप से मान्य संपत्ति दस्तावेजों के आधार पर और उसे ही ‘लालडोरा’ वाली जमीन कहा जाता है।
अहमदलपुर सहित छह गांवों के पंचायत सचिव दीपक कुमार कहते हैं, ‘एक मामले में, जब हमने एक घर का सर्वेक्षण किया जहां भाइयों ने असली मालिक होने का दावा किया और उनके पिता कुछ महीने के बाद हमारे पास आए। वह चाहते थे कि उनका नाम पंजीकरण पर्ची में शामिल किया जाए क्योंकि उन्हें डर था कि एक बार सब कुछ कानूनी हो जाने के बाद, उनके बेटे उन्हें घर से बाहर निकाल देंगे।’ बेटों से सहमति मिलने के बाद पिता का नाम भी स्वामित्व संपत्ति कार्ड में शामिल कर लिया गया।
स्वामित्व कार्ड पाने की प्रक्रिया ‘सर्वे ऑफ इंडिया’ द्वारा क्षेत्र का ड्रोन सर्वेक्षण करने से शुरू होती है। फिर गांव का एक मसौदा नक्शा, पंचायतों को भेजा जाता है। हालांकि, यह सर्वेक्षण खामियों से भरा हुआ है।
कुमार कहते हैं, ‘एक मामले में, ड्रोन ने 256, 257 और 258 नंबर के तीन घरों का सर्वेक्षण किया। लेकिन, जब हमने जाकर सत्यापन किया तब पाया कि तीनों घरों के एक ही मालिक थे। इसलिए, नक्शे को फिर से तैयार करने की आवश्यकता है ताकि एक ही मालिक के लिए कई पहचान पत्र न तैयार हो जाएं।’
वह कहते हैं कि इसका उल्टा भी होता है। उदाहरण के तौर पर अगर तीन भाई एक ही घर में रहते हैं तब ड्रोन उन्हें एक इकाई के रूप में दिखाता है।
लोगों के घर-घर जाकर सर्वेक्षण कर, लोगों के संपत्ति के विवरण का सत्यापन ग्राम सचिव, सरपंच, पंचायत के अन्य सदस्यों, जिला राजस्व अधिकारी और गांव के कुछ वरिष्ठ और ज्ञात सदस्यों से बनी एक टीम द्वारा किया जाता है।
एक बार सत्यापन पूरा हो जाने के बाद और मालिक अपनी सहमति देते हैं या किसी तरह के बदलाव का सुझाव देते हैं तब मसौदा नक्शे में सुधार किया जाता है और एक अंतिम नक्शा जारी किया जाता है जिसमें नाम, आधार कार्ड, परिवार के पहचान पत्र (केवल हरियाणा के मामले में) और मालिकों के अन्य विवरणों के साथ प्रत्येक आवासीय संपत्ति का पहचान पत्र बनने के साथ ही उसको नंबर दिया जाता है।
अंतिम सूची तब मालिकों द्वारा सत्यापन के लिए पंचायत कार्यालय में प्रदर्शित की जाती है। यदि उस पर कोई आपत्ति नहीं जताता है तब स्वामित्व कार्ड जारी करने के लिए विवरण भेजा जाता है। कार्ड में नौ अंकों की विशिष्ट आईडी और उनके साथ संलग्न संपत्ति का नक्शा होता है। एक बार कार्ड बन जाने के बाद संपत्ति के मालिकाना हक के पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू होती है।
अगर स्वामित्व में कोई विवाद है, तब इसे एक समिति या ग्राम सभाओं के माध्यम से प्रखंड के स्तर पर हल करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन अगर विवाद बना रहता है तब आईडी को विवादित के रूप में चिह्नित किया जाता है जिसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है और उन्हें वैसे ही छोड़ दिया जाता है जैसे वे हैं।
एक दूसरे ग्राम सचिव प्रवीण दत्त कहते हैं, ‘आमतौर पर, लगभग 100 घरों वाले गांव में, केवल तीन-चार मामले ही विवादास्पद होते हैं क्योंकि इस हिस्से में भूमि का मालिकाना हक बहुत उचित है और भूमि हड़पने तथा अवैध कब्जे के मामले अपेक्षाकृत दुर्लभ हैं।
एक समस्या जो झज्जर के गांवों और यहां तक कि देश के अन्य हिस्सों में अनूठी है और यह पुराने छोड़े गए घर से जुड़ी है जिनके मालिक वर्षों पहले चले गए हैं। दत्त कहते हैं, ‘ये ज्यादातर ऐसे घर हैं जिन पर बड़े जमींदारों ने कब्जा कर लिया था और वर्षों से बेटे और बेटियां गांव के बाहर बस गए और संपत्ति का दावा करने के लिए कभी वापस नहीं आए।’
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) में सीनियर फेलो और भूमि संबंधित मुद्दों की विशेषज्ञ नमिता वाही कहती हैं कि स्वामित्व योजना को कुछ और मुद्दों पर भी व्यापक तरीके से काम करना चाहिए।
वाही कहती हैं, ‘सबसे पहले, संपत्ति का पहचान पत्र, अनिवार्य रूप से महिला मालिक के नाम पर होना चाहिए जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। दूसरा, एक सक्षम कानून होना चाहिए जो इस पहचान पत्र (आईडी) को कानूनी समर्थन देगा, जिसके अभाव में वित्तीय संस्थान कोई फायदा नहीं दे सकते हैं। तीसरा, इन आईडी का उद्देश्य स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए।’
सीपीआर के एक अन्य सीनियर फेलो पार्थ मुखोपाध्याय का कहना है कि सैद्धांतिक रूप से यह योजना फायदेमंद है, लेकिन सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कार्यक्रम को कैसे लागू किया जाता है।
एक बार संपत्ति के स्वामित्व को स्पष्ट टाइटल डीड के साथ पंजीकृत करने के बाद सरकार के सामने यह विकल्प होगा कि वह संपत्ति कर लगाए और स्ट्रीट लाइट और पानी के कनेक्शन जैसी सुविधाओं के लिए मालिकों से भी शुल्क ले सके। हालांकि, सरकारी अधिकारी ऐसी किसी भी योजना से इनकार करते हैं और जोर देकर कहते हैं कि ‘स्वामित्व संपत्ति कार्ड’ केवल ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक अपंजीकृत आवासों के स्वामित्व अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए हैं।