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UNESCO की मुहर से पश्चिम बंगाल में बढ़ी दुर्गा ‘पूजा’ की रौनक

दिसंबर 2021 में 'कोलकाता के दुर्गा पूजा' को यूनेस्को की मानवता से जुड़ी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया था।

Last Updated- October 20, 2023 | 11:27 PM IST
Durga Puja's Unesco spark ignites pandal art, business and more

उत्तरी कोलकाता में दुर्गा पूजा की धूम और उत्साह के बीच ताला प्रत्यय और उसके भीतर मौजूद दुर्गा की भव्य मूर्ति आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। करीब 33,000 वर्ग फुट में फैला ताला प्रत्यय दुर्गा पूजा स्टैंड दो विशाल मेहराब और मजबूत स्तंभ से जुड़ा हुआ है और इनमें देसी कलाकार, सुशांत पॉल ने अपनी पूरी छाप छोड़ी है। इस भव्य पंडाल के भीतर जीवन की रोजमर्रा की दिनचर्या से जुड़ी जगहें जैसे कि पढ़ने, नहाने, खाने-पीने की जगह की झांकी दिखती है और इसके अलावा गर्भगृह भी है। यहां कलाकार पूजा के दिनों के दौरान देवी-देवता की मूर्तियों के साथ रह भी सकते हैं।

पॉल ने कहा, ‘सामान्यतौर पर संगठित धर्म में भक्तों और देवताओं के बीच एक दूरी नजर आती है लेकिन मैं उसे दूर करने की कोशिश कर रहा हूं। मैं दुर्गा के साथ ही रह रहा हूं।’लगभग 50 टन वजन की विशाल धातु वाली संरचना को 180 कारीगरों ने तीन महीने में तैयार किया है और इसकी लागत 1-1.5 करोड़ रुपये है। अपनी भव्यता के बावजूद इस साल के पूजा पंडालों में कई रचनात्मक थीम देखने को मिल रही है।

पॉल मानते हैं कि दुर्गा पूजा में एक बदलाव तब देखने को मिला जब कलाकारों ने 1998-99 के करीब भागीदारी करनी शुरू कर दी।

शुरुआत में पूरा ध्यान मंडपों या पंडालों पर होता था जहां मूर्ति रखी जाती थी लेकिन बाद में खास तरह की थीम वाले पंडाल की तरफ झुकाव बढ़ने के साथ ही 1985 में एशियन पेंट्स शरद सम्मान के साथ हुआ, जिसके तहत सबसे अच्छी तरह सजाए गए पंडालों को पुरस्कार दिया जाता था। ये पंडाल तब से कलात्मक अवधारणाओं के साथ तैयार किए जाने लगे हैं और इसमें सदियों पुराने रीति-रिवाजों और चलन को चुनौती देते हुए सामाजिक और समकालीन मुद्दों को व्यापकता से उभारने की कोशिश की जाती है।

इस साल सेंट्रल कोलकाता के एक पंडाल में मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के मुद्दे को थीम बनाया गया है जो इस महत्त्वपूर्ण विषय से जुड़ी सामाजिक वर्जनाओं को खत्म करता है।

कई पूजा पंडालों में अलग तरह की कलात्मक अभिव्यक्ति देखी जा सकती है जिसमें बंगाल के विभाजन के दर्द से लेकर सरोगेसी, बच्चों की तस्करी और यहां तक कि एक बड़े जनआंदोलन को थीम बनाया गया है जो संभवतः मणिपुर में हुई हिंसा की प्रतिक्रिया कही जा सकती है।

यूनेस्को प्रभाव

दिसंबर 2021 में ‘कोलकाता के दुर्गा पूजा’ को यूनेस्को की मानवता से जुड़ी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया था। इसके चलते आयोजक और कलाकार इस पहचान का पूरा फायदा उठा रहे हैं। ब्रिटिश काउंसिल इंडिया के निदेशक (पूर्व और पूर्वोत्तर) देवांजन चक्रवर्ती कहते हैं, ‘यूनेस्को की मान्यता ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुर्गा पूजा को देखने के नजरिये में बड़ा अंतर दिखाया है। अब रचनात्मकता में भी काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है।’

जून 2022 में बने एक गैर-लाभकारी संगठन मासआर्ट ने दुर्गापूजा प्रीव्यू शो की परिकल्पना की जिसके अंतरराष्ट्रीय साझेदारों में ब्रिटिश काउंसिल और यूनेस्को शामिल है। इसके चलते दुर्गा पूजा पिछले 20 वर्षों में सार्वजनिक कला त्योहार के रूप में आकर्षण का केंद्र बन गया है।

मासआर्ट के सचिव ध्रुवज्योति बोस शुभ का कहना है कि यहां दुर्गा पूजा कला की बेहतरीन झलक मिलती है और लोग यहां अंतिम समय की भीड़ से बचते हुए पहले भी इसके नजारे का लुत्फ उठा सकते हैं। वह कहते हैं कि इस साल लोगों की जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली और विदेशी मेहमानों, कला आलोचकों और देश भर के प्रशंसकों सहित लगभग 36,000 लोग मौजूद रहे।

कारोबार की धूम

कोलकाता की सड़कों पर उत्सव का माहौल है और उत्साह भी साफतौर पर नजर आ रहा है। विज्ञापनदाताओं ने इसका अनुमान लगाया था और इसी वजह से उन्होंने अपने दर्शकों और उपभोक्ताओं को लुभाते हुए शहर को बैनरों में पाट दिया है।

सिंघी पार्क दुर्गा पूजा समिति के महासचिव अभिजित मजूमदार कहते हैं, ‘मैं पिछले 36-37 वर्षों से दुर्गा पूजा से जुड़ा हूं और मैं कह सकता हूं कि प्रायोजन के लिए यह सबसे अच्छा वर्ष है।’

वह कहते हैं कि 80 प्रतिशत आउटडोर विज्ञापन पूजा से दो महीने पहले बुक किए गए थे और वे प्रायोजन में बढ़ोतरी का श्रेय यूनेस्को टैग को देते हैं। बड़े ब्रांडों ने अपने राष्ट्रीय स्तर के मार्केटिंग बजट से स्थानीय स्तर पर फंड का आवंटन किया है जिसके चलते सिंघी पार्क के इवेंट के लिए आउटडोर विज्ञापन में 80-90 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

साउथ कोलकाता के प्रमुख पूजा पंडालों को भी काफी प्रायोजक मिल रहे हैं जैसे कि बालीगंज कल्चरल एसोसिएशन (बीसीए) ने एक पंडाल की मेजबानी की थी वहीं कोका-कोला प्रायोजक बनी जिससे पूजा के बजट का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा कवर किया गया। कोका कोला ने इस बाबत बिज़नेस स्टैंडर्ड के सवालों के जवाब नहीं दिए।

जायके का लुत्फ

त्योहार के उत्साह में खुदरा सामान और खाद्य तथा पेय पदार्थ भी पूजा से जुड़ी अर्थव्यवस्था महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पिछले साल, महामारी के बाद लोगों ने खूब जमकर खाने-पीने का लुत्फ उठाया और खरीदारी की. इस साल भी कारोबारों को ग्राहकों की गतिविधि में नए सिरे से बढ़ोतरी का अंदाजा हो रहा है।

First Published - October 20, 2023 | 11:15 PM IST

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