जल्द ही आपके कई काम केवल आधार के जरिये हो सकते हैं क्योंकि सरकार ‘आधार’ को देश के सभी नागरिकों के लिए विशिष्ट पहचान के डिफॉल्ट या स्वत: दस्तावेज का दर्जा दे सकती है। इसमें आधार का इस्तेमाल नागरिकों के डिजिटल रिकॉर्ड, डिजिटल अनुबंधों और हस्ताक्षर के सत्यापन में किया जाएगा।
यह प्रावधान डिजिटल इंडिया विधेयक (डीआईबी) के तहत लाया जा सकता है। सूत्रों ने बताया कि इससे निजी क्षेत्र में भी आधार का व्यापक इस्तेमाल होगा।
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने नए विधेयक के लिए मसौदा तैयार किया है। यह मसौदा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की जगह लेगा। फिलहाल मसौदा शुरुआती चरणों में है मगर एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह कानून के व्यापक सिद्धांतों के अनुरूप ही है। अगर कोई नागरिक स्वतः पहचान के रूप में आधार से सत्यापन का विकल्प नहीं चुनता है तो आधार से जुड़ी अन्य विशिष्ट पहचान एवं साक्ष्यों का इस्तेमाल किया जाएगा।
मसौदे के अनुसार किसी भी डिजिटल हस्ताक्षर को विश्वसनीय तभी माना जाएगा, जब वह आधार से जुड़ा होगा। सरकार की यह पहल देश में आधार आधारित ई-केवाईसी (नो योर कस्टमर) प्रक्रिया पर लंबे समय से चल रही बहस को तेज कर सकती है। उच्चतम न्यायालय ने सितंबर 2018 के अपने आदेश में निजी कंपनियों को आधार की बायोमेट्रिक प्रणाली का इस्तेमाल करने से रोक दिया है।
दूसरे शब्दों में कहें तो न्यायालय ने आधार का दायरा केवल कल्याणकारी योजनाओं में इस्तेमाल तक ही सीमित कर दिया है। एक विधि विशेषज्ञ ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘पिछले साल दिसंबर से आ रही खबरों में इस विधेयक के विभिन्न प्रावधानों का जिक्र हो रहा है।
ये नए प्रावधान मौजूदा आईटी अधिनियम की जगह ले सकते हैं। मगर सरकार की ओर से आधिकारिक जानकारी के बगैर इस विषय पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। फिर भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि आधार संशोधन विधयेक, 2019 को न्यायालय में तत्काल चुनौती दी गई थी।’
नए कानून में सरकार के पास असीमित अधिकार हो सकते हैं। सरकार इस कानून का हवाला देकर ऑनलाइन प्रकाशित हो रही सामग्री पर नजर एवं निगरानी रखने के साथ उसमें हस्तक्षेप भी कर सकती है और उसे बदलने या हटाने के लिए भी कह सकती है।
केंद्र एवं राज्य सरकार या किसी अन्य अधिकृत संस्था का कोई अधिकारी अपनी एजेंसियों को किसी भी डिजिटल प्रणाली में उत्पन्न, प्रसारित या प्राप्त या संरक्षित की गई जानकारी हटाने के लिए कह सकता है। यदि सरकार को लगा कि कोई कदम देश की संप्रभुता या अखंडता, देश की सुरक्षा या किसी देश के साथ दोस्ताना संबंधों के लिए खतरा पैदा कर रही है तो वह अपने हिसाब से कदम उठा सकती है।
विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि सरकार की तरफ से ऐसा कोई हस्तक्षेप व्हाट्सऐप, सिग्नल और टेलीग्राम जैसे मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर लोगों की निजता सुरक्षित रखने वाले उपायों को ताक पर रख सकता है।
नया विधेयक सरकार को यह तय करने का अधिकार भी दे सकता है कि किसी श्रेणी का मध्यस्थ (सोशल मीडिया आदि) तीसरे पक्ष से संबंधित डिजिटल रिकॉर्ड की जवाबदेही से छूट की मांग कर सकता है या नहीं। यह कानून लागू हुआ तो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी।