दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि शहर की सरकार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के स्कूली विद्यार्थियों को स्कूली पोशाक मुहैया करानी चाहिए न कि नकद।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अगस्त 2014 में दिल्ली सरकार से कहा था कि वह छात्रों को स्कूली पोशाक प्रदान करे न कि नकद, और उस दिशा में किसी भी संशोधन के अभाव में, अधिकारियों को इसका पालन करना होगा।
अदालत यहां के स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और वंचित समूहों से संबंधित छात्रों को संसाधनों की आपूर्ति और बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों तथा दिल्ली बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार नियम, 2011 के प्रावधानों के कार्यान्वयन से संबंधित याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई कर रही थी।
दिल्ली सरकार के वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि सरकार किताबें और अध्ययन सामग्री उपलब्ध करा रही है और अगले शैक्षणिक सत्र से वह छात्रों को स्कूली पोशाक भी देगी।
सरकारी वकील ने कहा कि अगले साल से स्कूलों के प्रमुख एक सर्वेक्षण किए जाने और अधिकारियों द्वारा अनुमोदित लागत के बाद बाजार से स्कूली पोशाक खरीद सकते हैं। इस बीच, वह वर्दी की खरीद के लिए नकद प्रदान करेंगे।
इस पर अदालत ने टिप्पणी की, ‘आपको नकद में भुगतान नहीं करना चाहिए। यह आदेश का अनुपालन नहीं है। अनुपालन एक स्कूल या स्कूलों के समूह के लिए एक दर्जी प्रदान करता है। सरकार कहेगी कि 50 रुपये प्रति मीटर कपड़ा मंजूर किया गया है। स्कूलों के प्रमुख कहेंगे कि 50 रुपए प्रति मीटर कपड़ा नहीं है।’
पीठ ने कहा, ‘हम सुनिश्चित करेंगे कि स्कूली पोशाक की आपूर्ति हो। हम इसकी निगरानी करेंगे।’ पीठ में न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद भी शामिल थे। पीठ ने इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 25 अगस्त तय की है।