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इंडिया गुट की मदद में खड़ी नागरिक समाज की संस्थाओं की चुनौती

इस काम में जुटे सैकड़ों कार्यकर्ताओं में कुछ नागरिक समाज के 50 संगठनों से हैं और कुछ इतनी छोटी 18 राजनीतिक पार्टियों से हैं।

Last Updated- October 08, 2023 | 8:41 PM IST
Challenge of civil society organizations standing in support of India faction

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को टक्कर देने के लिए बने इंडियन नैशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) की मदद के लिए सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं का एक जत्था ताल ठोककर खड़ा हो गया है। उन लोगों को यकीन है कि जिस तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके तीन दर्जन आनुषंगिक संगठनों ने कई दशकों तक मतदाताओं के बीच जाकर भाजपा के लिए जमीन तैयार की, उसी तरह वे भी अगले छह महीने तक कड़ी मेहनत कर इंडिया को वैसी ही कामयाबी दिला देंगे।

मगर कदम बढ़ाते ही इन कार्यकर्ताओं को अपने भीतर विरोधाभास झेलने पड़ रहे हैं और दिलचस्प है कि उन पार्टियों के नेता भी उन्हें पसंद नहीं कर रहे, जिनकी मदद को वे आगे आए हैं। इसके बावजूद ‘जीतेगा भारत अभियान’ शुरू हो चुका है, जबकि विपक्षी गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनावों में संघ परिवार को हराने के लिए एकजुट होने का संकल्प लेने के तीन महीने बाद भी वहीं खड़ा है।

इस काम में जुटे सैकड़ों कार्यकर्ताओं में कुछ नागरिक समाज के 50 संगठनों से हैं और कुछ इतनी छोटी 18 राजनीतिक पार्टियों से हैं, जिन्हें 26 पार्टियों वाले इंडिया में शायद एक सीट भी न मिल पाए। मगर ये कार्यकर्ता छोटी-छोटी जगहों पर काफी रसूख रखते हैं। इन सभी ने देश की राजधानी दिल्ली पहुंचकर 29-30 सितंबर को ‘जीतेगा भारत’ अभियान का बिगुल फूंक दिया।

2024 के लोकसभा चुनावों तक इन लोगों का खाका तैयार हो चुका है – ‘जीतेगा भारत’ ने देश भर में 125 लोकसभा सीटें चुनी हैं, जहां यह राजनीतिक दलों और गैर-पार्टी संगठनों के साथ मिलकर उन्हें जमीनी स्तर पर संगठन मुहैया कराएगा। साथ ही इसके सवा लाख कार्यकर्ताओं की ‘सत्य सेना’ सोशल मीडिया के जरिये विपक्षी गठबंधन की मदद करेगी और कम से कम ‘3 करोड़ मतदाताओं’ तक पहुंचेगी। इसका दावा है कि मुख्यधारा की पार्टियों से आर्थिक मदद लेने के बजाय क्राउडफंडिंग के जरिये आम लोगों से संसाधन जुटाए जाएंगे।

इंडिया के सभी 26 दल इस पर राजी नहीं हैं मगर प्रमुख पार्टियों को यह सही लग रहा है। कांग्रेस के कुछ नेताओं को यह आशंका भी है कि ‘जीतेगा भारत’ कुछ सीटों पर खास उम्मीदवारों की सिफारिश करेगा और इस अभियान की कमान संभाल रहे लोग पार्टी पदाधिकारी बन जाएंगे।

हालांकि कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, वाम दलों के सीताराम येचुरी, डी राजा, दीपंकर भट्टाचार्य जैसे वरिष्ठ विपक्षी नेताओं के साथ समाजवादी पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय लोक दल के प्रतिनिधियों ने भी 29 सितंबर को ‘जीतेगा भारत’ की शुरुआत में हिस्सा लिया था।

इन नेताओं में से एक ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इंडिया गुट की कोशिशों में तालमेल की कमी है क्योंकि अक्सर इसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और व्यक्तिगत अहंकार के आगे समझौता करना पड़ जाता है। इनमें न्यूनतम साझा एजेंडा तैयार करने और संयुक्त रैलियों के आयोजन जैसी चुनौतियां शामिल हैं। ‘जीतेगा भारत अभियान’ से इन्हें सुलझाने में मदद मिल सकती है। भारत में विपक्षी दल आम तौर पर वंशवादी हैं और उनके भीतर लोकतंत्र बहुत कम है। जिन राज्यों में वे सत्ता में हैं, वहां भी लोकतांत्रिक पैमानों का ख्याल नहीं रखा जाता।

ऐसे में विपक्षी दलों के गठबंधन की मदद करना आसान नहीं होगा। मगर ‘जीतेगा भारत’ का नेतृत्व मानता है कि भाजपा सरकार और संघ की विचारधारा को लोकतांत्रिक तरीके से हराने के लिए ‘स्पष्ट और खुला राजनीतिक रुख’ अपनाना ही वक्त का तकाजा है।

जीतेगा भारत अभियान के एक मार्गदर्शक का कहना है, ‘वामपंथी दलों को छोड़कर इंडिया के सभी घटक दलों के पास एक सुप्रीमो मॉडल है जो लोकतांत्रिक नहीं है। हमारे पक्ष में यह बात है कि हम पार्टी पदों पर नहीं पहुंचना चाहते। इसलिए हम सत्ता में मौजूद लोगों से सच बोल सकते हैं जो उनकी पार्टी के डरे हुए सदस्य नहीं बोल सकते।’

बेसिक्स सोशल एंटरप्राइज ग्रुप के संस्थापक और इस समय राजीव गांधी फाउंडेशन के सीईओ विजय महाजन, स्वराजन इंडिया के योगेंद्र यादव तथा शिक्षाविद अजित झा जैसे लोग इस अभियान को राह दिखा रहे हैं। जाने-माने सामाजिक उद्यमी महाजन का कहना है कि आपातकाल के बाद से देश ने विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को इस तरह लामबंद होते नहीं देखा।

महाजन ने कहा, ‘संघ लंबे समय से भाजपा के लिए समर्थन का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। हमारी ताकत हमारी विविधता है। हम मूल्यों के लिए एकजुट हुए हैं। हमारे पास हजार जगहों पर समर्थन देने वाले लोग हैं, जो हजार तरीकों से सीखते और सोचते हैं। संघ दस हजार जगहों पर हो सकता है मगर वे लोग एक ही तरीखे से समझते और सोचते हैं, जो इतना कारगर नहीं हो सकता क्योंकि वे नागपुर और दिल्ली से आए फरमान के हिसाब से ही सोचते हैं।’ उन्होंने यह भी माना कि जमीन पर जब हजारों आंखें होंगी तो उनकी प्रतिक्रिया को संभालने के लिए मजबूत और दूरदर्शी नेतृत्व की भी दरकार होगी।

इंडिया गुट के भीतर भरोसे की कमी दिख रही है। ‘जीतेगा भारत’ को उम्मीद है कि साझा समझ और कार्य योजनाओं के जरिये वह घटक दलों के बीच पुल का काम करेगा। हालांकि इसके बाद भी मतभेद रह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर आम आदमी पार्टी (आप) और योगेंद्र यादव के बीच पहले ही गहरे मतभेद हैं। यादव कहते हैं, ‘सवाल देश को बचाने का है तो हम ‘आप’ के साथ भी काम करेंगे।’

जीतेगा भारत के यह भी पता चला है कि मुख्यधारा के कई राजनीतिक दलों ने जिन पेशेवरों को काम पर रखा है, उन्हें मुद्दों की पर्याप्त समझ ही नहीं है। उसे उम्मीद है कि इस मोर्चे पर भी इंडिया के घटक दल उसकी मदद लेंगे।

पिछले शुक्रवार को दिग्विजय सिंह ने इस मंच के स्वयंसेवकों को मतदाता सूची में ‘फर्जी मतदाताओं’ पर नजर रखने की सलाह दी। दीपंकर भट्टाचार्य ने बताया कि 2021 के बंगाल विधानसभा चुनावों में नागरिक समाज समूहों के ‘नो वोट टु बीजेपी’ अभियान ने तृणमूल कांग्रेस को 5 प्रतिशत वोट दिलाने में मदद की।

इस अभियान का दावा है कि उसकी टीमें 13 बड़े राज्यों में सक्रिय हैं। उसका दावा है कि कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार में उसका भी हाथ रहा। इसका कहना है कि इसने वहां एड्डेलू कर्नाटक, या ‘वेक अप कर्नाटक’ जैसे अभियान चलाने में मदद की, जिसकी वजह से किसान, दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच काम करने वाले संगठन एक साथ आ गए।

एड्डेलु कर्नाटक ने एक डिजिटल मंच ईडिना का इस्तेमाल किया था जो राजनीतिक संदेश देने में मददगार होने के साथ ही जनमत संग्रह भी करा रहा था। उसके नतीजे चुनावी परिणाम से काफी मेल खाते मिले। सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ अभियान में मदद करने के मकसद से यह मंच बुद्धिजीवियों, लेखकों, फिल्म अभिनेताओं और अन्य लोगों को भी एक साथ लाया। इसने कुल 224 निर्वाचन क्षेत्र में से 103 में करीब 150 टीमें तैयार कीं।

कर्नाटक में मंच ने 250 प्रशिक्षण कार्यशाला चलाने में मदद की और करीब 10 लाख पर्चे बांटे। साथ ही करीब 80 राजनीतिक वीडियो बनाने, सात गाने तैयार करने के साथ-साथ संघ परिवार की बातों के जवाब भी दिए जैसे एक दावा यह था कि वोक्कालिगा ने टीपू सुल्तान को मारा था। इस अभियान ने उन 103 सीटों पर भाजपा से 1.5 से 3 प्रतिशत वोटों को प्रभावित किया, जहां उसने काम किया था।

First Published - October 8, 2023 | 8:41 PM IST

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