उद्योग संवर्द्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआई) के नियमों में संशोधन किए हैं। ये संशोधन ऐसे समय में हुए हैं जब देश में एफडीआई आने की गति सुस्त पड़ गई है।
डीपीआईआईटी ने उपग्रहों के लिए उपकरण बनाने में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति देने का मंगलवार को निर्णय किया। सरकार ने उपग्रह विनिर्माण एवं संचालन में 74 प्रतिशत और प्रक्षेपण यान (लॉन्च व्हीकल) में 49 प्रतिशत विदेश निवेश को भी हरी झंडी दे दी है।
देश में पिछले दो वर्षों के दौरान विदेश से आने वाला निवेश सुस्त रहा है। ऊंची महंगाई, विस्तारवादी मौद्रिक नीति एवं विकसित देशों में सुस्त आर्थिक क्रियाकलापों से उत्पन्न चुनौतियों के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था की नस ढीली पड़ने से भारत में एफडीआई में कमी दर्ज की जा रही है। डीपीआईआईटी के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में एफडीआई 13 प्रतिशत कमी के साथ 32 अरब डॉलर के स्तर पर रहा।
विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरिक्ष क्षेत्र में एफडीआई के नियमों में संशोधन देश की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी पहल है। उनके अनुसार अंतरिक्ष उद्योग का आकार 2033 तक मौजूदा 8.4 अरब डॉलर से बढ़कर 44 अरब डॉलर हो जाएगा। इसी अवधि के दौरान प्रक्षेपण यान, उपग्रह, विनिर्माण, पृथ्वी अवलोकन, संचार और इन-ऑर्बिट इकॉनमी में लगभग 20 अरब डॉलर के निवेश आने की उम्मीद है।
अब तक अंतरिक्ष क्षेत्र में उपग्रह स्थापन एवं संचालन में सरकार के माध्यम से 100 प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति थी। अब इस नीति में ढील दिए जाने के बाद सरकार उम्मीद कर रही है कि विदेशी एवं निजी क्षेत्र की कंपनियां भी इस खंड में उतरेंगी।
डीपीआईआईटी ने उपग्रह विनिर्माण एवं संचालन, उपग्रह डेटा उत्पाद एवं ग्राउंड एवं यूजर खंडों में भी 74 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति दी गई है। इससे अधिक एफडीआई के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी। प्रक्षेपण यान एवं संबद्ध प्रणालियों, उपग्रह भेजने और उतरने के लिए स्पेसपोर्ट में 49 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति होगी।