आधिकारिक आंकड़े दर्शाते हैं कि इस साल बीते एक से डेढ़ महीने के भीतर भगदड़ की दो घटनाओं में 48 लोगों ने जान गंवाई हैं। दोनों हादसे प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ से जुड़ी हैं, लेकिन घटनास्थल अलग-अलग है। भगदड़ की पहली घटना बीते 29 जनवरी को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज महाकुंभ स्नान के दौरान हुई जबकि दूसरी घटना देश की राजधानी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 16 फरवरी उस समय हुई जब महाकुंभ स्नान के लिए जाने वाले यात्रियों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी।
हालिया वर्षों में भगदड़ की अन्य दो बड़ी घटनाएं भी धार्मिक सभाओं में ही हुई थीं। एक घटना पिछले साल 2024 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक प्रार्थना सभा में हुई थी, जिसमें कम से कम 100 लोगों की जान चली गई थी और दूसरी घटना इंदौर शहर के एक मंदिर में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान एक कुएं का स्लैब गिरने से 36 लोग मारे गए थे।
ये हादसे धार्मिक आयोजनों के दौरान उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को संभालने के लिए भीड़ प्रबंधन की आवश्यकताओं की ओर इशारा करते हैं, खासकर इस बार महाकुंभ जैसे बड़े आयोजनों में इसकी काफी जरूरत महसूस हो रही है। इस बीच, बीते कुछ वर्षों में भारतीय रेलवे ने सुरक्षा संबंधी कार्यों पर अपने कुल व्यय का करीब 20 फीसदी हिस्सा खर्च किया है। यह आंकड़ा चालू वित्त वर्ष 2025 में बढ़कर 21 फीसदी होने की उम्मीद है, जो बीते वित्त वर्ष 2024 में 19.7 फीसदी था। वित्त वर्ष 2026 में इसके 20.6 फीसदी तक रहने की उम्मीद है। मगर ऐसे मामलों को रेल हादसा नहीं माना जाता है भले ही मंत्रालय ने हादसे में मरने वालों और जख्मी लोगों को मुआवजा देने का ऐलान किया है।
हालांकि, भगदड़ के मामले साल 2013 के 557 से घटकर साल 2022 में छह हो गए थे और मरने वालों की तादाद भी बीते दस वर्षों में 400 से कम होकर 22 हो गई है। हालांकि इन दुर्घटनाओं या यहां तक कि सड़क दुर्घटनाएं, ट्रेन दुर्घटनाएं, हवाई दुर्घटनाएं, डूबना जैसी अप्राकृतिक कारणों से होने वाली दुर्घटनाओं के मुकाबले भी काफी कम है।