संकट के दौर से गुजर रही अमेरिकी अर्थव्यवस्था का असर भारतीय आईटी उद्योग पर भी पड़ रहा है। इसकी वजह यह है कि आईटी कंपनियों की आय का करीब 50 फीसदी हिस्सा अमेरिकी बाजारों से ही आता है।
मंदी की वजह से अमेरिकी आईटी कंपनियों ने अपनी लागत कम करने के लिए आईटी खर्चों में कटौती कर दी है। यही नहीं, भारतीय आईटी कंपनियों को मौजूदा ग्राहकों को छूट भी देनी पड़ रही है। वहीं नए ग्राहकों को जोड़ने के लिए भी कीमतों में कटौती करनी पड़ रही है।
इसके साथ ही अमेरिका एवं अन्य देशों की सरकारों की ओर से अपने देश में नौकरियां बचाने के लिए आउटसोर्सिंग पर तमाम तरह की पाबंदी लागने की वजह से भी भारतीय आईटी कंपनियों को नुकसान हो रहा है। यही वजह है कि आईटी कंपनियों की आय तिमाही-दर-तिमाही सिकुड़ रही है।
हालांकि बीएसई आई सूचकांक बीएसई सेंसेक्स की तुलना में थोड़ा बेहतर प्रदर्शन कर रही है। पिछले एक साल के आंकड़ों को देखें तो आईटी सूचकांक में जहां तकरीबन 45 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, वहीं सेंसेक्स करीब 49 फीसदी लुढ़क चुका है।
आईटी सूचकांक में करीब 15 फीसदी की गिरावट इन्फोसिस के शेयरों में दर्ज की गई, जिसका बीएसई आईटी सूचकांक में करीब 70 फीसदी योगदान है।
1 दिसंबर, 2008 से जब सेंसेक्स 6 फीसदी लुढ़का है, और आईटी सूचकांक में 18 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, तब से इन्फोसिस के शेयर फ्लैट कारोबार कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो उसमें एक तरह की स्थिरता आ गई है।
हालांकि आईटी क्षेत्र के लिए कुछ अच्छे संकेत भी नजर आ रहे हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमतों में गिरावट से आईटी कंपनियों की आय में कुछ इजाफा हो सकता है।
इसके साथ ही आईटी कंपनियां अपनी लागत कम करने के तमाम उपाय अपना रही है। भारतीय आईटी कंपनियों के लिए आने वाला समय किस करवट लेगा आइए जानते हैं :
कठिन समय
वर्ल्ड बैंक के अनुमानों की मानें, तो वर्ष 2009 में वैश्विक अर्थव्यवस्था 0.9 फीसदी की दर से विकास कर सकती है।
जबकि अमेरिका, यूरोप और जापान की अर्थव्यवस्था क्रमश: 0.5 फीसदी, 0.6 फीसदी और 0.1 फीसदी की दर से विकास करेगी। इससे स्पष्ट पता चलता है कि आने वाला समय भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अच्छा नहीं रहेगा।
ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय आईटी कंपनियों का ज्यादातर कारोबार इन्हीं देशों के साथ होता है। आंकड़ों की बात करें, करीब 85-90 फीसदी कारोबार के लिए आईटी कंपनियां इन्हीं क्षेत्रों पर निर्भर हैं।
फॉरेस्टर रिसर्च के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर आईटी खरीदारी वर्ष 2009 के दौरान 3 फीसदी की दर से विकास कर सकती है, जबकि वर्ष 2006 के दौरान यह 8 फीसदी की दर से विकास कर रहा था। सेंट्रल और वेस्टर्न यूरोपीय जोन और अमेरिका का कहना है कि इसकी विकास दर क्रमश: 1 फीसदी और 2 फीसदी रहेगी, जबकि वर्ष 2006 के दौरान यह 7 फीसदी थी।
ग्राहकों का मुद्दा
मंदी की वजह से लगभग सभी कंपनियां लागत में कटौती करने के उपाय कर रही है। यही नहीं, अधिग्रहण और नए सौदों को भी टालने में जुटी है। इससे देश की चार बड़ी आईटी कंपनियां, जिनके कारोबार का करीब 90 फीसदी हिस्सा मौजूदा ग्राहकों से आता है, उस पर असर पड़ सकता है।
इन्फोसिस टेक्नोलॉजिज के सीएफओ वी. बालाकृष्णन का कहना है कि हमारे ग्राहक अपने खर्चों में कटौती कर रहे हैं। यही नहीं, जारी किए गए बजट को भी कंपनियां खर्च करने में हिचक रही हैं। इससे नए ऑर्डर मिलने में परेशानी आ रही है। दरअसल, कंपनियां नए ऑर्डर के लिए अभी इंतजार करने के मूड में नजर आ रही हैं।
देश की चार बड़ी आईटी कंपनियों को पुराने ग्राहकों से ऑर्डर में तिमाही-दर-तिमाही करीब 200 आधार अंकों की गिरावट आई है। इसकी वजह से वित्त वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही में कंपनियों के राजस्व में कमी आई है।
विश्लेषकों का कहना है कि कंपनियों की ओर से जरूरी जगहों पर आईटी खर्चों में कटौती नहीं की जा रही है। दरअसल, ज्यादातर कंपनियां नई परियोजनाओं या फिर नए सॉफ्टवेयर आदि लेने से परहेज कर रही हैं। ऐसे में आईटी कंपनियों को बहुत ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है।
ऑर्डर और कीमतों पर दबाव
नए ग्राहकों को जोड़ने में कंपनियों को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। आंकड़ों पर नजर डालें, तो साल-दर-साल नए ग्राहकों की संख्या में करीब 10-37 फीसदी की गिरावट आई है। यही वजह है कि वर्ष 2008 की तरह आईटी कंपनियों को इस बार फायदा होता नहीं दिख रहा है।
नए ऑर्डर की बात की जाए, तो चालू वित्त की तीसरी तिमाही में यह 2-3 फीसदी पर लगभग स्थिर रहा, जिसमें आगे और दबाव देखा जा सकता है।
सेंचुरियम ब्रोकिंग के विश्लेषक नितिन पद्मानभन का कहना है कि इन्फोसिस का ऑर्डर वित्त वर्ष 2008 में जहां 27.6 फीसदी थी, वह वित्त वर्ष 2009 में घटकर 14.6 फीसदी तक पहुंच सकती है। यही नहीं, वित्त वर्ष 2010 में यह 6 फीसदी तक सिमट सकती है।
दरअसल, ग्राहक हमेशा चाहते हैं कि वे जितनी रकम खर्च कर रहे हैं, उसमें उन्हें अधिक से अधिक लाभ हो। इसके साथ ही जब कंपनियां पुराने अनुबंध को रिन्यू करती हैं, तो कीमतों में कटौती करने को कहती हैं।
दूसरी ओर संकट के इस दौर मेंर् आईटी कंपनियां नए ग्राहकों कको अपने साथ जोड़ने और अधिक से अधिक ऑर्डर हासिल करने के लिए कीमतों में कटौती कर रही हैं। इससे उनके मुनाफे पर असर पड़ना लाजिमी है।
ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी के विश्लेषक चिराग संघानी का कहना है कि अनुबंध को रिन्यू करते समय आईटी कंपनियों पर कीमतें कम करने का दबाव 2-5 फीसदी रहने का अनुमान है। ऐसे में कीमतों में कमी का असर वित्त वर्ष 2009 और 2010 की तिमाही परिमाणों में देखा जा सकता है।
लागत कटौती के उपाय
पिछली दो तिमाहियों की बात करें, तो तय मूल्य अनुबंध (एफपीपी) में विप्रो का हिस्सा जहां 4.4 फीसदी है, वहीं टीसीएस और इन्फोसिस की भागीदारी करीब 1 फीसदी है।
ग्राहक और आईटी कंपनियां, दोनों तय मूल्य वाले अनुंबध पर जोर दे रही हैं। इससे कंपनियों का लागत पर नियंत्रण रहता है और उन्हें पता रहता है कि आईटी मद में कितना खर्च करना पड़ेगा। वहीं आईटी कंपनियों को भी पता चलता है कि उन्हें इससे कितनी आय प्राप्त होगी।
हालांकि तय मूल्य अनुंबध काम की साइट के बजाय अगर ऑफशोर के लिए हो तो आईटी कंपनियों को ज्यादा फायदा होता है, क्योंकि साइट पर काम करने के बजाय भारत में उस काम करने पर कंपनियों की लागत करीब एक-तिहाई कम हो जाती है। यही वजह है कि आईटी कंपनियां ऑफशोर पर जोर दे रही हैं, वहीं ग्राहक भी कम खर्च की वजह से इसे पसंद कर रहे हैं।
ऑफशोर से प्राप्त आय की बात करें, तो तीसरी तिमाही में कंपनियों की आय में करीब 2-3 फीसदी का इजाफा हुआ है। वर्ष 2008 में जब रुपये में मजबूती आ रही थी, तो आईटी कंपनियों पर दबाव बढ़ रहा था और वे लागत में कटौती कर रही थी। हालांकि अब स्थिति में थोड़ा सुधार हो रहा है।
तीसरी तिमाही में एसजीऐंडए खर्च की बात करें, तो इन्फोसिस और टीसीएस में 160 आधार अंकों की गिरावट (आय की तुलना में) दर्ज की गई। हालांकि एचसीएल के मामले में इसमें मामूली बढ़ोतरी देखी गई। इसके साथ ही आईटी कंपनियों ने नियुक्तियों के मामले में भी उदारता बरतनी छोड़ दी है।
इससे भी लागत कम हुआ है। विप्रो टेक्नोलॉजिज के सीएफओ मनीष दुगर का कहना है कि कंपनी की ओर से लागत कम करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसके तहत ऑफशोर के काम को बढ़ावा दिया जा रहा है, उत्पादकता बढ़ाने पर जोर है, जबकि यात्रा व्यय समेत अन्य खर्चों में कटौती की जा रही है।
कब तक रहेगा यह दौर?
पिछले 13 महीनों में अमेरिका में करीब 36 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं। अमेरिका में बेरोजगारी दर 8.1 फीसदी पर पहुंच गया है, जो पिछल 25 सालों में सर्वाधिक है। यही वजह है कि अमेरिकी सरकार को नौकरियां बचाने की खातिर कठोर कदम उठाने पड़ रहे हैं।
इसमें आउटसोर्सिंग पर लगाम लगाना भी शामिल है, जिसका असर भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ रहा है।
इंडिया इन्फोलाइन के विश्लेषक का कहना है कि करों में छूट को सीमित करने और एच1वीजा पर पाबंदी से भारतीय आईटी कंपनियों के राजस्व पर असर पड़ने की आशंका है, क्योंकि देश की चार बड़ी आईटी कंपनियों की आय का करीब 50-60 फीसदी हिस्सा अमेरिका से ही प्राप्त होता है।
बाजाकृष्णन का कहना है कि आउटसोर्सिंग की वजह से अमेरिका में भी नौकरियों के अवसर बढ़ते हैं। हालांकि इसका ज्यादा फायदा भारतीय आईटी कंपनियों को होता है। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई की अमेरिकी सरकार की आउटसोर्सिंग पर पाबंदी जैसा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा।
कुछ राहत भी
डॉलर के मुकबाले रुपये की कीमतों में आ रही गिरावट से आईटी कंपनियों को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। पिछली दो तिमाहियों में रुपये की कीमतों में करीब 11 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। हालांकि उन कंपनियों पर अब भी दबाव बना हुआ, जिनकी आय डॉलर मद में नहीं होती है।
दूसरी और तीसरी तिमाही में टीसीएस का फॉरेक्स लॉस मुनाफे का 18 से 21 फीसदी के बीच रहा। हालांकि वित्त वर्ष 2009 की चौथी तिमाही में कंपनी का फॉरेक्स घाटा कुछ कम होगा, क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमतों में तेजी गिरावट देखी जा रही है।
सफर नहीं आसान
विश्लेषकों का कहना है कि आने वाली कुछ तिमाहियों में कंपनियों पर दबाव बना रह सकता है। दरअसल, बीएफएसआई, विनिर्माण और दूरसंचार क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आईटी कंपनियों पर भी असर पड़ने के आसार हैं।
आईटी कंपनियों की आय का करीब 25-40 फीसदी हिस्सा बीएफएसआई से ही आता है। हालांकि फार्मा, मीडिया और रिटेल सेक्टर का प्रदर्शन तीसरी तिमाही में अच्छा रहा। बीपीओ में भी आईटी कंपनियों को अच्छे अवसर मिल सकते हैं। कुल आईटी बाजार में से इसका हिस्सा 2.5 से 4 फीसदी के बीच है।
पश्चिम एशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे नए बाजारों में भी आईटी कंपनियों को बेहतर मौके मिल सकते हैं। कई आईटी कंपनियों के पास अच्छी-खासी नकदी है, जिसके जरिए वे अधिग्रहण की संभावनाओं को भी तलाश रही हैं। सबसे अच्छी बात यह कि भारतीय आईटी कंपनियां सस्ती दरों पर सेवाएं मुहैया कराती हैं, ऐसे में उन्हें नया अवसर आसानी से मिल सकता है।
कुल मिलाकार कहें, तो नए ऑर्डर में कमी और मुनाफे पर दबाव का ज्यादा असर मध्यम और छोटी कंपनियों पर पड़ सकता है। बड़ी आईटी कंपनियों को इससे ज्यादा नुकसान की आशंका नहीं है। हालांकि इन कंपनियों को शेयर बाजार की गिरावट भले ही मायूस कर सकती है।
(साथ में राम प्रसाद साहू)