रोहन (काल्पनिक नाम) ने 30 लाख रुपये का Home Loan 30 साल के लिए लिया और तीन साल तक हर महीने EMI भरी। जेब से करीब 8 लाख रुपये निकल गए। लेकिन जब बैंक का स्टेटमेंट देखा तो पता चला कि इतने लंबे वक्त और इतनी बड़ी रकम चुकाने के बाद भी लोन घटा सिर्फ 82 हजार रुपये! यह झटका किसी को भी हैरान कर सकता है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि सालों तक EMI चुकाने के बावजूद कर्ज लगभग जस का तस खड़ा रहता है? ये सवाल अक्सर लोगों को परेशान करता है। तो आइए जानते हैं।
मार्केट और इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट अजीत गोस्वामी कहते हैं कि EMI की रकम हर महीने बराबर होती है, लेकिन उसका हिसाब बदलता रहता है। शुरुआत में आपकी किस्त का ज्यादातर पैसा ब्याज चुकाने में चला जाता है और प्रिंसिपल (असल लोन) बहुत कम घटता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लोन की शुरुआत में आपका बकाया सबसे ज्यादा होता है और उसी पर ब्याज भी ज्यादा लगता है। इसलिए पहले कुछ सालों तक EMI देने के बाद भी लोन बहुत धीमी रफ्तार से कम होता है।
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इसे समझने के लिए 30 लाख रुपये के लोन का मामला देख सकते हैं। अगर यह लोन 30 साल के लिए लिया गया हो और हर महीने करीब ₹22,013 EMI तय की गई हो, तो तीन साल यानी 36 महीने बाद उधारकर्ता लगभग 7.9 लाख रुपये चुका चुका होगा। लेकिन इस अवधि में लोन का प्रिंसिपल केवल करीब 82 हजार रुपये ही घटता है। बाकी पूरा पैसा ब्याज में चला जाता है।
इसी तरह, अगर 50 लाख का लोन 8.5% वार्षिक ब्याज दर पर 20 साल के लिए लिया जाए तो EMI करीब 43,391 रुपये बनती है। पहले महीने में इस EMI का लगभग 35,400 रुपये ब्याज में चला जाएगा और केवल करीब 8,000 रुपये से ही प्रिंसिपल घटेगा। लेकिन 10वें साल तक आते-आते तस्वीर बदलने लगती है। उस समय EMI का ब्याज हिस्सा कम होकर करीब 24,800 रुपये रह जाता है और प्रिंसिपल घटाने वाला हिस्सा लगभग 18,600 रुपये तक बढ़ जाता है। यानी शुरुआत में कर्ज बहुत धीरे घटता है और समय बीतने के साथ गति पकड़ता है।
अजीत गोस्वामी के अनुसार, लोन लेने से पहले बड़ी डाउन पेमेंट करना सबसे अच्छा होता है। जितना बड़ा डाउन पेमेंट होगा, लोन की मूल राशि उतनी ही कम होगी और समय के साथ आपको कम ब्याज देना पड़ेगा। हर साल अपने बजट में लोन चुकाने के लिए पैसे अलग रखें। अपने बोनस या बचत का एक हिस्सा हर साल लोन प्रीपेमेंट के लिए तय करें और इसे एक जरूरी फाइनेंशियल टारगेट मानें। लेकिन लोन जल्दी चुकाने से पहले 6–12 महीने का खर्च (EMI सहित) किसी आसानी से निकाले जाने वाले खाते में रखना जरूरी है। इससे अगर अचानक कोई आपात स्थिति आ जाए तो आपको महंगे लोन या क्रेडिट कार्ड का सहारा नहीं लेना पड़ेगा।
वे आगे कहते हैं, हर साल बैंक से नया शेड्यूल लें ताकि पता चले कि आपने कितना लोन कम किया, कितने महीने बचाए और कुल ब्याज कितना घटा। इससे आपकी प्रगति दिखेगी और आप मोटिवेट रहेंगे। लोन चुकाना अच्छा है, लेकिन सारी बचत सिर्फ लोन में मत लगाएं। अपने अतिरिक्त पैसे या बोनस का आधा हिस्सा लोन चुकाने में लगाएं और बाकी निवेश, रिटायरमेंट या बच्चों की पढ़ाई में करें। इससे आप कर्ज कम करते हुए संपत्ति भी बना पाएंगे।
कई बार लोग लोन को उसकी पूरी अवधि तक खींचने की सोच लेते हैं, जबकि यह अधिकतम समय होता है, न कि अनिवार्य। बोनस या एक्स्ट्रा पैसे खर्चों में उड़ाने के बजाय उन्हें प्रीपेमेंट में लगाना चाहिए। इसी तरह, कम ब्याज वाले निवेश को प्राथमिकता देने से भी नुकसान हो सकता है क्योंकि लोन का ब्याज अक्सर इनसे ज्यादा होता है। कई लोग बैंक से ब्याज दर कम कराने की कोशिश भी नहीं करते, जबकि थोड़ी सी बातचीत से 0.25% या 0.5% तक रेट घट सकता है। और सबसे बड़ी गलती होती है टॉप-अप लोन लेना, जिससे फिर से ब्याज का बोझ बढ़ जाता है।
अजीत गोस्वामी का कहना है कि Home Loan लेने से पहले ही बड़ा डाउन पेमेंट करना सबसे अच्छा कदम है। इससे प्रिंसिपल छोटा हो जाता है और ब्याज अपने आप कम हो जाता है। इसके अलावा हर साल बजट बनाते समय प्रीपेमेंट को एक जरूरी लक्ष्य मानें। लेकिन इसके साथ-साथ एक इमरजेंसी फंड भी जरूर बनाएं ताकि किसी आपात स्थिति में आपको महंगे पर्सनल लोन या क्रेडिट कार्ड का सहारा न लेना पड़े।
वे कहते हैं, होम लोन को केवल EMI भरने की जिम्मेदारी न मानें, बल्कि इसे अपने जीवन का सबसे बड़ा वित्तीय बोझ समझें। हर अतिरिक्त रुपये का इस्तेमाल प्रिंसिपल घटाने में करें। जितना जल्दी आप लोन से मुक्त होंगे, उतना ही ज्यादा पैसा और मानसिक सुकून आपके पास रहेगा।