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Silicon Valley Bank Crisis: अमेरिका में सिलिकन बैंक हुआ धराशायी, देसी बैंक व वित्तीय क्षेत्रों पर नहीं पड़ेगा असर

भारतीय बैंकों का अमेरिकी ऋणदाता के यहां न सिर्फ काफी कम निवेश है बल्कि वित्तीय क्षेत्र भी काफी मजबूत है

Last Updated- March 12, 2023 | 11:32 PM IST
SVB Crisis: Startup seeks government's help to bring back money
Photo: BS

अमेरिकी सिलिकन वैली बैंक के हालिया घटनाक्रम और नियामकों की तरफ से उसकी परिसंपत्तियों की जब्ती भले ही वैश्विक स्तर पर जोखिम की लहर पैदा की हो (खास तौर से स्टार्टअप के लिए), लेकिन भारतीय बैंकिंग क्षेत्र पर शायद ही इसका बुरा असर पड़ सकता है। ऐसा विश्लेषकों का मानना है।

स्टार्टअप और तकनीकी कंपनियों को वित्त मुहैया कराने में बड़ी भूमिका निभाने वाले इस बैंक ने फेडरल रिजर्व के चार दशक के आक्रामक मौद्रिक नीति चक्र के बाद अमेरिकी बॉन्ड में निवेश पर भारी नुकसान दर्ज किया और इस तरह से दबाव में आ गया।

भारत की बात करें तो यहां के बैंकों का अमेरिकी ऋणदाता के यहां न सिर्फ काफी कम निवेश है बल्कि फंसे कर्ज संबंधी तनाव के बाद अब वित्तीय क्षेत्र भी काफी मजबूत स्थिति में है। बैंकरों ने ये बातें कही।

भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन दिनेश खारा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, मुझे नहीं लगता कि SVB में हमारा कोई निवेश है। यह बैंक भी काफी छोटा है। हमारा निवेश सिर्फ बड़े बैंकों में है, न कि छोटे बैंकों में।

दिसंबर 2022 की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में RBI ने कहा था कि क्रेडिट जोखिम के लिए दबाव की परख से पता चला कि देसी बैंक भारी दबाव के परिदृश्य में भी न्यूनतम पूंजी की जरूरतों का अनुपालन करने में सक्षम होंगे।

RBI ने कहा, सितंबर 2023 में सिस्टम के स्तर पर पूंजी व जोखिम भारांकित परिसंपत्ति अनुपात (सीआरएआर) दबाव के विभिन्न परिदृश्य में क्रमश: 14.9 फीसदी, 14 फीसदी और 13.1 फीसदी रहने का अनुमान है। अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों‍ के लिए सीआरएआर की न्यूनतम नियामकीय अनिवार्यता 9 फीसदी है। अगर काउंटरसाइक्लिकल बफर को जोड़ दें तो यह 11.50 फीसदी बैठता है।

इसके अतिरिक्त बैंकों ने परिसंपत्ति गुणवत्ता ठीक करने की कोशिश की है और सकल एनपीए सितंबर 2022 में सात साल के निचले स्तर पांच फीसदी पर आ गया। उनके लाभ में सुधार हुआ क्योंकि उधारी की दरें आरबीआई की दर बढ़ोतरी के हिसाब से चढ़ी है।

बैंक व बॉन्ड

बॉन्ड में निवेश पर भारी नुकसान ने सिलिकन वैली बैंक की परेशानी में उत्प्रेरक का काम किया है, लेकिन भारतीय बैंकिंग क्षेत्र इस मोर्चे पर अभी ज्यादा सुदृढ़ है जबकि RBI लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहा है। RBI ने मई 2022 से रीपो दरों में 250 आधार अंकों का इजाफा किया है।

भारतीय बैंकों का सरकारी बॉन्डों में भारी निवेश है क्योंकि लेनदारों को अपनी जमाओं का एक निश्चित हिस्सा तरल संपत्तियों मसलन सॉवरिन डेट में लगाना होता है। मौजूदा नियामकीय अनिवार्यताओं के तहत सांविधिक तरलता अनुपात कुल मांग व समयबद्ध‍ देयताओं का 18 फीसदी है।

देसी सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल पिछले साल के मुकाबले बढ़ा है क्योंकि केंद्रीय बैंक ने नीतियों में सख्ती बरती है लेकिन 10 साल का प्रतिफल RBI की नीतिगत बढ़ोतरी के मुकाबले कम बढ़ा है। जून 2022 में तीन साल के उच्चस्तर 7.62 फीसदी पर पहुंचने के बाद 10 साल के बॉन्ड का प्रतिफल काफी नीचे आया है। शुक्रवार को 10 साल के बॉन्ड का प्रतिफल 7.43 फीसदी पर बंद हुआ। बॉन्ड की कीमतें व प्रतिफल एक दूसरे के विपरीत दिशा में चलते हैं।

लंबी अवधि के निवेशकों मसलन बीमा कंपनियों की तरफ से मजबूत मांग ने लंबी अवधि के बॉन्ड प्रतिफल को ऊपर रखा है। वास्तव में अल्पावधि के लिहाज से ट्रेडरों को सिलिकन वैली बैंक के घटनाक्रम से देसी बॉन्ड को फायदा मिलता दिख रहा है क्योंकि जोखिम पैदा होने के बाद अमेरिकी बॉन्ड जैसे सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर झुकाव बढ़ा है, जिससे उसके प्रतिफल में काफी गिरावट आई है।

अमेरिकी बॉन्ड के प्रतिफल में गिरावट मोटे तौर पर उभरते बाजारों में उच्च प्रतिफल वाले फिक्स्ड इनकम वाली परिसंपत्तियों की ओर अपील में सुधार लाता है।

पीएनबी गिल्ट्स के एमडी व सीईओ विकास गोयल ने कहा, यह दूसरी लीमन घटना नहीं है, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर जो हुआ है वह निश्चित तौर पर इक्विटी व बॉन्ड से निकलकर गुणवत्ता वाली परिसंपत्तियों की ओर ले जा रहा है। देश में RBI की तरफ से फॉरवर्ड गाइडेंस के अभाव में बाजार आंकड़ों के अन्य स्रोत खास तौर से अमेरिका के घटनाक्रम पर नजर रख रहा है।

First Published - March 12, 2023 | 11:32 PM IST

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