देश में बैंकों के खुदरा ऋण में तेज गिरावट आई है। वित्त वर्ष 2025 में बैंकों ने जो खुदरा कर्ज दिया, वह वित्त वर्ष 2024 के मुकाबले 11.6 फीसदी ही अधिक था। इससे पहले 2023-24 में कर्ज 2022-23 के मुकाबले 27.6 फीसदी बढ़ा था। इसकी वजह नियामकीय चिंताएं मानी जा रही हैं, जिनके कारण बैंकों ने कुछ रेहन रखे बगैर कर्ज देना कम कर दिया। साथ ही पहले के सालों में तेज ऋण वृद्धि के कारण भी रफ्तार पर असर पड़ा है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि बैंकों के ऋण की कुल वृद्धि दर वित्त वर्ष 2025 में गिरकर 11 फीसदी रह गई, जो वित्त वर्ष 2024 में 20.11 फीसदी थी। वित्त वर्ष 2025 में बैंकों ने साल भर पहले के मुकाबले 18.11 लाख करोड़ रुपये अधिक कर्ज दिया, जबकि वित्त वर्ष 2024 में साल भर पहले के मुकाबले 27.56 लाख करोड़ रुपये ज्यादा कर्ज दिया गया था। इन आंकड़ों में एचडीएफसी के एचडीएफसी बैंक में विलय का असर भी शामिल है।
वित्त वर्ष 2025 में कृषि एवं संबंधित गतिविधियों का ऋण 10.4 फीसदी बढ़ा है, जो वित्त वर्ष 2024 के 20 फीसदी से कम है। उद्योग को ऋण वित्त वर्ष 2025 में 7.8 फीसदी बढ़ा है, जो वित्त वर्ष 2024 में 8.5 फीसदी बढ़ा था। वहीं वित्त वर्ष 2025 में सेवा क्षेत्र का ऋण 12.4 फीसदी बढ़ा है, जो एक साल पहले की 23.5 फीसदी वृद्धि से कम है।
केयर रेटिंग्स में सीनियर डायरेक्टर संजय अग्रवाल ने कहा कि यह कमी वित्त वर्ष 2024 में बढ़ोतरी बहुत अधिक होने के कारण लग रही है क्योंकि एचडीएफसी का विलय एचडीएफसी बैंक में होने के बाद ऋण की मांग बढ़ गई थी।
रिजर्व बैंक ने कई बार खुदरा कर्ज में तेज वृद्धि और असुरक्षित ऋण में चूक बढ़ने पर चिंता जताई। बैंकिंग नियामक ने नवंबर 2023 में असुरक्षित ऋण और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को दिए जाने वाले कर्ज पर जोखिम भार बढ़ा दिया था।
रिजर्व बैंक ने ज्यादा ऋण जमा अनुपात वाले बैंकों को अपने कारोबारी मॉडल पर पुनर्विचार करने को भी कहा था। इन कदमों का असर वित्त वर्ष 2025 में धीरे धीरे नजर आया और ऋण में गिरावट आने लगी। बैंकरों ने कहा कि नियमन के दायरे में आने वाली इकाइयां ऋण देने में सावधानी बरतने लगीं और उन्होंने अंडरराइटिंग मानकों को सख्त कर दिया।