भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा है कि सरकार के साथ पंजीकृत एनबीएफसी (जी-एनबीएफसी) ने जो सबसे बड़े 50 ऋण दिए हैं, उनकी रकम करीब 7.8 लाख करोड़ रुपये है। यह रकम एनबीएफसी से कंपनियों को मिले कुल कर्ज की 40 प्रतिशत है। इससे पता चलता है कि चुनिंदा कंपनियों को बहुत ज्यादा कर्ज दे दिया गया है, जो जोखिम की बात है। देश में बैंकों के रुख और प्रगति-2022-23 पर जारी केंद्रीय बैंक की रिपोर्ट में यह कहा गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उल्लेखनीय यह है कि सभी 50 बड़े कर्ज बिजली क्षेत्र को दिए गए हैं और यह क्षेत्र तमाम आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि जी-एनबीएफसी के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) ढांचे का विस्तार जी-एनबीएफसी तक किया गया है। यह विस्तार 1 अक्टूबर 2024 से प्रभाव में आएगा और इस तिथि या उसके बाद की अवधि की ऑडिट इसके मुताबिक होगी। इन इकाइयों की निगरानी बढ़ाने का मकसद नियामक वातावरण को ज्यादा प्रभावी बनाना और जरूरत पड़ने पर त्वरित सुधारात्मक कदम उठाने की सुविधा प्रदान करना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में एनबीएफसी और बैंकों के बीच संबंध बढ़ा है, क्योंकि एनबीएफसी ने बैंकों से उधारी बढ़ा दी है। वित्तीय व्यवस्था में शुद्ध उधारी लेने वालों में बैंकों की सबसे ज्यादा उधारी एनबीएफसी पर है। इससे तमाम बैंकों के साथ उधारी के संबंध विकसित हुए हैं।
एनबीएफसी द्वारा डिबेंचर और वाणिज्यिक पत्रों की खरीद से बैंकों के साथ यह संबंध और बढ़ गया है, जिससे एक केंद्रित लिंकेज बनता है। यह जोखिम की संभावना पैदा करता है और इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एनबीएफसी को कर्ज देने के मामले में प्राथमिक कर्जदाता बने हुए हैं, हालांकि उनकी बाजार हिस्सेदारी कम हुई है और निजी क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी उसी अनुपात बढ़ी है।
बैंकों ने जहां तेज पूंजीकरण बरकरार रखा है, वहीं वित्तीय बाजार की प्रकृति एनबीएफसी को दिए गए कर्ज के साथ किसी खास एनबीएफसी के कई बैंकों के साथ लेन देन लगातार आकलन को अनिवार्य बना रहा है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बैंकों में पर्याप्त पूंजी होने के बावजूद अति सक्रिय रुख अपनाने की जरूरत है, जिससे बैंकों व एनबीएफसी के बीच लेन देन ज्यादा होने पर गौर किया जा सके क्योंकि एनबीएफसी व्यवस्थागत जोखिम पैदा कर सकते हैं।
इसके साथ ही एनबीएफसी को भी धन जुटाने के अपने स्रोतों के विविधीकरण करने की जरूरत है, जिससे कि बैंकों से धन लेने की निर्भरता कम हो सके। एनबीएफसी क्षेत्र के असुरक्षित कर्ज में 28.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इसने सुरक्षित कर्ज में 11.5 प्रतिशत वृद्धि को पीछे छोड़ दिया है।
इसके कारण एनबीएफसी के कुल कर्ज में सुरक्षित ऋण की हिस्सेदारी मार्च 2022 के अंत के 72.4 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2023 के अंत में 69.5 प्रतिशत हो गई है। वहीं इस अवधि में असुरक्षित ऋण 27.6 प्रतिशत से बढ़कर 30.5 प्रतिशत हो गया है।