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बैंकिंग सिस्टम में धोखाधड़ी कम नहीं, डिजिटल सुरक्षा को मजबूत करना जरूरी: आरबीआई डिप्टी गवर्नर

वित्त वर्ष 2025 में बैंकों द्वारा रिपोर्ट की गई धोखाधड़़ी  की संख्या घटकर 23,953 रह गई है, जो इसके पहले वित्त वर्ष में 36,060 थी

Last Updated- November 07, 2025 | 10:26 PM IST
T Rabi Sankar, deputy governor, Reserve Bank of India (RBI)
भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर

भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर ने शुक्रवार को कहा कि बैंकों द्वारा पता लगाई गई धोखाधड़ी की संख्या में इस साल की शुरुआत से लगातार गिरावट आ रही थी, मगर जुलाई में यह फिर रही है।

एसबीआई बैंकिंग ऐंड इकनॉमिक्स कॉन्क्लेव में बोलते हुए रवि शंकर ने कहा, ‘यह समझना जरूरी है कि किसी भी सिस्टम में कुछ हद तक धोखाधड़ी होती है। अगर आप लेनदेन की संख्या के हिसाब से धोखाधड़ी को देखें तो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में इस साल की शुरुआत से जुलाई तक धोखाधड़ी काफी कम हुई। उसके बाद यह फिर बढ़ने लगी।’

उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि यह आंकड़ा कभी ऊपर जाता हो और फिर नीचे आता हो। लेकिन हम उम्मीद कर रहे हैं कि हम जो डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं और इसमें जो सफलता देख रहे हैं,  इस स्तर पर सफलता 90 प्रतिशत से ज्यादा है। हम धोखाखड़ी रोकने में सफल होंगे। ’

वित्त वर्ष 2025 में बैंकों द्वारा रिपोर्ट की गई धोखाधड़़ी  की संख्या घटकर 23,953 रह गई है, जो इसके पहले वित्त वर्ष में 36,060 थी।  हालांकि धोखाधड़ी में शामिल राशि इस दौरान बढ़कर 36,014 करोड़ रुपये हो गई, जो इसके पहले वित्त वर्ष में 12,230 करोड़ रुपये थी। 2023-24 की तुलना में 2024-25 के दौरान रिपोर्ट  की गई कुल धोखाधड़ी में शामिल राशि में वृद्धि मुख्य रूप से पिछले वित्त वर्षों के दौरान रिपोर्ट किए गए 18,674 करोड़ रुपये के 122 मामलों में धोखाधड़ी वर्गीकरण को हटाने और 27 मार्च, 2023 के उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद पुन: जांच और अनुपालन  सुनिश्चित करने के बाद चालू वित्त वर्ष के दौरान फिर से रिपोर्ट करने के कारण थी।

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डिप्टी गवर्नर ने कहा कि यह तर्क दिया  जा सकता है कि फिनटेक की तुलना में बैंक अंतर्निहित नुकसान में होते हैं, क्योंकि वे भारी भरकम नियामकीय ढांचे के तहत काम करते हैं और उनके ऊपर अपने ग्राहक को जानें (केवाईसी), धनशोधन निरोध (एएमएल) व पर्ववेक्षण संबंधी अन्य जांच का बोझ होता है और इसकी वजह से परिचालन की लागत बढ़ जाती है।

उन्होंने कहा कि सही प्रतिस्पर्धी बाजार में बैंक इन अतिरिक्त लागतों को फिनटेक से वसूलने की कोशिश कर सकते थे, लेकिन ऐसा करने से प्रौद्योगिकी अपनाने की गति धीमी हो सकती है। उन्होंने कहा विनियामक नुकसान से परे तथ्य यह है कि बैंक यूपीआई की परिवर्तनकारी क्षमता को पहचानने में विफल रहे, जबकि फिनटेक कंपनियों ने इसे तेजी से अपना लिया।  ग्राहक हासिल करने की कीमत तेजी से पहचानने और डेटा के आधार पर राय बनाने वाली फिनटेक के विपरीत बैंक अपने रूढ़िवादी तरीके और विरासत पर टिके रहे।

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पारंपरिक बैंकिंग की प्रकृति में निहित यह सीमा उन्हें डिजिटल प्लेटफॉर्म और डेटा द्वारा प्रस्तुत अवसरों का पूरी तरह से लाभ उठाने से रोकती थी।  निजी डिजिटल मुद्राओं से बैंकों के अस्तित्व के लिए खतरा नजर आता है लेकिन इस पर अभी पर्याप्त चर्चा नहीं हो रही है।

First Published - November 7, 2025 | 10:23 PM IST

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