भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि वर्ष 2024 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति तय नहीं की जा रही है। दास ने एक बार फिर दोहराया कि आरबीआई का ध्यान महंगाई नियंत्रित करने पर रहता है। दास ने बिजनेस स्टैंडर्ड, बीएफएसआई समिट में कहा, ‘मेरे लिए यह कहना मुनासिब नहीं है कि अगली मौद्रिक नीति में नीतिगत दरों के संबंध में क्या निर्णय लिए जाएंगे मगर मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि 2024 के चुनाव से उनका कोई लेना-देना नहीं होगा। मौद्रिक नीति का मुख्य मकसद महंगाई नियंत्रण में रखना है।’
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि सभी चाहते हैं कि महंगाई नियंत्रण में रहे। उन्होंने कहा, सरकार भी चाहती है कि महंगाई किसी के लिए परेशानी का सबब नहीं बने। मेरे कहने का आशय यह है कि हमारा मुख्य लक्ष्य महंगाई नियंत्रित करना और आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ावा देना है। महंगाई को लेकर अनुमान के बारे में दास ने कहा कि आरबीआई अचानक पैदा होने वाले हालात के बीच नियमित तौर पर महंगाई के अनुमान को समायोजित करता रहता है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि मौद्रिक नीति के लिहाज से आंकड़ों के बजाय महंगाई की दिशा और रफ्तार का पता लगाना है।
उन्होंने कहा, ‘मौद्रिक नीति से संबंधित निर्णय महंगाई की दिशा को देखते हुए लिए जाते हैं। हम यह देखने का प्रयास करते हैं कि महंगाई बढ़ रही है या इसमें कमी आ रही है।’
दिसंबर में मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने रीपो रेट 35 आधार अंक बढ़ा दी थी। इस तरह, वर्ष 2022 में अब तक ब्याज दरों में 225 अंक का इजाफा हो गया है। नवंबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई 5.88 प्रतिशत थी और 2022 में पहली बार यह आरबीआई के 2-6 प्रतिशत के सहज दायरे में थी। मगर लगातार 38 महीनों से सीपीआई आधारित महंगाई आरबीआई के 4 प्रतिशत की सहज सीमा से अधिक थी।
दास ने भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती में भरोसा जताया। उन्होंने संकेत दिए कि अर्थव्यवस्था का हाल बताने वाले सभी संकेतक सकारात्मक हैं। हालांकि उन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्त चाल का भारत से होने वाले निर्यात पर संभावित असर पर चिंता जताई। जुलाई-सितंबर के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रही थी और पिछली तिमाही की 13.5 प्रतिशत से कम हो गई थी। इस महीने के शुरू में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए विकास दर का अनुमान 7 प्रतिशत से घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया था। दास ने यह माना कि वैश्विक हालात अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं मगर आरबीआई मौद्रिक नीति घरेलू महंगाई एवं विकास दर को ध्यान में रख कर तय करती है।
दास ने कहा, ‘अमेरिका का फेडरल रिजर्व जो भी निर्णय लेता है उनका पूरी दुनिया पर असर होता है। दुनिया में व्यापार भी काफी हद तक डॉलर में होता है। लिहाजा फेडरल रिजर्व जो भी निर्णय लेता है वह सभी के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।’ उन्होंने कहा, ‘अमेरिकी फेडरल रिजर्व के निर्णय का बारीकी से अध्ययन होता है और मौद्रिक नीति तय करने में यह भी एक कारक होता है। ऐसा नहीं है कि फेडरल रिजर्व जो करेगा हम भी तत्काल वही करना शुरू कर देंगे। पहले सभी अमेरिका का पूरी तरह अनुसरण करते थे मगर अब ऐसा आंख मूंद कर नहीं होता है। हम सबसे पहले आंतरिक परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं।’
दास ने कहा कि पिछले तीन से चार वर्षों के दौरान आरबीआई ने बैंकिंग क्षेत्र के हितों की रक्षा के लिए अपनी निगरानी काफी बढ़ा दी है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में बैंकों के धराशायी होने के मामले दिख सकते हैं मगर भारत में ऐसी घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं। दास ने कहा, ‘अमेरिका में बैंक धराशायी होते रहे हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ऐसे कई घटनाएं भी हो चुकी हैं। मगर भारत में बैंक डूबने की बात सरकार और आम लोग दोनों ही बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।’
दास ने कहा कि सभी लोगों को आरबीआई से काफी उम्मीदें हैं, इसलिए एक नियामक के रूप में बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करना हमारा दायित्व है।उन्होंने कई उपाय गिनाए जिनके जरिए आरबीआई ने निगरानी और बढ़ा दी है। आरबीआई गवर्नर ने कहा, अब हम बैंकों के कारोबारी प्रारूप पर विचार कर रहे हैं। उदाहरण के लिए अगर हमारी नजर में आता है कि किसी बैंक में असुरक्षित खुदरा ऋण की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है तो हम तत्काल उस बैंक को अपनी चिंता से अवगत कराते हैं मगर किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करते हैं। दास ने कहा कि कर्ज आवंटन तेजी से बढ़ाने के लिए बैंकों में जमा रकम भी तेजी से बढ़ानी होगी। हालांकि उन्होंने बैंकों में जमा रकम और कर्ज आवंटन की रफ्तार में भारी अंतर के लिए सांख्यिकीय आधार प्रभाव को जिम्मेदार ठहराया।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में मैं यह कहना चाहूंगा कि ऋण आवंटन में तेजी अर्थव्यवस्था की आंतरिक मजबूती और आर्थिक वृद्धि का परिचायक है।
उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर बैंकों ने जमा दरें बढ़ानी शुरू कर दी है और आने वाले समय में वे जरूर ही कारोबार को ध्यान में रखकर निर्णय लेंगे। बैंकों को भी जमा रकम की जरूरत होती है। अगर बैंक एसएलआर हिस्सेदारी कम करने का विकल्प चुनते हैं तो उनके पास अलग से और रकम ऋण आवंटन के लिए रकम उपलब्ध हो जाएगी।’
जी-20 समूह की अध्यक्षता भारत के पास आने पर आरबीआई गवर्नर ने कहा कि दुनिया में बहुपक्षीय व्यवस्था में विश्वास और मजबूत करने की जरूरत पहले से कई गुना बढ़ गई है। दास ने कहा कि बहुपक्षीय व्यवस्था को मजबूत बनाने में भारत की अहम भूमिका हो गई है। दास ने कहा, ‘एक समूह के रूप में बहुपक्षीय संस्थानों में विश्वास बहाल करने और उन्हें सक्षम बनाने में जी-20 की भूमिका काफी बढ़ गई है। मेरा मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में बहुपक्षीय व्यवस्था में लोगों का विश्वास कम हो गया है और ये पहले की तरह सक्षम भी नहीं रह गए हैं।’ उन्होंने कहा कि कोविड महामारी से लड़ने या अन्य वैश्विक चुनौतियों से लड़ने में एक समूह के रूप में जी-20 को एकजुट प्रयास करना होगा। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जी-20को बहुपक्षीय व्यवस्थाओं में लोगों के चरमराए भरोसे को दोबारा बहाल करना होगा।