मौजूदा समय में शेयर, इक्विटी फंडों और सोने के भाव के बारे में अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन इस बात को लेकर शायद ही किसी को संदेह है कि निकट भविष्य में ब्याज दरें निचले स्तर पर रहने वाली हैं। रीपो रेट मई से अब तक काफी कम रह गई है, जो फरवरी 2019 में 6.25 प्रतिशत के स्तर पर थी। इसके साथ कदमताल मिलाते हुए लिक्विड फंडों और अन्य लघु अवधि की निवेश योजनाओं पर भी प्रतिफल कम हो गए हैं। पिछले एक वर्ष के दौरान लिक्विड फंडों ने औसतन 4.6 प्रतिशत प्रतिफल दिए हैं।
जोखिम से पूरी तरह छिटकने वाले निवेशक हमेशा से छोटी अवधि के लिए बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट (सावधि जमा) में रकम रखते आए हैं। तकनीकी रूप से दक्ष और मौका भांपने में माहिर लोग लिक्विड और ओवरनाइट फंडों में रकम लगाया करते थे। अब इन फंडों पर प्रतिफल खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई दर से नीचे फिसलने और वास्तविक प्रतिफल नकारात्मक रहने के बाद निवेशक इक्विटी फंडों, यहां तक की सोने में निवेश, की तरफ आकर्षित हो सकते हैं। हालांकि इन परिसंपत्तियों में भारी उतार-चढ़ाव आने की आशंका है, इसलिए कम से कम निकट अवधि में इनमें निवेश नुकसानदेह साबित हो सकता है।
ऐसी सूरत में निवेशकों को परंपरागत नियत आय के विकल्प से दूर नहीं रहना चाहिए। निचले कर दायरे में जोखिम से परहेज करने वाले निवेशकों को एफडी योजनाओं में बेहतर ब्याज देने वाले विकल्प की खोज करनी चाहिए। पैसाबाजारडॉट कॉम के निदेशक साहिल अरोड़ा कहते हैं,’कम जोखिम लेने की क्षमता रखने वाले निवेशक लघु वित्त बैंक और निजी क्षेत्र के छोटे बैंकों की योजनाओं पर विचार कर सकते हैं। बड़े सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बैंकों के मुकाबले ये अधिक ब्याज की पेशकश करते हैं।’ अरोड़ा के अनुसार फिलहाल निवेशकों को एक से दो वर्ष की छोटी अवधि की एफडी योजनाओं का चयन करना चाहिए। बकौल अरोड़ा, मौजूदा निचली दरों पर लंबे समय तक निवेश के चक्कर में नहीं फंसकर निवेशक हालात सुधरने पर अधिक प्रतिफल देने वाली योजनाओं में निवेश आसानी से कर पाएंगे।
कुछ हद तक उतार-चढ़ाव झेलने और बाजार द्वारा निर्धारित किसी भी प्रतिफल के लिए तैयार रहने वाले निवेशक किसी बड़ी म्युचुअल फंड कंपनी के अल्ट्रा-शॉर्ट-टर्म बॉन्ड फंड में निवेश कर सकते हैं। ये फंड तीन से छह महीने में परिपक्व होने वाली प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। एक वर्ष तक रकम लगाने वाले लोग लो-ड्यूरेशन फंडों और मनी-मार्केट फंडों में निवेश कर सकते हैं। संभावित प्रतिफल के लिए पिछले आंकड़ों पर नजर दौड़ाने के बजाय पोर्टफोलियो के यील्ड-टू-मैच्योरिटी (वाईटीएम) पर गौर करें। अरोड़ा कहते हैं,’थोड़ा अधिक जोखिम लेने की क्षमता रखने वाले निवेशक 3 से 12 महीनों के लिए अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन फंडों में रकम लगा सकते हैं। एक से तीन वर्षों तक निवेश की योजना वाले निवेशक शॉर्ट-ड्यूरेशन बॉन्ड फंड में निवेश कर सकते हैं। अल्ट्रा-शॉर्ट और लो-ड्यूरेशन फंड अमूमन बैंक एफडी के मुकाबले अधिक प्रतिफल देते हैं।’
दीर्घ अवधि के उच्च पूंजीगत लाभ कर का लाभ लेने के लिए किसी निवेशक को डेट फंडों में कम से कम 3 वर्षों तक निवेश बनाए रखना होता है। तीन वर्षों से कम निवेश करने पर पूंजीगत लाभ छोटी अवधि में कमाई रकम मानी जाएगी और इस पर निवेशक की कर श्रेणी के अनुसार कराधान होगा। कम से कम एक वर्ष के लिए निवेश करने वालों को ही आर्बिट्राज फंडों पर दांव खेलना चाहिए। पंजीकृत निवेशक सलाहकार (आरआईए) एवं वेल्थ लैडर डायरेक्ट के संस्थापक एस श्रीधरन कहते हैं,’अमेरिका में चुनाव, भारत-चीन सीमा विवाद और कोविड-19 आदि कारणों से अगली कुछ तिमाहियों तक बाजार में उठापटक जारी रह सकती है। एक वर्ष से अधिक समय तक निवेश करने पर आर्बिट्राज फंड सुरक्षा के साथ ही बेहतर करोपरांत प्रतिफल दे सकते हैं।’
