कुछ दिनों पहले उच्च रेटिंग वाले एक सार्वजनिक उपक्रम (पीएसयू) को सरकारी बैंक से 6.10 फीसदी की दर पर 1,000 करोड़ रुपये का अल्पकालिक कर्ज मिला। था। आम तौर पर उच्च रेटिंग वाली कंपनियों को अच्छी डील मिल जाती है मगर इससे कई लोगों को आश्चर्य हुआ क्योंकि इतनी कम दर से शायद ही कोष की लागत की भरपाई हो पाएगी। अल्पकालिक दरें इतनी कम होने की वजह बैंकिंग तंत्र में तरलता अधिशेष है जो जून की शुरुआत से औसतन 3 लाख करोड़ रुपये थी और कुछ दिनों में 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई। जून में कर भुगतान के लिए कम निकासी के साथ ही सरकारी खर्च बढ़ने से बैंकिंग तंत्र में नकदी बढ़ी है।
अगले कुछ महीनों में भी तरलता अधिशेष रहने की उम्मीद है क्योंकि बैंकों की नकद आरक्षित अनुपात आवश्यकता भी चरणबद्ध तरीके से 100 आधार अंक कम की गई है। आईडीएफसी फर्स्ट बैंक में मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने कहा कि नकद आरक्षित अनुपात में कटौती से नवंबर-दिसंबर तक तरलता का स्तर 5 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ जाएगा।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा फरवरी से अभी तक रीपो दर में 100 आधार अंक की कटौती के बावजूद बैंकों में ऋण वृद्धि अभी नहीं बढ़ी है। 13 जून को समाप्त पखवाड़े में ऋण वृद्धि 9.6 फीसदी तक घट आई थी, जो एक साल पहले समान अवधि में 19.1 फीसदी थी।
बार्कलेज ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘मौद्रिक नीति में ढील के बावजूद बैंक में कर्ज मांग की वृद्धि धीमी बनी हुई है। हालांकि इसके लिए उच्च आधार पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है मगर पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में बैंक ऋण प्रवाह भी कम हो गया है। कर्ज के लिए गैर-बैंक स्रोतों की हिस्सेदारी बढ़ने से भी बैंक ऋण वृद्धि में कम आई है।’
ऋण उठाव में सुस्त वृद्धि ने बैंक अधिकारियों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। हाल ही में बैंकों के मुख्य कार्याधिकारियों के साथ एक बातचीत में वित्त मंत्रालय ने देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए ऋण वृद्धि को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया था। वित्त वर्ष 2025 में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6.5 फीसदी बढ़ा, जो कोविड-19 महामारी के बाद सबसे धीमी वृद्धि है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में 6.5 फीसदी जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया है। हालांकि भारत अभी भी सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था में से एक बना हुआ है। इसी पृष्ठभूमि में सरकार बैंकों को ऋण वृद्धि बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है। केंद्रीय बैंक ने कम समय में ब्याज दरों में तेजी से कटौती की है और ग्राहकों तक इसका लाभ पहुंचाने पर जोर दिया है। मगर सवाल यह है कि क्या बैंक बड़ी तरलता अधिशेष और ब्याज दरों में कटौती के बीच ऋण को आगे बढ़ाएंगे।
एक बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘धन की लागत अभी तक कम नहीं हुई है। बैंकों ने जमाओं का पुनर्मूल्यांकन शुरू कर दिया है लेकिन इसका प्रभाव कुछ समय बाद आएगा। शुद्ध ब्याज मार्जिन पर कम से कम चालू वित्त वर्ष में दबाव बना रह सकता है।’ फरवरी से अप्रैल के बीच रीपो दर में 50 आधार अंक की कटौती के बाद बैंकों ने बाह्य बेंचमार्क से जुड़े कर्ज की दरें उसी अनुपात में घटा दी हैं। बैंकों की लोन बुक में इस तरह के कर्ज की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है।
हाल ही में मझोले आकार के सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक ने माइक्रोफाइनैंस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति वाली एक बड़ी एनबीएफसी को आगे ऋण नहीं देने का फैसला किया क्योंकि उक्त क्षेत्र प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहा है। यह निर्णय ऋणदाता के पास फर्म को ऋण देने की गुंजाइश होने के बावजूद लिया गया। आंकड़ों से पता चलता है कि मई तक एनबीएफसी को बैंक ऋण में सालाना आधार पर 0.3 फीसदी की कमी आई है जबकि पिछले साल 16 फीसदी की वृद्धि हुई थी।
उद्योग खंड में बैंक ऋण वृद्धि पिछले साल के 9.4 फीसदी से घटकर 4.8 फीसदी रह गई जिसका मुख्य कारण बड़े उद्योगों को ऋण प्रवाह में तेज गिरावट है।
बीसीजी में पार्टनर और निदेशक दीप नारायण मुखर्जी ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘लोकप्रिय धारणा के विपरीत कम ब्याज दरें हमेशा ऋण में वृद्धि नहीं करती हैं। यदि कर्ज की मांग नरम है तो कम ब्याज दर अगले 12 से 24 महीनों में इसे बढ़ावा नहीं दे सकती है।’
इस तरह उदार ब्याज दरें, भारी तरलता अधिशेष जैसी वित्तीय स्थितियां बैंकों के लिए नई नहीं हैं। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद ब्याज दरों के साथ-साथ नकद आरक्षित अनुपात में भी तेजी से कटौती की गई थी। उस समय भी वित्त मंत्रालय जीडीपी वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए बैंक ऋण में तेजी लाने के लिए उत्सुक था।
पिछली दशक की शुरुआत में क्रेडिट वृद्धि में तेज वृद्धि के बाद फंसे ऋणों में भी वृद्धि हुई जिससे मार्च 2018 तक बैंकों की सकल गैर-निष्पादित संपत्ति कुल ऋण आवंटन का 11.6 फीसदी तक पहुंच गई थी। हालांकि बाद में इसमें सुधार हुआ। यही वजह है कि बैंक लोन बुक को बढ़ाने के लिए आक्रामक रुख नहीं दिखाना चाह रहे हैं क्योंकि ब्याज दर की चाल बदलने से कर्ज फंस सकता है।