सरकार के हस्तक्षेप और अनुकूल विनियामकीय माहौल की मदद से भारत आने वाले दशकों में सबसे तेजी से बढ़ते बीमा बाजारों में से एक के रूप में उभरने की तैयारी में है। वर्ष 2022-23 के आर्थिक समीक्षा में यह संभावना जताई गई है।
समीक्षा के अनुसार यूक्रेन के संघर्ष से खास तौर पर यूरोप में आर्थिक विकास पर दबाव पड़ रहा है, इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि उभरते हुए बाजारों में बीमा उद्योग की वृद्धि इस साल विकसित बाजारों को पीछे छोड़ देगी, जिसमें उभरता हुआ एशिया अग्रणी रहेगा।
स्विस रे की रिपोर्ट के अनुसार भारत प्रीमियम के लिहाज से दुनिया में दसवें सबसे बड़े बीमा बाजार के रूप में उभरा है और वर्ष 2021 में उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं में दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। उम्मीद है कि यह वर्ष 2032 तक जर्मनी, कनाडा, इटली और दक्षिण कोरिया से आगे दुनिया के शीर्ष छह बीमा बाजारों में से एक के रूप में उभरेगा।
दिलचस्प बात यह है कि देश में बीमे का दायरा सदी के आखिर तक 2.7 प्रतिशत के स्तर से लगातार बढ़ते हुए वर्ष 2021 में 4.2 प्रतिशत हो गया है। इसमें जीवन बीमा का दायरा 3.2 प्रतिशत है, जो उभरते बाजारों की तुलना में लगभग दोगुना और वैश्विक औसत से कुछ अधिक है।
इसके बावजूद ज्यादातर ग्राहक बचत से जुड़े जीवन बीमा उत्पाद खरीदते हैं, जिनमें सुरक्षा का अंश कम रहता है, जिससे मुख्य रूप से भरण-पोषण करने वाले व्यक्ति की अकाल मृत्यु होने की स्थिति में परिवारों को खासी आर्थिक कमी का सामना करना पड़ता है।
इसके अलावा देश में बीमा बाजार के अपेक्षाकृत तेजी से विस्तार के मद्देनजर देश में बीमा सघनता वर्ष 2001 के 11.1 डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021 में 91 डॉलर हो गया है। (जीवन बीमा के मामले में वर्ष 2021 के दौरान यह सघनता 69 डॉलर और गैर-जीवन बीमा के मामले में 22 डॉलर थी)।
जहां बीमे का दायरा सकल घरेलू उत्पाद के साथ बीमा प्रीमियम के प्रतिशत के रूप में मापा जाता है, वहीं बीमा सघनता की गणना जनसंख्या के साथ प्रीमियम के अनुपात (प्रति व्यक्ति प्रीमियम) के रूप में की जाती है।
हाल ही में अपने संबोधन में भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के चेयरमैन देवाशीष पांडा ने कहा था कि बीमा क्षेत्र को करीब पांच से सात वर्षों की अवधि में बीमे का दायरा दोगुना करने के लिए हर साल लगभग 50,000 करोड़ रुपये के पूंजी निवेश की जरूरत होगी।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि बीमा क्षेत्र अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है और इसमें पहले ही विलय और अधिग्रहण (एमऐंडए) की गतिविधि नजर आ रही है क्योंकि बीमाकर्ताओं के पास इस क्षेत्र में सह-अस्तित्व के लिए जबरदस्त अवसर और वॉल्यूम है।
इसके अलावा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह, आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ), आसान किए गए नियम और विनियम तथा बेहतर कॉरपोरेट मूल्यांकन से इस क्षेत्र में अधिग्रहण और विलय की गतिविधियों में और तेजी आने की संभावना होगी है। तेजी से परिपक्व हो रहे बीमा बाजार ने सरकार को बीमा कारोबार में अपनी हिस्सेदारी का निजीकरण करने का आकर्षक अवसर प्रदान किया है।