अदाणी समूह की कंपनियों में एलआईसी के निवेश के बारे में जताई जा रही चिंता के बीच विनिवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के सचिव तुहिन कांत पांडेय ने श्रीमी चौधरी से बातचीत में कहा कि एलआईसी विविध पोर्टफोलियो वाला एक दीर्घावधि निवेशक है। उनका मानना है कि वित्त वर्ष 2024 के लिए विनिवेश लक्ष्य व्यावहारिक है लेकिन बाजार की अनिश्चितताओं के कारण वह चुनौतीपूर्ण हो सकता है। पेश हैं मुख्य अंश:
क्या आपको लगता है कि अदाणी समूह की कंपनियों में निवेश के मद्देनजर एलआईसी के निवेशकों को चिंतित होना चाहिए? क्या इससे प्रणालीगत जोखिम पैदा हो गया है?
मैं प्रणालीगत जोखिम के बारे में कुछ नहीं कह सकता क्योंकि इन मुद्दों को नियामक देख रहे हैं। उनके (एलआईसी और बैंकों के) बड़े निवेश की सीमाएं हैं। एलआईसी और बैंकों ने स्पष्ट कर दिया है कि अदाणी समूह में उनका कोई बड़ा निवेश नहीं है। एलआईसी उन कंपनियों में निवेश करती है जो आईआरडीएआई के नियमों के तहत उपयुक्त हैं। एलआईसी का काफी निवेश सरकारी बॉन्डों में है और उसका मामूली निवेश ही शेयरों में किया जा सकता है। शेयरों में भी उसका पोर्टफोलियो विविध है। इसलिए किसी एक शेयर के अल्पकालिक उतार-चढ़ाव से एलआईसी पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। फिर भी एलआईसी और नियामकों को अपने निवेश के मूल्य में हुए बदलाव पर नजर अवश्य रखनी चाहिए।
वित्त वर्ष 2024 के लिए विनिवेश लक्ष्य 51,000 करोड़ रुपये है। क्या यह व्यावहारिक है? आप इसे हासिल करने के लिए क्या योजना बना रहे हैं?
यह व्यावहारिक लक्ष्य है लेकिन बाजार की अनिश्चितताओं के कारण इसे हासिल करना चुनौतीपूर्ण होगा। हमारा लक्ष्य 1.05 लाख करोड़ रुपये था जिसमें 65,000 करोड़ रुपये का विनिवेश और 40,000 करोड़ रुपये का लाभांश शामिल था। हमारा संशोधित अनुमान 93,000 करोड़ रुपये है जिसमें 50,000 करोड़ रुपये का विनिवेश और 43,000 करोड़ रुपये का लाभांश शामिल है। अब तक हमने कुल 68,000 करोड़ रुपये जुटा लिए हैं। वित्त वर्ष 2024 के लिए बजट अनुमान 94,000 करोड़ रुपये है। इसमें विनिवेश से 51,000 करोड़ रुपये और लाभांश से 43,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य है। हम आरंभिक सार्वजनिक निर्गम, ऑफर फॉर सेल, पुनर्खरीद और रणनीतिक निवेश के जरिये अल्पांश हिस्सेदारी की बिक्री करने जा रहे हैं। साथ ही हमारी नजर आईडीबीआई बैंक, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और बीईएमएल के निजीकरण की प्रक्रिया को पूरा करने पर भी रहेगी।
क्या सुस्त रफ्तार गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियों को सीमित नहीं करेगी?
निजीकरण में दायरा, बाजार की उपलब्धता, अल्पांश शेयरधारक और प्रक्रिया शामिल हैं। इसलिए इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है। सबकुछ समय पर शायद ही हो पाता है। हमने लोगों के बीच जागरूकता के जरिये आंतरिक प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है। हमें इन सब बातों पर ध्यान रखने की आवश्यकता है। लोगों को बताया जा रहा है कि विनिवेश से वास्तव में कारोबार को बढ़ाने और यहां तक कि लोगों की नौकरी को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।
विनिवेश एक सामूहिक प्रयास है। ऐसे में विरोध की आवाज कहां से आती है?
निजीकरण के मामले में हम जो करने की कोशिश कर रहे हैं उसमें विरोधाभास काफी स्पष्ट है। काफी काम कंपनी को ही करना होता है। इस प्रक्रिया को लेकर काफी विरोध, अनिच्छा और आशंका है। विरोध इसलिए दिखता है क्योंकि कंपनियां सरकार में बने रहना चाहती हैं। खुद कंपनियों से काफी सहयोग की आवश्यकता होती है। इस प्रकार बाहरी और आंतरिक दोनों कारक होते हैं।
आरबीआई ने एक हालिया परिपत्र में कहा है कि किसी बैंक में 5 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी हासिल करने की चाहत रखने वालों को पहले मंजूरी लेनी होगी। क्या इससे आईडीबीआई बैंक का विनिवेश प्रभावित होगा?
ये सूचीबद्ध कंपनियां हैं। इसलिए बैंक के मामले में यदि आपक एक निश्चित प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रखते हैं तो इसके लिए पहले भारतीय रिजर्व बैंक से मंजूरी लेना होगा। आईडीबीआई एक विशेष मामला है जहां आरबीआई पूरी प्रक्रिया में शामिल रहा है। इसलिए वह जो उचित समझेगा वह करेगा और इसे अंतत: मंजूरी लेने की आवश्यकता होगी।