गोल्ड लोन पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के मसौदा दिशानिर्देश अपने मौजूदा स्वरूप में ही लागू हुए तो बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर खर्च का बोझ बढ़ सकता है। बैंकिंग क्षेत्र के लोगों एवं विशेषज्ञों ने यह अंदेशा जताया है। इस मसौदा दिशानिर्देश के अनुसार बैंक और एनबीएफसी को अपनी सभी शाखाओं में मानक कागजी प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी। इसके अलावा, सोना के बदले ऋण देने वाली इकाइयों को ठोस वसूली एवं गणना विधियां भी अपनानी होंगी ताकि किसी तरह की चूक की गुंजाइश नहीं रहे।
गोल्ड लोन देने वाली एक बड़ी एनबीएफसी के अधिकारी ने कहा, ‘इस समय कलेक्शन, कागजी प्रक्रिया और गणना विधि आदि पर 2 प्रतिशत लागत बैठती है। मगर आरबीआई के मसौदा दिशानिर्देश अपने मौजूदा स्वरूप में लागू हुए तो यह लागत बढ़कर 4-5 प्रतिशत हो जाएगी।‘ अधिकारी ने कहा कि शाखाओं को मानकीकरण प्रक्रिया तेजी से पूरी करनी होगी जिससे स्वर्ण ऋण मंजूर करने की प्रक्रिया पर खर्च बढ़ जाएगा।
मसौदा दिशानिर्देश के अनुसार गिरवी रखे सोने की शुद्धता, इसका भार (सकल एवं शुद्ध दोनों) आदि की जांच के लिए कर्जदाता संस्थानों को एक मानक प्रक्रिया तैयार करनी होगी। यह विधि संबंधित कर्जदाता की सभी शाखाओं में समान रूप से लागू होगी। इसके अलावा संस्थानों को सोने की जांच के लिए ऐसे जांचकर्ताओं को नियुक्त करना होगा जिनका पिछला कामकाज बेदाग रहा हो। मसौदा दिशानिर्देशों के अनुसार कर्जदाता संस्थानों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सोना गिरवी लेते एवं ऋण चुकता होने के समय या भुगतान नहीं होने की सूरत में नीलामी के समय सोने की शुद्धता और उसके शुद्ध भार की गणना की विधि में किसी तरह की भिन्नता न हो।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन तमाम शर्तों के कारण बैंकों एवं एनबीएफसी की परिचालन लागत बढ़ जाएगी क्योंकि उन्हें समीक्षा कर्ता के तौर पर विशेषज्ञता रखने वाले लोगों को नियुक्त करना होगा।
इक्रा में समूह प्रमुख (वित्तीय क्षेत्र रेटिंग्स) अनिल गुप्ता कहते हैं, ‘नए दिशानिर्देश लागू होने से अनुपालन खर्च बेशक बढ़ जाएगा क्योंकि इस समय सोने के बदले ऋण देते समय कर्जधारक की आय की जांच नहीं होती है। मगर अब उन्हें शाख मूल्यांकन ढांचे में उनकी आय का भी जिक्र करना होगा। इससे प्रक्रियागत खर्च काफी बढ़ जाएगा क्योंकि गोल्ड लोन देने वाली इकाइयों को इस काम में पारंगत लोगों को नियुक्त करना होगा। यानी इससे संचालन के स्तर पर अधिक सतर्कता बरतनी होगी और लोन टू वैल्यू (एलटीवी) 75 प्रतिशत निर्धारित होने से कारोबार पर भी असर होगा।‘
फिच रेटिंग ने कहा कि आरबीआई के मसौदा दिशानिर्देश से संचालन से जुड़ी जटिलता, खासकर छोटी कंपनियों के लिए, बढ़ जाएगी। इस रेटिंग एजेंसी के अनुसार इन बदलावों से प्रक्रियागत बोझ बढ़ जाएगा। एनबीएफसी के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में लागत बढ़ जाएगी क्योंकि वहां आय का अनुमान लगा पाना अधिक मुश्किल होता है। वित्तीय संस्थानों को गोल्ड लोन योजनाओं में बदलाव करने पड़ सकते हैं।
एक निजी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमें अधिक लोग रखने होंगे। इस समय किसी शाखा में समीक्षा कर्ता के तौर पर 4-5 लोग काम करते हैं तो मसौदा दिशानिर्देश लागू होने के बाद 8-10 लोगों की जरूरत पेश आएगी। इतनी बड़ी संख्या में लोगों की आय की जांच करने से भी बैंकों पर बोझ बढ़ जाएगा।’