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फिनटेक क्षेत्र में एकीकरण के आसार

कंपनियों ने कहा, अनुपालन की न्यूनतम लागत करीब-करीब दोगुनी हो गई है

Last Updated- December 25, 2023 | 12:49 PM IST
Fintech
Representative Image

भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से बार-बार किए जाने वाले बदलाव और अनुपालन की बढ़ती लागत से तेजी से वृद्धि दर्ज कर रहे फिनटेक क्षेत्र में एकीकरण हो सकता है। यह कहना है इस उद्योग की कंपनियों का।

केंद्रीय बैंक की तरफ से घोषित कुछ हालिया बदलावों में नए नियम जैसे डिजिटल उधारी के दिशानिर्देश (डीएलजी), फर्स्ट लॉस डिफॉल्ट गारंटी (एफएलडीजी) और असुरक्षित पर्सनल लोन पर जोखिम भारांक में किया गया इजाफा शामिल है। कंपनियां हालांकि इन बदलावों को लेकर अनुपालन में जुटी हुई हैं, लेकिन ऐसा अचानक होने का मतलब हर फर्म की वृद्धि की रणनीति पर दोबारा विचार करना है।

बिजनेस स्टैंडर्ड ने जिन कंपनियों से बातचीत की उन्होंने कहा कि अनुपालन की न्यूनतम लागत पिछले साल के मुकाबले करीब दोगुनी हो गई है। इनमें तकनीक में निवेश, डेटा संरक्षण व निजता और आंतरिक व बाह्य अंकेक्षण पर खर्च आदि शामिल है।

फिनटेक फर्म क्रेडिट फेयर के संस्थापक व सीईओ अदित्य दमानी ने कहा, अनुपालन की लागत बढ़ रही है। हमारे जैसे छोटे एनबीएफसी के लिए अनुपालन की लागत दोगुनी हो गई है और इसके साथ ही कारोबार भी बढ़ रहा है। ऐसे में अभी चीजें संतुलित हैं। बड़ी कंपनियों के मामले में अनुपालन की बढ़ती लागत का टिकाऊ परिचालन और वृद्धि के परिदृश्य पर बहुत ज्यादा असर शायद नहीं पड़ा है।

दमानी को आशंका है कि लंबी अवधि में अनुपालन की लागत में इजाफा जारी रहेगा। उन्होंने कहा, ‘बड़ी कंपनियां उच्च अनुपालन लागत समाहित करने की स्थिति में हैं। छोटी कंपनियों को बढ़ी लागत का प्रबंधन करने में चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, जिससे इस क्षेत्र में एकीकरण होगा। इसके परिणामस्वरूप हमें उम्मीद है कि छोटी कंपनियां धीरे-धीरे बड़ी विनियमित इकाइयों का हिस्सा बन जाएगी।’

बढ़ती लागत के साथ अन्य कंपनियों का कहना है कि अनुपालन की अनिवार्यता काफी बढ़ गई है और नियमों की व्याख्या को लेकर भ्रम टालने के लिए और बातचीत जरूरी हो गई है जबकि वे आरबीआई की तरफ से तय नियमों के अनुपालन की इच्छा रखते हैं।

उद्योग की एक कंपनी ने कहा, ‘अनुपालन लागत ऐसी होती है, जिसे हर कंपनी को उठाना होता है। नियामक या निरीक्षक से बातचीत का औपचारिक जरिया होना चाहिए ताकि नियमों की व्याख्या की जा सके। इसके क्रियान्वयन के लिए ज्यादा वक्त मिलना चाहिए और इस संबंध में बातचीत के लिए भी।’

उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि ऐसी लागत समाहित करने के लिए बड़ी कंपनियों का होना जरूरी है। छोटी कंपनियां ऊंची अनुपालन लागत के कारण अपना अस्तित्व बचाए रखने में मुश्किलों का सामना कर सकती हैं।

कुछ मामलों में यह अनुपालन लागत है, वहीं अन्य मामले में आरबीआई के फैसले का मतलब वृद्धि के लिए अन्य रास्ते की तलाश है।

उदाहरण के लिए पिछले साल नए मर्चेंट जोड़ने को लेकर रेजरपे, कैशफ्री पेमेंट्स, पेयू, पेटीएम जैसी कंपनियों पर आरबीआई की पाबंदी के बाद कंपनियों ने अतिरिक्त वित्तीय सेवा व वैल्यू ऐडेड पेशकश की ओर विशाखन की संभावना तलाशी।

पिछले हफ्ते नियामक ने रेजरपे, कैशफ्री, गूगलपे और एनकैश पर एक साल पाबंदी हटा ली। नए ग्राहक जोड़ने पर पाबंदी का मतलब कारोबार की धीमी वृद्धि है, जिससे राजस्व प्रभावित होता है।

इसी तरह इस महीने पेटीएम ने छोटे आकार वाले कर्ज के वितरण में कमी लाने का ऐलान किया, खास तौर से 50,000 रुपये से कम वाले कर्ज। कंपनी ने यह कदम असुरक्षित पर्सनल लोन पर आरबीआई की सख्ती के बाद उठाया।

First Published - December 25, 2023 | 12:49 PM IST

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