वाणिज्यिक बैंकों की तरफ से जारी टियर-2 बॉन्ड वित्त वर्ष 23 में सालाना आधार पर 3.5 गुना बढ़कर 59,600 करोड़ रुपये से ज्यादा के रहे। देश में निजी क्षेत्र के सबसे बड़े एचडीएफसी बैंक ने इसकी अगुआई की और बैंक ने इसके जरिए 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाए।
देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने 13,718 करोड़ रुपये के टियर-2 बॉन्ड जारी किए, जिसके बाद निजी क्षेत्र के ऐक्सिस बैंक का स्थान रहा, जिसने 12,000 करोड़ रुपये जुटाए। जेएम फाइनैंशियल सर्विसेज ग्रुप के आंकड़ों से यह जानकारी मिली।
टियर-2 व टियर-1 बॉन्डों पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी देखने को मिली, जो ब्याज दरों में सख्ती के अलावा नकदी के सख्त हालात को प्रतिबिंबित करता है। यह भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के रुख का नतीजा है। बॉन्ड डीलरों व विश्लेषकों ने ये बातें कही।
ब्याज दरों के लिहाज से टियर-2 बॉन्ड, अतिरिक्त टियर-1 बॉन्ड से सस्ते हैं। टियर-2 बॉन्डों की ब्याज दरें अतिरिक्त टियर-1 बॉन्ड के मुकाबले करीब 100 आधार अंक कम है। इसका अन्य पहलू इन प्रतिभूतियों की मांग है।
रेटेड और बेसल-3 अनुपालन वाली टियर-1 व टियर-2 प्रतिभूतियां हाइब्रिड सबोर्डिनेटेड डेट प्रतिभूतियां हैं और इनमें इक्विटी की तरह नुकसान को समाहित करने की खासियत होती है। ऐसी खासियत से पारंपरिक डेट प्रतिभूतियों के मुकाबले ज्यादा नुकसान की संभावना हो सकती है।
बॉन्ड डीलरों ने कहा कि एटी-1 बॉन्ड के मोर्चे पर गतिविधियां सुस्त रहीं। बैंकों ने वित्त वर्ष 2023 में 34,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के बॉन्ड जारी किए, जो वित्त वर्ष 22 में 29,600 करोड़ रुपये रहा था।
सार्वजनिक क्षेत्र के लेनदारों की बात करें तो सात लेनदार एटी-1 बॉन्ड जारी करने में सक्रिय थे और सिर्फ एक निजी बैंक ने वित्त वर्ष 23 में एटी-1 बॉन्ड जारी किया।
एसबीआई ने विभिन्न चरणों में 15,133 करोड़ रुपये जुटाए, जिसके बाद पीएनबी का स्थान रहा, जिसने 4,214 करोड़ रुपये जुटाए जबकि केनरा बैंक ने 4,000 करोड़ रुपये जुटाए। एचडीएफसी बैंक ने एटी-1 बॉन्ड के जरिये 4,000 करोड़ रुपये जुटाए।
बुनियादी ढांचा बॉन्ड (इन्फ्रा बॉन्ड) के जरिये जुटाई गई रकम वित्त वर्ष 23 में घटकर 19,900 करोड़ रुपये रह गई, जो वित्त वर्ष 22 में 27,200 करोड़ रुपये रही थी। इन्फ्रा बॉन्ड का इस्तेमाल करने वाले प्रमुख बैंकों में एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक रहे, जिन्होंने क्रमश: 10,000 करोड़ रुपये व 7,100 करोड़ रुपये जुटाए। इन्फ्रा बॉन्ड की परिपक्वता अवधि कम से कम सात साल रखनी होती है। कुछ बैंकों को इतनी ही परिक्वता अवधि वाली जमाओं के मुकाबले इन पर सापेक्षिक लागत देखी। उन्होंने इन्फ्रा बॉन्ड का विकल्प चुना क्योंकि ब्याज दरें समान अवधि वाली जमाओं के मुकाबले अपेक्षाकृत कम थी।